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श्री भगवान की लीला का वर्णन करना उनकी परम कृपा से संभव होता है और जब श्री भगवान के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए जाते हों तब क्या वह अपने होने के अस्तित्व का प्रमाण देंगे ?

श्री भगवान की कृपा से बुधवार की शाम को मुझे मित्र विवेक के साथ भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने का अवसर मिला। बांके बिहारी मंदिर मे हम खास प्रयोजन से पुजारी bhartendra दुबे जी महाराज के पास बैठकर आने वाली शुभ जन्माष्टमी कार्यक्रम हेतु विचार-विमर्श कर रहे थे।

हमारे चलने की वेला मे उन्होंने प्रसाद स्वरूप गरी के दो गोले मंगाए और श्री भगवान को स्पर्श कर एक – एक गोला हम दोनों को दिए।

जींस पहनने के दौर मे गरी का गोला पैंट की जेब मे रखने मे असमर्थ रहे तब श्री भगवान का स्मरण करते हुए बाइक के साइड बैग मे दोनो गरी के गोले एक साथ डाल दिए गए।

दर्शन उपरांत घर पहुंचने मे हमे करीब रात के 9 बज रहे थे। मैं विवेक को उसके घर की गली तक छोड़ने गया , इतने मे विवेक ने कहा अरे वो प्रसाद …. कोई बात नही कल ले लेंगे !

मैंने जोर देकर कहा नही भाई अभी ले लो।

पर्याप्त अंधेरा मे विवेक ने चेन खोलकर बैग से प्रसाद स्वरूप गरी का गोला निकालना शुरू किया।

जाने कैसे मेरे मन मे वो दृश्य घूम गया जब महराज जी गरी का गोला दे रहे थे तब मैं सोच रहा था कि देखते हैं महाराज जी किसको कौन सा गोला देते हैं ! दोनो गोलों के आकार मे पर्याप्त अंतर था , एक गोलाई मे चपटा नजर आ रहा था और एक अपनी गोलाई मे वैसे ही गोलाकार था।

मेरे हाथ मे प्रसाद स्वरूप हल्का चपटे आकार का गरी का गोला आया। अब बाइक मे दोनो एक साथ थे।

विवेक ने निकालना शुरू ही किया था कि मैंने मन ही मन विहारी जी से कहना शुरू किया कि भगवान देखो आपने जो प्रसाद मुझे दिया था वह मेरा ही रहेगा या हो सकता है विवेक मेरे हिस्से वाला प्रसाद निकाल ले ? इसलिए विहारी जी आपसे प्रार्थना है कि आज यही देखना है जिसका जो प्रसाद है वही उसके हिस्से मे आएगा या बदल जाएगा ?

जब विवेक ने प्रसाद निकाल लिया तो मैंने उसे कहा जरा दिखाओ प्रसाद ? अपने हथेली रखकर जय विहारी जी कहते हुए उछाल दिया और प्रणाम कर लिया कि हे प्रभु मान गए।

अब विवेक को मैंने सारा रहस्य बताया कि तुमने जो गरी का गोला निकाला है तुम्हारा वाला ही है और मैंने उससे पुष्टि भी कर ली कि जब तुमने प्रसाद निकालने को सोचा था तो क्या अपना वाला ही गोला निकालना को सोचा था ?

विवेक ने साफ कहा नही ; चूंकि मेरे मन मे था कोई एक निकाल लूंगा।

मैंने कहा हाँ भाई। मैं यही महसूस कर रहा था कि तुम ऐसा ही करने जा रहे हो पर आज देखो विहारी जी से मैंने प्रार्थना की और उन्होंने अवश्य सुन ली। जो प्रसाद तुम्हारे हिस्से आया तुम्हे मिला लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि जो लोग ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं उनके लिए जवाब मिल गया है कि भगवान अपने अस्तित्व को इस तरह की स्वाभाविक घटनाओं से प्रमाणित कर देते हैं ; अब तुम्हारे पास महसूस करने वाला मन होना चाहिए।

अंधकार मे जो प्रकाश कर दें वही ईश्वर हैं। आज अंधकार ही था और प्रकाश हो गया। बेशक हमारी जिंदगी मे अनगिनत संघर्ष हैं , दुख से भरा घड़ा है जीवन परंतु भगवान की कृपा से श्वांस चलती है और लक्ष्य को प्राप्त करते हुए हम जीवन जीते हैं।

जीवन वे लोग भी जीते हैं जो ईश्वर को नही मानते , जीवन वे लोग भी जीते हैं जो ईश्वर को मानते हैं। किसी को ना मानने से महत्वपूर्ण होता है किसी को मानना और ईश्वर के मामले मे बहुत बाद मे समझ मे आता है कि भगवान ने इस रास्ते से या फला अजनबी व्यक्ति के माध्यम से मुझे जिंदा रखा वरना मैं कब का मर जाता ?

जबकि मृत्यु शाश्वत सत्य है और ऐसे ही ईश्वर भी सत्य हैं। चित्रकूट मे बांके बिहारी के इस मंदिर पर मेरी पहली नजर वृंदावन से वापस आने पर पड़ी थी जबकि मैं वृंदावन मे बांके विहारी के दर्शन नही कर सका था और चित्रकूट मे वह दर्शन लाभ मिला था। मंदिर मे अद्भुत सकारात्मक ऊर्जा का संचार महसूस हुआ था और तब से लगातार पीड़ा मे सुख मे उनके पास पहुंचता रहा और अब अंधकार मे जो चेतना उन्होंने जागृत की वह चिरकाल तक बनी रहे।

एक वाक्य है कि यह सच है कि भगवान हैं।

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