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पृथ्वी , प्रकृति और नारी के स्वभाव मे समानता है। स्त्रियाँ सृजन करने के लिए हैं और प्रकृति जीवन का सृजन करती है तो पृथ्वी सृजन का आधार है , इसलिए मैं समझती हूँ कि आधी आबादी की जिम्मेदारी से वैश्विक स्तर पर पृथ्वी दिवस के उद्देश्य को साकार किया जा सकता है।

बेशक पृथ्वी दिवस की परिकल्पना एक पुरुष ने की जो अमेरिका के सीनेटर गेलार्ड नेल्सन हैं लेकिन वास्तविक हालात बता रहे हैं कि पुरूषों ने अपने प्रयास मे वह सफलता नही हासिल की जो अब तक होना चाहिए था।

मोटी समझ मे देखें तो अप्रैल का महीना है और भारत के 90% हिस्से मे लू चलने लगी है। जैसे कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एक शोध बताता है कि भारत का 90% भूभाग हीट वेव और लू का शिकार हो चुका है।

इस परिवर्तन को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़ी गंभीरता से महसूस करते हैं इसलिए वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन मे उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चपेट मे पूरा विश्व है। इधर उत्तर प्रदेश मे 10 – 11 अप्रैल को नेशनल क्लाइमेट कानक्लेव आयोजन लखनऊ मे हुआ जिसका उद्घाटन केन्द्रीय मंत्री अश्वनी चौबे ने किया और उन्होंने कहा ” ये देश हमे देता है सबकुछ , हम भी तो कुछ देना सीखें।

उनका यह कथन इतना महत्वपूर्ण है कि देश को कुछ देने का समय है जैसे कि पृथ्वी दिवस 2023 की थीम साफ संकेत देती है कि ( Invest in our planet ) हमारे गृह में निवेश करें। तो समय की मांग है कि हम प्रकृति से जो ले रहे हैं उसका जिम्मेदारी से निवेश भी करें अन्यथा सांकेतिक चेतावनी मिल रही है कि एक दिन बड़ा विध्वंस होगा और प्रकृति के विध्वंस पर मानव नियंत्रण नही कर पाता।

सृजन प्रकृति का जीने की सांसे देता है और मन मे उमंग पैदा करता है जिससे हम मनुष्य जीवन का महान लक्ष्य साध लेते हैं। पृथ्वी मे जन्म लेकर हम जीवन का आनंद प्राप्त करते हैं लेकिन जिस तरह से प्रकृति के साथ छेडछाड हुई है उससे मानव जीवन मे संकट उत्पन्न हो रहा है।

यह संकट इस तरह का है कि गर्मी के दिनों मे भारत की 80 फीसदी आबादी लू की चपेट मे रहेगी और इससे होने वाले रोग का शिकार होगी , कमोबेश वैश्विक स्तर पर प्रत्येक देश मे लगभग यही हालात बन चुके हैं।

ऐसे संकट से निपटने के लिए सन 1970 मे विश्व पृथ्वी दिवस की शुरूआत संयुक्त राज्य अमरीका से हुई , जिसे विश्व के लगभग 192 देशों ने स्वीकार कर लिया और साझा कार्यक्रम के तहत पृथ्वी के लिए काम करने के लिए चिंतन हुआ।

सकारात्मक चिंतन के बाद भी पृथ्वी पर जीवन को लेकर अगर गंभीर होते तो आज रूस – यूक्रेन का युद्ध जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण ना बनता लेकिन गौर किया जाए तो कितनी बारूद वायु मे मिश्रित हो चुकी होगी जो पड़ोसी देश और विश्व को चिंताजनक हालात मे लाकर खड़ा कर देते हैं।

शुद्ध वायु और शुद्ध जल से स्वस्थ जीवन की कल्पना साकार होती है। इसलिए दुनिया के किसी कोने मे होने वाला युद्ध पृथ्वी दिवस जैसे वैश्विक कार्यक्रम की छवि खराब करने लगता है , इसलिए युद्ध रोकने के लिए कोशिश होनी चाहिए और भविष्य मे किसी भी विवाद के लिए युद्ध ना हो इसके लिए साझा प्रयास होना चाहिए।

साथ ही जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण करने के लिए पृथ्वी पर निवेश करने की सोच प्रबल होनी चाहिए और ये निवेश बहुत सरल है कि हर व्यक्ति पौधारोपण करे व उसके बड़े होने तक पालक माता – पिता बनें जो उस पौधे को जल दें और सुरक्षा कवच भी तैयार करें जिससे जितना जंगल का क्षेत्र बढ़ेगा उतना प्रकृति मे संतुलन स्थापित होगा।

इस काम मे पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। गाँव की महिलाओं को पौधारोपण करने को कहा जाए और बड़े होने तक उनकी रक्षा करें , एक संगठन सिर्फ और सिर्फ पृथ्वी मे इस तरह के निवेश करने के लिए बनना चाहिए। जैसे कहते हैं कि संगठन से समृद्धि तो पृथ्वी समृद्ध होगी नागरिकों के संगठनात्मक प्रयास से , किसी भी देश के नागरिक हों सभी पृथ्वी के लिए काम करें तो संकल्प लें अपने हित और वैश्विक हितों के लिए जलवायु परिवर्तन मे नियंत्रण स्थापित करना हमारा प्रथम लक्ष्य है।

दिव्या त्रिपाठी चित्रकूट
( लेखिका पर्यावरण संरक्षण की जानकार हैं एवं नेशनल क्लाइमेट कानक्लेव 2023 मे प्रतिभाग कर चुकी हैं और महिला मोर्चा भाजपा की जिलाध्यक्ष हैं )

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