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By :- Monica sharma

तुम सबको
अपने होने का अहम था
ये” मैं ” “मेरा”होने की प्रक्रिया
जहां तुम सब तो थे
पर
मैं नही थी…
ये दँम्भ
मुझे डुबोता चला गया
उस दलदल में
जो तुमने और
उन अपनों ने बनाई
जिनकी फिकरों में…
मैंने…
स्वयं की साँसे रोक ली

अब क्या चाहते हो
क्यों हैं शिकायतें
तुम सब को
ये तुम्हारे कर्म थे
भोगा फिर भी मैंने
मुझे चीख चीख कर
कहना चाहिए था
अब भी
तब भी
अब क्या चाहते हो
मुझसे..
काश!!
कह पाती के
मुझे खत्म करने में
मेरी किस्मत नही
तुम सबका हाथ था
काश!!
चिल्ला के कहती
मुझ से कुछ मत कहो

मेरा तो कुछ नही
सब कुछ उसी दिन छूट गया
जिस दिन तुमने पराया किया
और
अब भी पराई रही
कुछ तुमने छोड़ा
कुछ किसी ने छुड़वा दिया
अब मैं
किसी की भी नही रही
मत कहो मुझे कुछ
मेरा कोई नही
न मैं किसी की हूं
मैं शून्य में हूं
जहां मैं भी मेरी नही रही

दिल तो
बार बार टूटता रहा
बिखरता रहा
पर सांसों को बचाये रखने क्रिया
जोड़े रही
संस्कारों के ढोल पर
तुम सबके लिए
तुम सब के मोह में
पीड़ा की रस्सी पर
सांसों को नटनी की तरह
नचाती रही

पर अब दिल से परे
एक मैं
किसी तसवीर की तरह
बकाया थी
आज वो भी दरक गयी
तुम सब अपने हिसाब
गिनाते रहे
जो मुझे में आई तरेडे
उनका हिसाब
किस से माँगू
कौन देगा
कौन सुन रहा है
कौन सुनेगा
रिश्तों की इस दलदल में
किसे सुनेगी
मेरी आहें
मेरी कराहें
मुझे यूँ ही खत्म हो जाना है
बिना आवाज़ के
मेरे जाने के बाद
करते रहना
हिसाब किताब
वो मेरे होने का
मुझे खोने का…

( मोनिका शर्मा फेसबुक पर मनोभाव को जीती हुई लेखिका हैं जो जिंदगी को जीती हैं और महसूस करती हैं , वो स्याह सच लिखती हैं। उनके शब्दों में गहरा दर्द और प्रेममय जज्बात हैं। इन्हें फेसबुक पर खूब पसंद किया जा रहा है )

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