@Saurabh Dwivedi
कामतानाथ परिक्रमा मार्ग की दुकान पर बैठा था। एकाएक तीन – चार फोर व्हीलर आईं। उनसे संत महराज बाहर निकले वैसे ही सुरक्षा कर्मी भी साथ निकल आए। मैंने देखा एक संत का जीवन , वह भी कलयुग मे अमर हनुमान जी के भक्त संत हैं। जो वैभव मैंने देखा ताड़ता रह गया कि देखो जीवन ऐसा भी हो सकता है ? फिर आत्महत्या ?
पिछले दिनों मेरे मन मे विचार आ रहा था। जीवन हनुमान जी की तरह होना चाहिए। हनुमान जी का जीवन संत का जीवन है , एक सेवक का जीवन है। वह श्रीराम के अनन्य भक्त और सेवक हैं। राम राज्य की परिकल्पना मे कभी हनुमान जी जैसे जीवन का संवाद नहीं होता बल्कि हम आधुनिकता बाजारीकरण के बाजीगर जीवन मे घिरते चले जाते हैं।
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लगभग एक महीने हो रहे होंगे , जब इन संत आत्मा को मैं नजदीक से देख सका आशीर्वाद लेने की इच्छा थी पर जहाँ इतनी पुलिस हो और भागम-भाग लगी हो वहाँ आशीर्वाद कैसे लिया जा सकता है ? आशीर्वाद लेने-देने का समय भी कहाँ ? एक जीवन उस पल अपने उच्चतम स्तर पर था।
क्या तड़क-भड़क थी ! कहते हैं संत का आशीर्वाद लेकर मनुष्य जीवन का कल्याण हो जाता है। कष्ट कट जाते हैं और सुखद जीवन के पट खुल जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरा मानसिक संवाद अंतर्मन मे चल रहा था। कहाँ पता था कि यह आत्मा कुछ ही दिनों बाद सिर्फ और सिर्फ दैहिक नाम ” नरेन्द्रगिरि जी महाराज ” के नाम से जानी जाएगी और दिवंगत हो चुकी होगी।
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तो क्या मुझे जो बाहर वैभव दिख रहा था। वह माया थी ? जो बाहर से इतना प्रभावशाली था। जिसकी पहुंच सीधे मुख्यमंत्री से थी। जो संकट मोचक के अनन्य उपासक थे उनकी यह गति ? एक शिष्य आत्महत्या का कारण बन गया ?
हनुमान जी की एक किताब है उस पर पढ़ा था कि समस्त आत्माएं परमात्मा की एक किरण मात्र है। तो क्या परमात्मा ने आत्महत्या से इस देह की आत्मा की मुक्ति तय कर रखी रही होगी ?
कितना हतप्रभ करने वाला है यह ! सामान्य लोग सामान्य जीवन मे अनेकानेक समस्याओं का सामना करते हैं। आज के समय मे जीवन की जटिलता को सरलता मे तब्दील करने हेतु धर्म – आध्यात्म सबका सहारा लेते हैं , पत्थर की मूरत ईश्वर को शरणागत होते हैं। जीवन की सांसे चलती रहें इसके लिए रोज वह अवसर की तलाश करते हैं , पलायन करते हैं कमाने के लिए। जब तक सांसे चलती हैं वह हर संभव सुखद जीवन का प्रयास करता है। उसे मंदिर की ऊर्जा से भी कुछ समय के लिए ही सही आत्मिक सुख मिलता है।
भौतिक – आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से बलिष्ठ व्यक्तित्व आत्महत्या कर सकता है तो आत्महत्या जस्टीफाई होने लगती है। यहाँ तो सामान्य जीवन मे जाने कैसी और कितनी जटिल समस्याएं आ जाती हैं फिर उनका मालिक कौन होगा ? यह कहा जा सकता है कि समस्त वैभवमय आभा के मध्य संत महराज की आत्मा कमजोर हो चुकी थी , यदि आत्महत्या जैसा कि सुसाइड नोट कहता है।
इनकी आत्महत्या से राजनीतिक और सामाजिक जिम्मेदार लोगों को वक्त रहते विचार करना चाहिए कि समाज का कितना पतन हो चुका है और अब भी नहीं माने तो कोई महामारी ही सबक सिखाती है। ऐसी घटनाएं अब सरल सहज वर्णन की अभिव्यक्ति हो जाएंगी।
अंततः श्रद्धांजलि।