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By :- Sujata mishra

सुबह कॉलेज जाने के लिए घर से निकली ही थी कि एक बेतहाशा रफ्तार से दौड़ती कार ने मेरी कार को राइट साइड से टक्कर मारी ओर भाग गई…मैं कुछ समझ पाती इससे पूर्व ही मेरा ड्राइवर भी उतनी ही रफ्तार से गाड़ी बैक कर टक्कर मारने वालों के पीछे भागा.. मैंने देखा ड्राइवर सीट का साइड मिरर टूट चुका था। मैंने ड्राइवर से कहा भैया जाने दो जो हुआ सो हुआ, आप मुझे कॉलेज छोड़ो बस…. पता नहीं ड्राइवर सीट पर बैठा हर व्यक्ति इतना अहंकारी क्यों हो जाता है कि सड़क चलती कोई गाड़ी उनसे आगे निकल जाए, या कोई टकरा जाए तो वो इसे सीधे एक चुनौती मानते हैं, और उस वक्त अपने साथ बैठे व्यक्ति की स्थिति या अपनी स्थिति भी नहीं देखते! जितनी तेज रफ्तार से टक्कर मारने वाले भाग रहे थे ,उतनी ही तेज रफ्तार से मेरा ड्राइवर भी गाड़ी भगा रहा था.

घबराहट के कारण मेरी हालत खराब थी… ड्राइवर ने कहा मैडम आप बस चुप रहिये इनसे मैं खुद निपटूंगा,जो नुकसान हुआ है वसूल के रहूंगा। आज शहर में चुनावी नामांकन भी था, काफी पुलिस तैनात थी, एक चौराहे पर जाकर अंततः वो कार रुकी। मैंने देखा उसमें 25 -26 साल के चार लड़के थे, सम्भवतः वो किसी नेता के टुटपुँजिये समर्थक थे, अस्त – व्यस्त कपड़े, चेहरे पर बिखरे बाल, हल्के नशे में थे …. पलक झपकते ही उन लोगो ने अपनी गाड़ी से नम्बर प्लेट हटा ली, और फिर मेरे ड्राइवर से उलझ गए। टक्कर मारने वाले कि नज़र मुझ पर पड़ी तो वो मेरे पास आया बोला गलती हो गयी मैम , मैंने कहा भुगतान करो, बोले पैसा नहीं है मैम कह तो रहा हूँ गलती हो गयी… ड्राइवर ने मुझे कार से निकलने से मना किया, वो तीनों – चारों मिलकर ड्राइवर से ही उलझ लिए। पता नहीं मार – पीट ,लड़ाई – झगड़े में लड़को को क्या मिलता है! वो लड़का फिर मेरे पास आया हाथ जोड़कर माफी मांगी, बोला मैम प्लीज़ माफ कर दो, मैंने कहा टक्कर मार के भागे क्यों? बोले , हो गयी गलती मैडम जी …. मैंने कहा चलो मेरे ड्राइवर से भी माफी मांगो और कहो अब दुबारा ऐसे गाड़ी नहीं चलाऊँगा …. उसने हाथ जोड़कर , सिर झुकाकर माफी मांगी और कहा आगे कभी ऐसी गलती नहीं होगी । पर मेरा ड्राइवर झुकने को तैयार नहीं हुआ , उसे बहुत समझाया और किसी तरह वहाँ से निकली । मैं लड़ाई – झगड़ा ,गाली – गलौच नहीं देख सकती । हाँ मैं थोड़ा घबरा गई थी, मुझे लगता है कि जोश में भी होश रखना चाहिए। जब उन्होंने माफी मांग ही ली तो मैं क्यों उन लड़कों के स्तर तक उतर के उनसे लड़ूँ?

ड्राइवर अभी तक नाराज़ है ! कह रहा है मैम आज आप बीच मे ना आती तो मैं उन लड़कों से वसूली करके ही रहता! भले ही मारपीट होती, या 100 नम्बर लगा के पुलिस को बुलाता…. आपकी वज़ह से झुकना पड़ा गया। इधर माधव जी का भी यही कहना है… भिड़ना चाहिए था, पुलिस को बुलाना था, उन्हें थाने पहुंचाना था…. क्योंकि सड़कों पर यही जँगलीराज है। इन दोनों को विश्वास है कि वो छोकरे मारपीट नहीं करते … लेकिन बतौर शिक्षक मेरा अनुभव यह है कि इस उम्र के छोकरे जोश में रहते हैं, होश में नहीं। उनसे उलझना ,उनके स्तर पर आकर लड़ना कम से कम मेरे बस की बात नहीं… न मैं अपने सामने किसी को लड़ते – पिटते देख सकती। क्यों रखना इतना अहंकार? माफी मांग लेना क्यों कम है? क्यों सड़क पर टकराने वाले दो लोग बगैर लड़े – पिटे , एक दूसरे के कपड़े फाडे बिना संतुष्ट नहीं होते! जनता भी सिर्फ तमाशा देखती है, अब टकराएं है ,अब लड़ेंगे… देखें कौन झुकता है! हम सब शहरी जंगली है!

दो दिन से तबीयत वैसे ही खराब थी, ये सब देख मुझे तो बुखार ही आ गया है …

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