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By – saurabh Dwivedi

एक कहावत है कि बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहिए। आज तो बहती गंगा में डुबकी लगा लेने का ही मन कर रहा है। जबकि भारतीय संस्कृति के अनुसार गंगा स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। इसलिये तो मोदी और अमित शाह ने उमा भारती के मंत्रालय से “नमामि गंगे” योजना चलाई थी। अब राजनीति में नमामि गंगे हो रहा है। राजनीति के समुद्र मंथन में एक तरफ वह विपक्ष रह गया है जो बिन नीतिश के रह गया है। 
सर्वविदित है कि पिछले दिनों रवीश कुमार ने नीतिश कुमार पर यह कहते हुए ब्लाग पर लिखा था कि बेशक नीतिश पीएम पद के दावेदार नहीं हैं। लेकिन नीतिश ही विपक्ष के पास वह चेहरा है जिसमें पीएम बनने की हर योग्यता जीरो टालरेंस की तरह समायी हुई है। 
परंतु नीतिश कुमार राजनीति के पक्के खिलाड़ी हैं। उन्हें यह भी पता है कि नरेन्द्र और अमित की जुगुल जोड़ी जो गुल खिला रही है। उसमें इकलौते नीतिश जीत के मुहाने तक कभी पहुंच ही नहीं सकते थे। 
ऊपर से लालू और कांग्रेस का परिवारवाद तथा पुत्र मोह भी विपक्षी खेमे के लिए सबसे बड़ा खतरा था। बिहार के दमाद और सोनिया के राष्ट्रीय दामाद वाड्रा सहित भू माफिया के सरगना बने थे। 
एनडीए गठबंधन की सरकार से ही सुशासन बाबू नाम मिला था। जिसकी छवि तेजस्वी एंड कंपनी की दादागिरी तथा भ्रष्टाचार की वजह से धूमिल होती चली जा रही थी। संभव था कि जनता अपना जनादेश देती। इससे पहले 2019 तक की पूरी पटकथा तैयार कर ली गई है। 
यूपी जीतने के बाद बिहार में बीजेपी गठबंधन की सरकार बनने के बाद मध्यप्रदेश और गुजरात में भी विजय का सिक्का लगभग जड़ दिया गया है। बिहार का यह राजनीतिक परिवर्तन आमजनमानस के मन का परिवर्तन साबित होगा। 
अब 2019 में एक बार फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्ता की जंग की शुरूआत हो रही है। जिसमें नेतृत्व विहीन विपक्ष एक बार फिर कटघरे में है। 
हाँ एक विकल्प हो सकता है जो जूझ सकता है। वह अब इकलौते युवराज रवीश कुमार हो सकते हैं। रवीश तुम इस्तीफा दो मोदी नीतिश अमित जैसी त्रिमूर्ति से मुकाबला करो। 

जरा सुनो अब नीतिश जी वाला प्रेम पत्र जल्दी से डिलीट कर देना।

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