डिजिटल हाज़री सुनने मे आम जन के मन को भाने वाला डिसिजन लगता है जैसे नोटबंदी देश के हर गरीब और मध्यमवर्ग को भा रही थी लेकिन अब भाजपा वाले नोटबंदी का नाम नही ले पाते , क्यों ? ऐसा ही एक निर्णय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से करवाया जा रहा है।
ऐसे नियम कायदे कानून आईएएस लाॅबी के टेबल से निकलकर सरकार के माध्यम से आम जन और तमाम सरकारी विभाग मे लागू हुआ करते हैं ! जबकि आईएएस लाॅबी खुद की हाज़री की गवाही के लिए ऐसा कोई नियम लागू नही करवाती।
डिजिटल उपस्थिति के विरोध और सहमति के मद्देनजर देखें तो इसका विरोध क्यों ना हो ? जो सहमति जता रहे हैं उनको भी सोचना चाहिए कि सिर्फ डिजिटल उपस्थिति से सरकारी शिक्षा के हालात सुधर जाएंगे ? अगर हालात तत्काल सुधर जाएं तो इस निर्णय के लिए सराहना होनी चाहिए लेकिन जिस प्रकार का एक और विवाद खड़ा हुआ उससे जो अविश्वास जन्म ले रहा है , इसकी भरपाई कौन करेगा ?
उत्तर प्रदेश सपा शासनकाल से शिक्षा माफियाओं के लिए विख्यात रहा है। मुलायम सिंह यादव ने नकल से फर्जी डिग्री के कारोबार मे उत्तर प्रदेश को बड़ी पहचान दिला दी थी तो कल्याण सिंह कभी नकल अध्यादेश लेकर आए थे और तब से ही उत्तर प्रदेश एजुकेशन के मामले पर बड़े सुधार का मुंह ताक रहा है।
हुआ क्या ? शिक्षा माफिया इस तरह सक्रिय हुए कि स्कूल – कालेज की बिल्डिंग ही अच्छी शिक्षा का प्रमाण मानी जाने लगी। इन माफियाओं ने आकर्षक लुक मे बिल्डिंग्स बनाई हैं और शिक्षा का व्यापारीकरण किया है।
ऐसे माफिया समय-समय पर सरकारी शिक्षा को बदनाम करने की बड़ी अवधारणा तैयार करते रहे हैं। जैसे धीरे धीरे यह माना जाने लगा कि सरकारी स्कूल मे पढ़ाई नही होती , वहाँ के पढ़े बच्चे जीवन मे कुछ नही कर पाते तो इस तरह मध्यमवर्गीय परिवार अपने बच्चों को प्राइवेट विद्यालय मे कर्ज लेकर पढ़ाने लगा और इस तरह हर परिवार शिक्षा के कर्ज के बोझ के तले भी दबने लगा।
सरकारी स्कूल मे कौन पढ़ने जाता है ? गांव के गरीब परिवार के बच्चे और शहर के गरीब बच्चे ही पढ़ने जाते हैं , हालात ऐसे आ गए थे कि इन सरकारी स्कूल की तरफ कौन देखेगा तो मिड डे मील की योजना शुरू की गई ताकि दोपहर के भोजन के नाम पर ही सही कम से कम बच्चे स्कूल तो आएं !
स्कूल चलो अभियान इन सरकारी स्कूल की हालत को सुधारने के लिए शुरू किया गया और बच्चों को ड्रेस आदि की व्यवस्था की जाने लगी इन सभी व्यवस्थाओं के बीच भी सरकारी शिक्षा कराहती रही और शिक्षक तमाम अन्य सरकारी कार्यों के बोझ तले छात्रों को पढ़ाते रहे।
युवा पीढ़ी के जो नए अध्यापक आए हैं वे देश – समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं और अपना सबकुछ झोक कर बच्चों को पढ़ाने की गुड न्यूज भी सुनने को मिलती है लेकिन डिजिटल हाज़री ने एक बार फिर सरकारी शिक्षक से भरोसा उठाने का काम किया है यह विवाद जन चर्चा का विषय बन चुका है।
जिस देश – प्रदेश और समाज मे शिक्षा और शिक्षक का विश्वास नही रह जाएगा वह बर्बाद होने से भी ज्यादा बर्बाद हो जाएगा तो कहा जा सकता है कि इस प्रकार का नियम बनाने से पहले शिक्षकों को अधिक से अधिक सुविधा और शैक्षणिक कार्य के सिवाय कोई और काम नही सौपने का नियम बनाना चाहिए था।
शिक्षक के पास सिर्फ और सिर्फ एक ही काम हो कि छात्र – छात्राओं को पढ़ाना है और सुविधाएं किसी डीएम से कम नही होनी चाहिए क्योंकि पढ़ाना – लिखाना सबसे उत्तम कार्य है और खराब माहौल मे सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसलिए एक अच्छा माहौल शिक्षकों के लिए होना चाहिए अगर सरकार शिक्षा का स्तर सुधारना चाहती है तो डिजिटल प्रेजेंटेशन से ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य शिक्षक और शिक्षा के लिए करना चाहिए।
अभी तो यह निर्णय योगी सरकार को गुमराह करने वाला लग रहा है कि सरकारी शिक्षा का एक और विवाद होने से गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों का सरकारी शैक्षणिक व्यवस्था से विश्वास उठ जाएगा तो इसका लाभ प्राइवेट स्कूल चलाने वाले छोटे – मोटे और बड़े शिक्षा माफियाओं को होगा जो लगातार हर परिवार मे मानसिक डाका और आर्थिक डाका डाल रहे हैं और महलों मे निवास कर अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी धन की कोठियां भर रहे हैं।
इस डिजिटल प्रेजेंटेशन के पीछे एक ऐसा ही षड्यंत्र फील होता है कि हो ना हो शिक्षा माफियाओं का यह बड़ा षड्यंत्र है जिसमे योगी सरकार फंस रही है। यह एक माइंड गेम की तरह है कि सरकारी शिक्षकों से विश्वास खत्म होते ही अगले कुछ वर्षों मे प्राइवेट स्कूल – कालेज का बोलबाला रह जाएगा , शिक्षा माफियाओं के पर्दे के पीछे के खेल को समझना चाहिए।
अतः समय रहते सरकार को सस्ती और अच्छी शिक्षा के लिए शिक्षकों के हित वो समस्त निर्णय लेने चाहिए जिससे वो सिर्फ शैक्षणिक कार्य करें और अच्छे माहौल मे बच्चों को पढ़ाकर राष्ट्र निर्माण मे योगदान दें , निजी स्कूल कालेज मे कड़ाई से नियमों का पालन हो और वहाँ भी सस्ती शिक्षा के नियम बनें अन्यथा की स्थिति मे देश – प्रदेश को बर्बादी से कोई रोक नही सकता।