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मैं अक्सर उस राज दरबार में जाता हूँ। वो हमेशा मुझे पानी लेकर आता रहा , मन के मुताबिक जल गृहण करता और नहीं भी। कुछ खाने के लिए पारंपरिक तरीके का जो आता रहा वह मैने खाना बंद कर दिया।
अनेक बार मन की आंखो से महसूस किया , जो राज दरबार में जुगाड़ वाली अर्जी लगाने पहुंचते हैं। वही उसके ऊपर हिटलर वाला जलवा बिखेरते हुए पानी लाने को रौब झाड़ते हैं , यह देखकर मुझे बुरा लगता पर कभी कभी बुरा सहना मजबूरी होती कि क्या हम ही समाज सुधारक हैं ? उससे ज्यादा वैसे लोगों पर तरस आता।

अमूमन मेरे लिए स्पेशल तौर से चाय आफर की जाती और समय के अनुसार चाय पीता अथवा नहीं , सनद रहे वह ऐसा राज दरबार है जहाँँ सबको चाय मुहैया नहीं होती।

पिछले दिनों वह मुझे एक गली में मिला और हाथ जोड़ लिया। वही जो वहाँ किसी मूक बधिर से कम महसूस नहीं होता था , जब मैंने पूंछा कैसे हो आप ?

जवाब में पता चला कि तबियत खराब है , इसलिये छुट्टी ली है। उसकी हालत बहुत निम्न महसूस हो रही थी। इलाज के खर्च और आय की जानकारी ली तो पता चला कि आय ना के बराबर अधिकतम हजार से दो हजार ₹ बहुत थी।

राज दरबार के मालिक मौजूद हों तो उन दिनों सौ पचास ₹ अलग से मिल जाते अन्यथा वही महीने वाला वेतनमान लागू रहता। जबकि उसका कहना था कि तमाम लोगों को कम से कम पाच हजार मिल जाते पर उसके साथ यह अन्याय क्यों ?

मैने अनुमान लगाया कि संभव है कि राज दरबार के राजा को पता ही नहीं होगा और बीच वाले नर पिशाच रक्त चूस रहे होगें। मानव जब दानव बनता है तब जानवर से भी ज्यादा विषैला और खूंखार हो जाता है।

यह जाति और धर्म का संघर्ष नहीं बल्कि उच्च वर्ग के घमंडी या यूं कहें कि सामंतवादी मानसिकता के लोगों और गरीब तबके के बीच के हर व्यक्ति की डायरेक्ट फाइट है और गरीब तबके में भी सामंतवादी होते हैं। जिसे संवाद से खत्म किया जाना चाहिए था , उस पर नेतागिरी का नशा व सत्ता की लत हावी होकर हिंसक आंदोलन में तब्दील कर दिया और वैमनस्य खत्म करने के नाम पर समानता की बात कर वैमनस्य को बढ़ाने का काम कियाा।

भविष्य में यह बढ़ता ही जाएगा , तब तक जब तक जनता स्वयं जिम्मेदारी समझकर अच्छाई का सहयोग कर संवाद द्वारा आपसी मतभेद व मनभेद को मिटाने को तैयार नहीं हो जाती।

मेरा उस व्यक्ति से सिर्फ इतना सा रिश्ता था कि वह अक्सर पानी पिलाता और मन से थैंक्यू बोल देता था। उसकी हालत से पता चला कि राज दरबार से कोई जानकारी लेता नहीं , इसलिये सामर्थ्य अनुसार आर्थिक मदद कर दी , वैसे गुप्तदान महादान होता है पर समाज में जागरूकता और प्रेरणा हेतुु वर्णन करें तो आध्यात्मिक प्रवचन की श्रेणी में आ जाता है।
कहीं और काम दिलाने में मदद करने की बात कह कर पथिक की तरह पथ पर चल पड़ा।

मैं सोचे जा रहा था कि इसे कहते हैं दिया तले अंधेरा , अंतिम व्यक्ति के विकास की बात होगी पर समीप में रह रहे अंतिम व्यक्ति की मेहनत के आधार पर मजदूरी भी नहीं दी जाएगी। राजा को जानकारी हो या ना हो लेकिन राजा को जानकारी होनी चाहिए , राजा के गुप्तचर ही इंसान का रोया रोया चर रहे होते हैं।

तय मानिए कि आपने नेतृत्वकर्ता ऐसे चुने हैं कि वे संसद व विधानसभा तक में संवाद से हल नहीं निकाल सके इसलिये सड़क पर हिंसा के दृश्य दिखे और सब जानते हैं कि इंद्रराज की कुर्सी का खेल है।
यदि आपको देश और समाज से स्नेह है , आप परिवर्तन चाहते हैं तो संवाद करिए व संवाद पर मदद करिए। कमजोर लोगों के कंधे पर मजबूत लोगों का साथ होना चाहिए। कुरीतियों को खत्म कर कुत्सित मानसिकता वाले राक्षस राज व औरंगजेब की हत्या करनी होगी और वह वैचारिक हत्या हो , आखिर पुतले बहुत जला चुुके हैं।

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