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Written by – Saurabh Dwivedi

मैं न संत हूं, न महात्मा हूं और न ही साधु सन्यासी हूं। एकदम साधारण सा सांसारिक प्राणी हूं। मेरे अब तक के जीवन का ये अनुभव है कि “कर्त्ता” वो ईश्वर ही होता है। 

हम सब निमित्त मात्र होते हैं। हमारी किसी ने मदद कर दी तो हम सोचते हैं, फला इंसान ने मेरी मदद कर दी। उस इंसान के हम गुणगान करेंगे। अवश्य करना चाहिए किंतु हकीकत ये होती है कि मदद करने वाला सर्वशक्तिमान ईश्वर होता है, वो इंसान ईश्वरीय प्रेरणा से निमित्त मात्र होता है। इसलिये मदद करने वाले को भी घमंड नही करना चाहिए क्यूंकि ईश्वर ने हमें मदद करने का अवसर दिया।
ईश्वर की मर्जी नही है तो वक्त से पहले पत्ता भी नही हिलता। आपको किसी से प्रेम मिल गया तो ईश्वरीय प्रेरणा से मिलता है। आपके जीवन मे अंधकार छा गया तो सांसारिक ज्ञान होने के बाद, ईश्वर वो अंधेरा स्वयं हटा लेगें।

जब तक जिंदगी मे एक बार चौतरफा चक्रवात नही आयेगा तब तक आपको सांसारिक प्राणी और ईश्वर के बीच का फर्क नही महसूस होगा।

इसलिये जब कभी भी आपके साथ अच्छा हो या बुरा हो तो ईश्वर को ही धन्यवाद दें। कृतज्ञता जतायें क्यूंकि इंसान कभी हारता नही, वो या तो सीखता है या जीतता है।

हर परिस्थिति से उबरने का अवसर जरूर आता है। कोई न कोई विकल्प निकलता ही है। अच्छी से अच्छी सोच रखने वाले व्यक्ति के साथ बहुत कुछ गलत हो सकता है और अगर गलत नही होगा तो अच्छी सोच रखने वाला व्यक्ति भी सांसारिक मोह माया में फंसा रहेगा।

मै ऐसा नही कह रहा हूं कि कोई सन्यास ले ले किंतु हम इंसान कर्म करने के लिये आये हैं और सबकुछ ईश्वरीय सत्ता के अनुरूप है। इसलिये जो कुछ भी मिले, उससे सीखिये जानिये पर हारिये मत, हमारी मौत भी जिंदगी की जीत होती है।

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