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By – Saurabh Dwivedi

बधिरों के लिए सांकेतिक भाषा में खबर प्रसारित की जाती है ताकि जो सुन नहीं सकते पर देख सकते हैं तो इशारों से खबर का अर्थ समझ जाएं। ऐसे ही अंधों के लिए ब्रेन लिपि का प्रयोग किया जाता है। परंतु नगरपालिका कर्वी के ईओ ना सांकेतिक भाषा समझ रहे हैं और ना ही ब्रेन लिपि की तरह उनका ब्रेन काम कर रहा है। ठेकेदार ब्रह्मदत्त पाण्डेय को आश्वासन देने के बावजूद स्मरण शक्ति का ह्वास हो चुका है। वे भुगतान करना ही भूल चुके हैं।

वैसे लोकतंत्र में मौत के बाद मुआवजा मिलता है। शायद ईओ नगरपालिका को भी अनहोनी का इंतजार है ताकि वे संवेदना व्यक्त कर श्रद्धांजलि दे सकें और मुआवजा देने की बात कर लोकतंत्र की परंपरा का निर्वहन कर सकें।

नगरपालिका का सताया हुआ ठेकेदार आचार संहिता के समय आमरण अनशन करने को बाध्य है। कहानी सिर्फ इतनी नहीं बल्कि आमरण अनशन से रोकने के प्रयास भी किए गए। नगरपालिका शासन – प्रशासन को समझना चाहिए कि मरना कौन चाहता है ? लेकिन जब एक जिंदगी की मजबूरी नहीं समझी जा रही है तो ऐसे में जिंदगी से मौत को अंगीकार करने की यात्रा ही इंसान को समझ आती है।

कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि सपा की छायातले चुनावी समय पर योगी सरकार की छवि धूमिल करने की कोशिश भी हो सकती है कि जनता को लगे कि लोग यहाँ मरने को मजबूर हैं और किसी का चुनावी हित सध सके। कुलमिलाकर दोष सरकार पर ही मढ़ा जाएगा बेशक दोषी स्थानीय नेतृत्वकर्ता व प्रशासनिक अधिकारी ही क्यों ना हों। फिलहाल ठेकेदार अब आमरण अनशन द्वारा ही न्याय पाने की उम्मीद किए बैठे हैं।

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