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By – Saurabh Dwivedi

भारत को विश्व गुरू बनना है। वह भी शायद राजनीति के जरिए और सरकार के बल पर , लेकिन ये बड़ी भूल है ! भारत विश्व गुरू बनेगा तो नागरिक चेतना और बौद्धिक युवाओं के बल द्वारा , किन्तु विचारणीय है कि भारत के नागरिक और युवा इस ओर चिंतन कर रहे हैं अथवा उनकी चेतना सुप्त हो चुकी है।

कुछ अधिक नहीं परंतु रशिया जैसे देश के नागरिक और युवाओं की वर्तमान क्रांति के जरिए भारत और रसिया के अंतर को महसूस कर चिंतन किया जा सकता है कि भारत विश्व गुरू बनेगा अथवा नहीं ?

रशिया की जनता राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ आंदोलन कर रही है और युवा सवाल कर रहे हैं। विषय वही है , जो भारत में बहुत पहले घटित हो चुका है और मनमाने तरीके से सरकार ” सरकारी नौकरी ” की उम्र बढ़ाती रही है। साथ ही पेंशन खत्म कर देती है।

ब्लादिमीर पुतिन ने एक फैसला लिया कि महिलाएं 55 वर्ष काम करने के बजाए 60 वर्ष काम करें और पुरूष 60 वर्ष के बजाए 65 वर्ष तक काम करें। इस एक फैसले से ब्लादिमीर पुतिन की लोकप्रियता के बादल छटने लगे और वहाँ के बुजुर्ग नागरिकों ने पुतिन के खिलाफ नारे लगाए और सवाल करने लगे कि आप कब पेंशन पर जाओगे ? अर्थात वो उम्र के हिसाब से पुतिन की छुट्टी चाहते हैं।

इससे पूर्व पुतिन की लोकप्रियता का ग्राफ ही था कि लगातार रूस के राष्ट्रपति चुने जाते रहे। लेकिन उनके इस फैसले से रूस की जनता को महसूस होने लगा कि जिंदगी के खिलाफ फैसला है और इतने लंबे समय तक वे काम नहीं कर सकते हैं। आखिर काम के बाद जिंदगी की पचास – साठ पार उम्र में वे कुछ और भी करना चाहते हैं।

रूस के युवा भविष्य की चिंता करते हैं और कहते हैं कि इतनी लंबी अवधि तक लोग नौकरी करेंगे , तो बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो जाएगी ? युवाओं को रोजगार नहीं मिलेगा। बड़ी तादाद में बेरोजगार ” युवा ” हो जाएंगे।

फर्क सिर्फ पांच वर्ष का है। हमारे देश भारत में यह सब बड़ी आसानी से हल्का – फुल्का कम ज्यादा होता रहता है। यहाँ तक की रिटायरमेंट के बाद भी लोग नौकरी में बने रहना चाहते हैं। उनकी कोशिश होती है कि कुछ वर्ष और बढ़ जाएं।

भारत में लोग शीघ्र रिटायरमेंट लेना नहीं चाहते और पेंशन भी अच्छी चाहते हैं। ये भारत की जनता की मानसिकता है। जबकि भारत चीन के बाद विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है तो क्षेत्रफल के मामले में चीन से कम है। सौ करोड़ पैंतीस लाख के करीब आबादी और रोजगार की समस्या मुंह बाएं खड़ी रहती है।

हमारे देश में पूरानी पेंशन बहाली के आंदोलन होते हैं। लेकिन नौकरी का समय कम करने की चिंता किसी को नहीं होती। कुछ वर्ष नौकरी के कम हो जाएं तो युवाओं को नौकरी के अवसर बढ़ जाएं। खैर इस ओर चिंतन की कोई बात ही नहीं है।

रूस की इस राजनीतिक – सामाजिक घटना से यह तय है कि भारत राजनीतिक और सामाजिक सोंच में अन्य देशों के मुकाबले बहुत पीछे है। यहाँ के नागरिकों का चिंतन कमतर है एवं चेतना सुप्त हो चुकी है। भारत की राजनीति किसी भी सूरत ए हाल में अन्य देशों के मुकाबले अच्छी नहीं कही जा सकती और सरकार का कामकाज पूर्णतया नागरिक हितों पर होता तो नागरिकों में चेतना जागृत होती।

भारत में धर्म , जाति आधारित मुद्दों के अलावा कभी ऐसे नागरिक हितों पर आंदोलन नहीं होता। यहाँ तक की इस देश की जनता जनसंख्या नियंत्रण पर भी समान भागेदारी से चिंतन नहीं कर सकी और ना ही सरकार से मांग कर सकी। ऊपर से कोई राजनीतिक दल इन सब नागरिक हितों को मुद्दा बनाने की हिम्मत नहीं रखता।

भारत के नागरिकों को विश्व गुरू का सपना तब देखना चाहिए , जब वे रूस के बुजुर्गों और युवाओं की तरह जागृत चेतना वाले हो सकें। कुल मिलाकर ये देश इमारत में मकड़ी के जाले और गेहूं में घुन की तरह का रह गया है। यहाँ का नागरिक जीवन की समझ से बहुत दूर हैं। भारत को अभी लंबी यात्रा तय करनी होगी और इसकी जिम्मेदारी भी नागरिकों को लेनी होगी। संस्थागत प्रयास करने होगें।

राजनीतिक और सरकारी स्तर पर बहुत व्यापक बदलाव नहीं हो सकता। अभी भारत में सुप्त चेतना को जगाना बाकी है और जिंदगी को महसूस करना शेष है। समझ को गहरी करने की जरूरत है। रूस और भारत के मध्य यही फर्क है और रूस भारत से अधिक सशक्त है तो उस देश के नागरिकों ने हर स्तर पर जिम्मेदारी का वीणा उठाया है और भारत में ? सवाल है और सवाल बना रहेगा और इस सवाल का जवाब भारत का हर नागरिक जानता है कि राष्ट्र के प्रति कितनी ईमानदार जिम्मेदारी का वहन अपने-अपने कार्यक्षेत्र पर किया है !

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