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आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया न केवल मनोरंजन का माध्यम बन चुका है, बल्कि यह सामाजिक मूल्यों और विचारधाराओं के टकराव का मंच भी बन गया है। हाल ही में, मॉडल और पूर्व बिग बॉस कंटेस्टेंट अदिति मिस्त्री जैसी कई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अपनी बोल्ड तस्वीरों के कारण चर्चा में रहती हैं। एक तरफ उनके फैंस उनकी खूबसूरती और आत्मविश्वास की सराहना करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर उन्हें ट्रोलिंग, आलोचना और नैतिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं।

Aditi mistry viral pic

क्या बोल्ड तस्वीरें युवाओं को भटका रही हैं?

कुछ लोग यह मानते हैं कि सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले हॉट और सेक्सी कंटेंट से युवा भटक रहे हैं। यह तर्क दिया जाता है कि युवा लड़के इन तस्वीरों को देखकर उत्तेजित हो जाते हैं, वीर्य नाश करते हैं और मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं। कुछ लोग इसे बलात्कार जैसी घटनाओं से भी जोड़कर देखते हैं। लेकिन क्या यह तर्क वाकई ठोस है, या यह सिर्फ पितृसत्तात्मक सोच का प्रतिबिंब है?

बलात्कार की मानसिकता और अश्लीलता का तर्क

अगर कोई व्यक्ति किसी महिला की तस्वीर देखकर अपनी उत्तेजना को काबू में नहीं रख पाता और यौन अपराध की ओर बढ़ता है, तो समस्या उस व्यक्ति की मानसिकता में है, न कि उस तस्वीर में। बलात्कार का कारण महिलाओं के कपड़े, उनका बोल्ड होना या उनकी तस्वीरें नहीं हैं, बल्कि यह पुरुषों की “सहमति और आत्मनियंत्रण” की कमी है।

भारत जैसे देश में, जहां अब भी सेक्स एजुकेशन को सही तरीके से लागू नहीं किया गया है, वहां यौन इच्छाओं को लेकर कई भ्रांतियां और दमन की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। इसके कारण युवा ग़लत दिशा में बढ़ते हैं और उन्हें अपने शरीर और मानसिकता को समझने का उचित अवसर नहीं मिलता।

सोशल मीडिया, फेमिनिज्म और महिला स्वतंत्रता

सोशल मीडिया ने महिलाओं को अपनी पहचान बनाने का एक सशक्त मंच दिया है। जो लोग इसे ‘अश्लीलता’ का नाम देते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि महिला को अपनी पसंद के कपड़े पहनने, फोटो खिंचवाने और पोस्ट करने का उतना ही अधिकार है जितना किसी पुरुष को अपनी मर्जी से जीने का।

फेमिनिज़्म का मतलब ही यह है कि महिलाओं को उनके निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता मिले, चाहे वह उनके कपड़ों से जुड़ा हो, करियर से या फिर सोशल मीडिया पर उनकी मौजूदगी से।

Aditi mistry viral pic

क्या समाधान होना चाहिए?

  1. युवा पीढ़ी को सेक्स एजुकेशन देना – ताकि वे अपनी इच्छाओं को समझ सकें और अनावश्यक मानसिक कुंठाओं से बचें।
  2. सोशल मीडिया पर ज़बरदस्ती नैतिकता न थोपें – हर व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार जीने का हक़ है, जब तक वह किसी को नुकसान नहीं पहुँचा रहा।
  3. बलात्कार को कंट्रोल करने के लिए कानून और मानसिकता में बदलाव – किसी महिला की फोटो देखकर उत्तेजना को संभालना पुरुषों की ज़िम्मेदारी है, न कि महिलाओं की।
  4. मीडिया और समाज को महिलाओं को ‘ऑब्जेक्ट’ की तरह न देखने की आदत डालनी होगी – महिलाएं इंसान हैं, उनके शरीर और कपड़े किसी के नैतिकता के पैमाने पर खरे उतरने के लिए नहीं बने।

निष्कर्ष

समाज को अब यह समझना होगा कि महिलाओं की तस्वीरें या कपड़े यौन अपराधों के लिए ज़िम्मेदार नहीं होते। ट्रोल करने वालों को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है, न कि महिलाओं को अपने अधिकारों से पीछे हटने की। किसी की बोल्डनेस को उसका चरित्र या समाज के पतन से जोड़ना केवल दकियानूसी मानसिकता का प्रमाण है। जब तक हम यह नहीं समझेंगे, तब तक हम एक स्वतंत्र और न्यायसंगत समाज नहीं बना सकते।

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