By :- Saurabh Dwivedi
दो संत मंदिर मे प्रवेश करते हैं और घटित होती है , ऐसी घटना कि शुरू हो जाता है , जीवन वृतांत जो हर किसी की जिंदगी को कभी-कभी अवश्य स्पर्श करता है।
कृष्ण नाम ही आकर्षण का केन्द्र है। कृष्ण के दर पर वास्तविक घटना घटित होती है। एक ऐसी ही वास्तविक घटना बांके बिहारी मंदिर में पुजारी जी के साथ घटित हुई। उन्होंने घटना के माध्यम से घमंड होने ना होने का अंतर स्पष्ट किया। जो संभवतः ठाकुर जी ने स्वयं घटित होने दिया , जिससे मंदिर के अंदर बैठे पुजारी जी को वास्तविकता का आभास हुआ। उन्होंने मंदिर के नियम एवं घटना के अंदर पर बड़ी सरलता से श्रीकृष्ण जीवन दर्शन को स्पष्ट किया। मंदिर का नियम है कि यहाँ कोई तस्वीर नहीं ले सकता।
एक दिन पुजारी जी प्रार्थना कर के मंदिर के अंदर बैठे थे। ठीक उसी वक्त मंदिर में दो संत प्रवेश करते हैं। उनमे से एक संत ने बांके बिहारी की फोटो लेना शुरू कर दिया।
उस संत को फोटो लेते हुए देखते ही पुजारी जी ने तेज आवाज में कहा कि ” ऐ फोटो मत लेना । ” जबकि मंदिर के सूचना बोर्ड पर अंकित है कि फोटो लेना मना है। बावजूद इसके वह संत बिना इजाजत के फोटो निकाल रहे थे।
पुजारी के मना करने के अंदाज से संत क्रोधित हुए। उन्होंने ठेठ भाषा में कहा कि ” बाहेर निकर के अवय तो उठा पटक देंव । ”
अब पुजारी जी हतप्रभ हुए कि यह क्या बला है ! फोटो निकालने को मना करूं तो मुझे उठाकर पटक दिया जाएगा। संत ने कहा था कि दुबले-पतले हो और मंदिर के अंदर बैठे हो अन्यथा बाहर आ जाओ तो उठाकर पटक दूंगा।
वहीं दूसरे संत ने एक बात कही , जिसने पुजारी के मन को आश्चर्य में डाल दिया। उन दूसरे संत ने कहा कि कृपया मुझे आज्ञा दीजिए तो आपके चरणों की रज़ माथे से लगा लूं। मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।
उस संत ने कहा कि ऐसा सौभाग्य कहाँ कि कृष्ण की पूजा करने का अवसर सबको मिल सके। यह जीवन का सौभाग्य है कि मंदिर के अंदर ठाकुर जी की आप पूजा कर रहे हैं। इसलिये ऐसे व्यक्तित्व के चरणों की रज़ मस्तक पर लगाने से मेरा जीवन धन्य हो जाए।
अब पुजारी जी के मन मे द्वंद जन्म लेने लगा कि बड़ी अजीब बात है कि एक संत कह रहे हैं कि बाहर आ जाओ उठाकर पटक दूंगा और दूसरे कह रहे हैं कि तुम्हारे चरणों की रज़ मस्तक से लगा लूं।
अंतर्मन मन में ही आत्मा और परमात्मा का वास होता है। समस्त सवाल और जवाब का केन्द्र वहीं है। वाह्य घटना से आंतरिक द्वंद उत्पन्न हुआ। एक ही समय में दो अलग व्यक्तियों से पुजारी जी का मन प्रभावित हुआ।
उन्हें परमात्मा का जवाब भी वहीं से मिला। उन्होंने अहसास किया कि ठाकुर जी जानते हैं और जनवाते भी हैं। उन्होंने आभास कराया कि तुम कुछ भी नहीं हो , जो अभिमान मन मे पाल लो ! तत्पश्चात उन्होंने जनवाया कि तुम्हारा जीवन कितना महान है कि एक संत चरणों की रज़ मांग रहा है।
एक ही समय में जीवन का सार पुजारी जी को समझ मे आ गया। जीवन की वास्तविकता महसूस हुई। मंदिर मे ठाकुर जी की पूजा करने से मन को जो शांति मिलती है , वह भी अहसास हुआ ! घमंड ना करने की सीख शीघ्र मिल गई। घमंड विध्वंस का कारण है , यह भी अहसास हो गया।
यह पूरा वृतांत मंदिर परिसर के अंदर पुजारी जी ने अपार ऊर्जा के मध्य कही। बांके बिहारी मंदिर के अंदर की सकारात्मक अपार ऊर्जा को संगी साथियों के साथ हमने महसूस किया। वास्तव मे एक ऐसा धार्मिक – आध्यात्मिक स्थान जहाँ की ऊर्जा से इंसानों को जीवन ऊर्जा प्राप्त हो जाती है।
इस संसार में ऊर्जा ही सबसे बड़ी शक्ति है। मंदिर के अंदर की सात्विक ऊर्जा जीवन के लिए लाभप्रद होती है। बशर्ते मंदिर में कुछ समय व्यतीत करना आवश्यक है , समूचे संसार से विलग होकर मन से मंदिर मे संलग्न होकर परमात्मा को महसूस करना। जिससे प्राप्त ऊर्जा जीवन के तमाम कष्ट को खत्म कर देती है।
सर्वोपरि है कि कृष्ण जीवन दर्शन समाज मे प्रेम – मिलाप का बड़ा द्योतक है एवं पुजारी जी ने स्वयं महसूस किया कि पल भर में आगंतुक घमंड से दो संत के माध्यम से ठाकुर जी ने निजात दिला दी। इस प्रकार से परमात्मा हमारी जीवन रक्षा करते हैं और जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जो महसूस करते हैं उनके लिए और जो नहीं महसूस करते उनके लिए भी !
( बांके बिहारी मंदिर चित्रकूट के पुजारी जी द्वारा बताई हुई सत्य घटना है , इस स्थान की सात्विक ऊर्जा जीवन को सुखमय बनाती है )