भागवत कथा के अंतिम दिन भक्ति मार्ग का वर्णन कर जीवन मार्ग को साधने की साधना राजगुरू की दिव्य वाणी ने सुनाई। एक स्वर सुनाई दिया कि जगत मे नारायण की भक्ति ही श्रेष्ठ है। भक्ति के बिना ज्ञान लंगड़ा होता है और ज्ञान के बिना भक्ति अंधी होती है। इसलिए मनुष्य के जीवन मार्ग मे ज्ञान और भक्ति का एक साथ महत्व है।
सुदामा और श्रीकृष्ण की मित्रता मे ज्ञान और भक्ति का अद्भुत समागम है। सुदामा मित्र होकर भी नारायण के भक्त हैं और जब उन्हें ज्ञान हुआ तब श्रीकृष्ण के पास पहुंचे फिर सुदामा कितना बदल गए , सभी जानते हैं। भगवान ने उन्हें प्रेम भाव देकर राजपाठ भी दिया। एक समृद्ध सुदामा हो गए।
किन्तु इसी पल राजगुरू ने प्रेम की ऐसी कहानी सुनाई जैसे भगवान स्वयं लीला कर रहे हों कि पल भर मे भ्रम तोड़ देते हैं……..
सुनिए ; एक नवयुवक था। वह हर रोज भागवत कथा सुनने आता था। मुश्किल से 5 मिनट सुनता और फिर उठकर चल देता। कथा सुनाने वाले व्यास जी उस नवयुवक को हर रोज देखते। उन्होंने एक दिन उस नवयुवक से पूछा कि तुम आते हो 5 मिनट सुनते और फिर चले जाते हो , सुनना है तो कम से कम थोड़ा देर तक सुनो या पूरी कथा सुनकर जाया करो तभी ज्ञान लाभ होगा तुम्हे।
वह नवयुवक बोलने लगा महराज जी बात सही कह रहे हो आप , लेकिन मेरी एक समस्या है घर मे बूढ़े माता – पिता हैं। वह मुझे तनिक देर ना देंखे तो भारी समस्या हो जाती है। मैं ही उनकी सेवा करता हूँ। इसलिए माता पिता के प्रेम मे उनकी सेवा के लिए इतनी सी कथा सुनकर शीघ्र घर वापस हो जाता हूँ।
कथा व्यास ने कहा ठीक है बेटा। मैं तुम्हे एक प्रसाद दे रहा हूँ। घर पहुंचकर रात मे खाना खाने के बाद इसे खा लेना। तुम्हारी देह का तापमान बढ़ेगा , पूरी देह जलने लगेगी पर तुम्हे होगा कुछ नहीं। सुबह मैं आऊंगा तो तुम्हारा इलाज कर दूंगा लेकिन तुम्हे प्रेम का वास्तविक दर्शन कराए दूंगा।
उस नवयुवक ने महराज जी की बात मान ली और घर पहुंचकर वैसा ही किया। वो प्रसाद खाने के बाद उसका शरीर जला जा रहा था। चीख पुकार मची , माता पिता परेशान हुए। कोई तरह रात कटे फिर सुबह इलाज हो सके। उस नवयुवक को कोई तरह नींद आई।
सुबह हुई , पंडित जी ने कुंडी खटखटाई। उसके माता पिता से भेट हुई। उन्होंने बातचीत के दौरान पंडित जी को अपने पुत्र की व्यथा बताई। पंडित जी ने कहा मैं इसका इलाज कर दूंगा। पानी और मंत्र पढ़कर बिल्कुल ठीक कर दूंगा। सभी राजी हो गए।
अब पंडित जी ने मंत्र पढ़ते हुए उस नवयुवक को नहलाना शुरू किया। धीरे धीरे नवयुवक की देह का तापमान गिरने लगा और देह सामान्य अवस्था मे आ गई।
नवयुवक के माता पिता ने पूछा कि अब ठीक हो गया हमारा बेटा ?
पंडित जी ने कहा हाँ ठीक तो हो गया पर पूरी तरह से नहीं। असल मे ये जो जल इसकी देह का है उसे पीना पड़ेगा किसी परिजन को , माता पिता पी लें या पत्नी पी ले। लेकिन इसमे एक खतरा है जो भी जल पिएगा उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
मृत्यु का नाम सुनते ही माता पिता और पत्नी अवाक रह गए। पिता कहने लगे हमारा तो बुढ़ापे का शरीर है। हम कैसे पी सकते हैं ? अभी तीर्थाटन करना है। नीतियों का विवाह देखना है। हम मर जाएंगे तो पता नही क्या होगा ?
अब नवयुवक की पत्नी का नंबर आया। उसने कहा कि अरे मेरी उम्र ही कितनी है ? अभी मुझे बहुत कुछ करना है। उसने भी जल पीने से इंकार कर दिया।
अब बचे सिर्फ पंडित जी। नवयुवक के माता पिता और पत्नी कहने लगे अरे पंडित जी आपके आगे पीछे कोई नहीं इसलिए आप ये जल पीकर हमारे बच्चे की जान बचा लो , मतलब पंडित जी मरे तो मरें।
पंडित जी ने कहा ठीक है। उन्होंने जल उठाया और गटगट कर पी गए। जल पीने के साथ ही वह बाहर निकल पड़े इतने मे वह नवयुवक भी पंडित जी के पीछे – पीछे हो लिया। नवयुवक को प्रेम का भेद समझ आ गया। वह समझ गया पंडित जी का प्रेम वास्तविक प्रेम है और परिजनों का प्रेम मिथ्या था , वह स्वार्थ मोह माया वाला प्रेम था।
कथा व्यास श्री श्री 1008 श्री बद्री प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ मे स्रोताओं के हृदय की ग्रंथियों को अवश्य तोड़ दिया। जिसने भी कथा एकाग्र होकर सुनी उसे आत्मा – परमात्मा , द्वैत – अद्वैत का ज्ञान हो गया। यह भी कहा जा सकता है कि प्रभु की असीम कृपा राजगुरू पर है या प्रभु स्वयं ही कथा कहते हैं उनकी वाणी दिव्य है।
जय श्रीकृष्ण