एक चित्रकार हृदय से रंग पटल पर बिखेरता है और बनती चली जाती है एक तस्वीर जैसे भ्रूण गर्भ मे आकार लेता है और 9 महीने बाद जन्म लेता है। ऐसे ही एक चित्रकार के मानसिक गर्भ मे कोई समस्या आकार लेती है और उसे वह चित्र द्वारा समाज व सरकार के सामने जन्म देकर प्रस्तुत कर देता है। असल मे एक चित्रकार मे मातृत्व का भाव भरा होता है तभी वह कभी किसी साहित्यकार का भी चित्र बना देता है तो भगवान को भी चित्र मे उकेर कर प्रकट कर देता है। ऐसे ही हैं चित्रकार विनय कुमार दुबे।
आपका जन्म 10 दिसंबर 1958 को इलाहाबाद / प्रयागराज मे डफरिन अस्पताल पर हुआ था , बचपन इलाहाबाद मे माँ ऊषा मालवीय एवं पिता स्व. विश्वनाथ दुबे के सानिध्य मे सुखमय व्यतीत हुआ , आपका विवाह डा. प्रतिभा मालवीय से हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक कर के आप केन्द्र सरकार की CGst विभाग मे अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं , छाया चित्र बनाने की नैसर्गिक प्रतिभा आप मे बचपन से विद्यमान थी और लगातार 35 वर्ष तक एक चित्रकार साधक के रूप मे कार्य करते रहे हैं।
इनके व्यक्तित्व का पारदर्शी गुण यही है कि सरकारी सेवा के दौरान भी एक चित्रकार के रूप मे ख्याति अर्जित करते रहे अर्थात समाज और सरकार को अपने चित्रों के माध्यम से बताते रहे कि क्या सहेजने लायक है और क्या नही ! जो समय चल रहा है उसमे हमे क्या एक्शन लेने की आवश्यकता है।
इसी वर्ष 2022 मे राष्ट्रीय स्तर की एक पत्रिका रचना उत्सव ने इनके बनाए चित्र को अपना कवर पेज बनाया। जो किसी भी चित्रकार के लिए बड़ी उपलब्धि होती है।
साहित्यकार और महापुरूषों के छाया चित्र बनाकर देते हैं संदेश :
101 चित्र की शब्द रंग किताब इनकी अविस्मरणीय पहचान है। नाम भी कितना सारगर्भित है शब्द रंग अर्थात रंग को शब्दों से ढाल दिया है , अब महसूस कर पढ़ने वाला हो तो उन चित्रों को पढ़कर एक एक महापुरूष के जीवन को ना सिर्फ देख सकता है अपितु पढ़कर जान सकता है। जीवन और संघर्ष के पथ मे चलते हुए कैसे वह महापुरूष कहलाए होंगे चूंकि जन्म तो सभी साधारण रूप से लेते हैं।
किसी विशेषज्ञ ने कहा है एक चित्र हजार शब्द साधना के बराबर होता है। सच है इसे लेखक वर्ग मन से महसूस कर सकता है कि हृदय मे आए हुए शब्दों को वह लिख देते हैं लेकिन एक चित्रकार एक रंग उपयुक्त स्थान पर भरने के लिए कितनी सावधानी रखता है और साधना ऐसी कि लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित कर आकार खींचता है। इसलिए एक चित्रकार का जीवन किसी लेखक से श्रेष्ठ कहा जा सकता है। एक सुन्दर परिकल्पना को कोरे कागज पर उकेरना , किसी समस्या को ऐसे प्रस्तुत करना जैसे हूबहू नजर आए और लोग देखते ही उद्वेलित हो जाएं कि यह समस्या जड़ से समाप्त होनी ही चाहिए।
जिन्हें अपना मानस गुरू मानते हैं ऐसे श्री श्री 1008 स्वामी रामभद्राचार्य जी का छाया चित्र भी इस तरह बनाया कि जीवंत स्वरूप लिए हुए है। हल्दीघाटी के युद्ध को स्मरण करते हुए महाराणा प्रताप का छाया चित्र और वहीं तमाम साहित्यकार के छाया चित्र बनाकर हाल के दिनों मे प्रस्तुत किए हैं।
राजनीतिज्ञों मे सोशल मीडिया पर इन दिनों प्रथम बार भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का छाया चित्र बनाकर यूजर्स के साथ साझा किया है लेकिन भारत रत्न महापुरूष पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेई का स्मरणीय चित्र बना चुके हैं। ऐसे तो अनगिनत छाया चित्र हैं जिनकी चर्चा नही की जा सकती किन्तु समय समय पर सोशल मीडिया पर हर छाया चित्र नजर आता है।
जनसेवा और राजनीतिक सोच :
व्यक्ति कोई भी हो उसके अपने राजनीतिक विचार अवश्य होते हैं। बेशक वह राजनीति मे सक्रिय ना हो लेकिन राजनीति से अछूत नही रहता। आप जीवन भर नौकरी किए और नौकरी के बाद तमाम उदाहरण ऐसे हैं जिन्होंने राजनीति मे जगह बनाकर फिर राज हासिल कर लिया है लेकिन विनय कुमार दुबे कहते हैं कि ” पहले चाहता था लेकिन अब नही ! “
वजह जानकर हर कोई हैरान रह जाएगा कि वे कहते हैं कि लोगों ने राजनीति को जुंआ का अड्डा बना दिया है। और चुनाव बड़े जुंआ का अड्डा हो गया है। यहाँ अनाप-शनाप रूपया लगता है और वैचारिक सोच का कोई महत्व नही रह गया है। अब बहुत बुरे मे से कम बुरे को चुनने का वक्त आ गया है। यह हमारे देश की उपलब्धि कही जाए या दुर्भाग्य माना जाए लेकिन जागो जनता कि पुकार अधूरी है अगर जनता जागती तो वह सचमुच हमेशा अच्छे नेतृत्वकर्ता तैयार करने के लिए खुद सक्रिय रहती और विकल्प आकाश मे तारे की तरह भी नजर आता तो उसकी चमक बढ़ाने के लिए सहयोग करती तो जरूर इस देश मे अच्छे नेता और अच्छी राजनीति होती।
वह कहते हैं गुलाम भारत के समय ही फ्रंटियर गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान ने कहा था कि ” नेक और ईमानदार लोग राजनीति मे नही आएंगे इस देश के मसले कभी हल नही होंगे। “
लेकिन मसला हल करना कितना जरूरी है यह युवाओं को समझना चाहिए। ऊर्जा और क्रांति का सदुपयोग हो तो अभी भी इस देश को शानदार नेतृत्व की आवश्यकता है जो जनता का नेता हो नाकि जनता पर थोप दिया गया नेता हो। हर मसला हल होगा युवा – जन जब चाह लेगा। वक्त करवट लेगा तो सामाजिक बदलाव से राजनीतिक बदलाव वैसे ही होगा जैसे कोरे कागज पर मैं छाया चित्र बना देता हूँ तो वह रंगीन छायादार कागज लोगों के दिलों मे आस्था भाव उभार देता है।
युवाओं को भविष्य की पीढ़ी हेतु काम करना होगा :
कहते हैं भारत के युवाओं मे सहनशीलता की कमी आयी है। वह जल्दी निराश हो जाते हैं , उग्र हो जाते हैं और उत्तेजित हो जाते हैं जिसका परिणाम यही है कि वह जीवन को साध नही पाता जो जीवन को नही साध सकता है वह देश और समाज के लिए साधना कैसे कर सकेगा ? सफलता के लिए निरन्तरता और सहनशीलता सबसे महत्वपूर्ण है।
इन युवाओं के लिए आदर्श महापुरूष की भारत कमी नही है लेकिन यूथ साहित्य से दूर हो चुका है। अच्छा साहित्य नही पढ़ता जहाँ उसे वेदांत दर्शन और महापुरूषों की गाथा का भान हो सके इसलिए ज्ञान के अभाव मे भटक रहा है। या फिर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सरकारी अथवा प्राइवेट नौकरी कर ले रहा है। किन्तु जीवन का लक्ष्य नौकरी या व्यवसाय आदि कर धन कमाना बस होता तो सबका जीवन सफल माना जाता और सभी धनाढ्यों के नाम से दुनिया जानी जाती लेकिन दुनिया उनके नाम से जानी जाती है जिन्होंने विश्व को मार्गदर्शन दिया हो , देश का मार्ग प्रशस्त किया हो।
युवाओं के लिए कुछ पंक्तियां जो हमेशा मुझे याद आती हैं…
इसलिए युवाओं को शौक पूरे करने के पथ पर चलते हुए भी देश , दुनिया और समाज के लिए काम करना चाहिए। अच्छा साहित्य हमेशा समाज का वास्तविक दर्पण रहा है और एक चित्रकार छाया चित्र के माध्यम से भूत भविष्य और वर्तमान को प्रस्तुत करता है। बस उसे पढ़ने के लिए आत्मिक दृष्टि विकसित होनी चाहिए। इसलिए युवाओं से यही कहना है कि देश मे जन नेता होना चाहिए जिसके लिए लगातार प्रयास करना होगा।
“बढ़ाओ पांव निष्ठा से महाअभियान चल देगा
कारवाँ जब कूच करेगा तो तूफान चल देगा
जिओ तो देश के खातिर मरो तो आदमियत पर
तो फिर पीछे तेरे इंसान क्या ? भगवान चल देगा ! “
जनसंख्या नियंत्रण कितना आवश्यक :
लोकतंत्र मे संख्या का महत्व है और जनसंख्या लोकतंत्र मे सरकार का निर्णय करती है। इसलिए जन की संख्या नेताओं का साधन है सरकार बनाने का ! इसलिए सभी अपने जाति और धर्म की संख्या पर जोर दे रहे हैं। ये समय-समय पर जनसंख्या नियंत्रण करने की बात कहते जरूर हैं पर इनकी संकल्प शक्ति मे कमी है।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने नसबंदी अभियान चलाया था। लेकिन परिणाम मे उन्हें हार मिली। शायद जनता भी अपने जीवन हित को नही समझ सकती इसलिए वह भी अनियंत्रित संतति को जन्म देती जा रही है और इसके पक्ष मे दिखती है। धर्म की प्रतिस्पर्धा और जाति की प्रतिस्पर्धा लोकतंत्र मे सरकार बनाने के लिए आवश्यक है इसलिए भी समय-समय पर जनसंख्या बढ़ाने की बात होती है और जब नियंत्रण की बात सरकार करती है तो कोई ना कोई एक पक्ष इसके विरोध मे खड़ा रहता है , यही सरकार की ढाल है। यही लोकतंत्र मे सरकार और जनता की असली चाल है।
जनसंख्या नियंत्रण राज नेताओं से संभव नही है। बल्कि महामारी जनसँख्या नियंत्रण कर देती है। प्रकृति ही फिर संतुलन स्थापित करती है। जैसे कोरोना जैसी महामारी ने दुनिया भर जनसँख्या संतुलन स्थापित करने की कोशिश का उदाहरण है कि प्रकृति ही अंत मे ऐसा करेगी। अन्यथा जनता सुखी और शौकीन जीवन जीने के लिए खुद ही नियंत्रण को स्वीकार कर ले। तब जाकर प्रकृति के साथ संतुलन कर सरकार , साधन और संसाधन के संतुलन से जनता शानदार आनंदित जीवन भोग सकती है।
” आप प्रख्यात चित्रकार विनय दुबे को फेसबुक पर फालो कर सकते हैं। “