@Saurabh Dwivedi ( गांव पर चर्चा )
औदहा मे पूजनीय गाय की दयनीय दशा
पहाड़ी / औदहा : ग्राम प्रधान के पांच साल पूरे हो चुके हैं। पांच साल तक सचिव और प्रधान गांव के विकास के लिए काम करते हैं। परंतु सूबे की योगी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा ही सरकार के गले की फांस बन रहा है। सोचिए पांच साल तक प्रधान जी ने क्या किया होगा ? और प्रशासन की कैसी भूमिका थी।
पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि हर तरफ से एक ही शोर सुनाई दे रहा है कि गोवंश के लिए समय से पैसा नहीं मिलता , परंतु चित्रकूट के पड़ोसी जनपद बांदा से खबर आती है कि गोशाला के लिए पर्याप्त धन मिल रहा है। इसके बाद समझ नहीं आता कि जनपद चित्रकूट के समस्त ब्लाक से धन ना मिलने की खबर सच है या अफवाह ! इस सच्चाई को जनपदीय प्रशासन सिद्ध कर सकता है।
जब हम औदहा पहुंचे तो शाम की ठंड मे गाय को ठिठुरते हुए पाया। लगभग दो सैकड़ा गाय खुले आसमान के नीचे पैरा खाते हुए जिंदगी और मौत का संघर्ष करते दिखीं। बड़ी बात है कि पीने का पानी गड्ढे मे भरा हुआ है। गोवंश के लिए अब तक एक पक्की चरही नहीं बन सकी।
साहब , प्रधान और प्रभावशाली लोग कांच के गिलास मे पानी पीते हैं परंतु सनातन संस्कृति के तैंतीस करोड़ देवताओं वाली गाय गड्ढे मे पानी पीने के लिए मजबूर है। जिस गाय से लोगों के पाप मिट जाते हैं वही गाय लोगों के पाप का शिकार हो रही है।
गांव के ही सुनील पांडेय व दर्जनों ग्रामीणों ने बताया कि हमने आज तक गाय को भूसा आते हुए नहीं देखा। संभव है कि कागजों मे भूसा भी आता हो लेकिन चरवाहों का कहना है कि उन्हें भी छः महीने से वेतन नहीं मिला ! इतनी बुरी स्थिति है।
जिस गाय और गोशाला से गांव की अर्थव्यवस्था सही हो सकती है। गाय का दूध गांव से देश – विदेश मे बेचा जा सकता है। उसी गाय को माता कहने वाले यह महत्व नहीं समझ रहे हैं। आजकल गाय का गोबर आनलाइन बिक रहा है परंतु गाय से गांव की अर्थव्यवस्था तब मजबूत होगी जब युवा और संवेदनशील नेतृत्व गांव को मिल सके।
इस संबंध में हमारी चर्चा गांव के सचिव मान सिंह से हुई। उन्होंने कहा कि ठंड के दिनों के लिए गाय की विशेष व्यवस्था की जा रही है। पूर्व मे जो कमियां रह गई हैं उनको पूर्ण कर अच्छा काम किया जाएगा। किन्तु पांच साल के सवाल के जवाब में प्रधान की जवाबदेही तय करने की बात कही गई। सचिव ने 25 दिसंबर के बाद से बड़े तेज प्रयास किए हैं और अस्थाई गौशाला से स्थाई गौशाला के लिए जमीन आवंटित होने की बात भी कही है।
खैर द्वंद और हकीकत के बीच सच्चाई यही है कि समाज , सरकार और गांव के नेतृत्व ने तैंतीस हजार देवताओं के निवास वाली गाय की इतनी बुरी दशा कर दी है कि अफसोस है। आस्था अपनी दयनीय दशा मे है , आशा है कि भविष्य मे कुछ अच्छा हो सकेगा।
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{ Saurabh Chandra Dwivedi
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Karwi Chitrakoot }