श्रीमद्भागवत कथा सुनाते स्वामी जी महाराज वर्तमान समय की मुख्य समस्याओं पर सरलता से प्रकाश डाल देते हैं। जो चुनौती समाज के सामने आने वाली होती है उसका संकेत कर देते हैं। आचार्य आश्रम चित्रकूट मे जेपी इंटर कॉलेज के जेपी मिश्रा पत्नी सहित समस्त परिजन कथा सुन रहे हैं। कथा के तीसरे दिन स्वामी जी महाराज ने प्रेम वैराग्य और राग पर प्रवचन दिए।
एक महत्वपूर्ण वाक्य आया कि अब बच्चों को माँ नही चाहिए मोबाइल चाहिए। ये सच है आजकल छोटे छोटे बच्चे मोबाइल मे गेम खेलते मिल जाएंगे। और बड़े ध्यान से खेलते हैं। आंखे टिका देते हैं मोबाइल स्क्रीन मे।
माताओं को पहले बहुत अच्छा लगता है। उनको कुछ देर के लिए बच्चे की जिम्मेदारी से छुटकारा मिल जाता है। रोता हुआ बच्चा शांत हो जाता है , मुस्कुराने भी लगता है। वह मोबाइल के साथ व्यस्त हो जाता है।
जिसके अच्छे फल मिलते हैं उसके वही फल बुरे भी होते हैं। कुछ ज्यादा समय तक रखे हुए फल सड़ जाते हैं। खराब गंध आने लगती है। यही वो फल है जो मोबाइल और बच्चों के इस चाहत का परिणाम होगा। इसके कुछ परिणाम सुनाई भी देने लगे हैं।
जैसे सुनाई दिया मोबाइल नही मिला तो छत से छलांग लगा , कमरे बंद कर आत्महत्या करने का प्रयास किया। यह सब मोबाइल के कारण हो रहा है। मोबाइल से निकलने वाली तरंगे मन मस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। आपके बच्चे जिद्दी और चिड़चिड़े हो जाते हैं।
इसलिए महराज जी श्रीमुख से निकले एक वाक्य का संकेत समझें और संतुलन स्थापित करें। इस समय बच्चों का सही तरीके से पालन पोषण बड़ी चुनौती है। हम कैसा समाज तैयार करेंगे यह बच्चों के पालन-पोषण तरीके पर निर्भर करता है।
बच्चों के साथ मे मोबाइल कम से कम रहे और हो सके तो बिल्कुल ना रहे जैसे पहले बच्चों का पालन-पोषण बिन मोबाइल के हो जाता था। उन बच्चों की स्मरण शक्ति और इन बच्चों की स्मरण शक्ति मे आप ज्यादा और कम का अंतर पाओगे। इसलिए अभी वक्त है कि इसे भगवान की वाणी समझिए जो परमात्मा के अंश के श्रीमुख से कहा गया है।
अगले बीस तीस वर्ष बाद का समाज कैसा होगा यह आज के पालन-पोषण पर निर्भर करता है। अपने बच्चों के भविष्य के लिए उनके सही बेबी केयर टेकर बनिए। टेक्नोलॉजीज का नॉलेज होना चाहिए परंतु लत नही होनी चाहिए। ऐसा लगता है मानो किसी नशा से खतरनाक नशा है मोबाइल का इसलिए अपने बच्चों को बचाइए और चित्रकूट के आचार्य आश्रम मे हो रही इस कथा का बड़ा संदेश मानकर अपनाने योग्य है।