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@Dr. chandra prakash rai

                                                                    

आज कृष्ण को फिर से आना ही होगा| अब कब आएंगे कृष्ण ? वो कब मानेंगे की पाप का घड़ा भर गया ? कब मानेंगे की समाजिक व्यवस्था को गालियों  की संख्या सौ नही करोड़ो से ज्यादा हो चुकी है ? कब मानेंगे की एक द्रोपदी नही बल्कि हर रोज कहीं ना कहीं हजारों द्रोपदियों का चीरहरण हो रहा  है ? अब कब मानेंगे की चारो तरफ केवल पाँच भाइयों का नही बल्कि करोड़ो का उनसे अधिकार छीना जा रहा है ?केवल एक अभिमन्यु नहीं अनेकों अभिमन्यु छल के चक्रव्यूह में घेर कर धोखे से मारे जा रहे हैं |

कब मानोगे कृष्ण की यमुना का पानी कालिया नाग नहीं कल कल बहती नालियों , फैक्ट्रियों व लोगों के निजी स्वार्थ के चलते फिर जहरीला हो गया है | तुम्हारे लोग उतने आजाद नहीं रहे की कहीं भी कुञ्ज गलियों में या उन खेतो और बागों में जब चाहे भ्रमण कर सके ,उन पेड़ों पर या उसके नीचे वैसे ही जा सके जैसें तुम्हारे साथ जाते थे! तुम्हारी प्यारी नदी जिसके जहरीली हो जाने पर तुमने कालिया नाग का बध किया था ,वह कहीं ज्यादा कलियुगी होकर जहरीली हो गयी है ,आदमी क्या पशु भी उसका पानी नही पी सकते है |

तुम्हारा प्यारा दूध और मक्खन,उसमें  भी लोग जहर मिलाने लगे हैं। तुम तों सर्वज्ञ हो व सर्व अंतरात्मा हो तब तों निश्चित ही तुम्हे यह सब पता ही होगा | फिर भी संकट में घिरी द्रौपदी की तरह ही मै तुम्हे आवाज लगा रहा हूँ कि अब तो आओ ना कृष्ण ! तुम सब जानते हो फिर भी आर्त स्वर पुकारेगा तो कुछ तो कहेगा ना ,कुछ तो शिकायत करेगा ना ,कुछ तों बताएगा ना और कुछ तो रूठेगा ना | हे कृष्ण! अब कब आ रहे हो ? क्या तुम देख रहे हो उन लाखो लोगों को जो किसी भी उम्र के है ,पर तुम्हे बुलाने के लिए मीलों लम्बी परिक्रमा करते हैं ,कभी गोवर्धन की तों कभी वृन्दावन और कभी बरसाने की |

कुछ भक्त तों पूरे ब्रज की ही परिक्रमा कर डालते हैं | ऐसे भी तो है लाखों जो तुम्हे बुलाने को जमीन पे लेटे-लेटे ही तन की सुध छोड़ मीलों पूरी परिक्रमा कर डालते हैं | जो चलते है छाले तों उन सबके पैरो में भी पड़ते है ,पर कभी सोचा की वह छोटा सा बच्चा ,वह कमजोर या भारी भरकम औरत या आदमी जो ठीक से चल भी नही पाते है ,जब – जब वे लेटे-लेटे ही पलटी मारते हुए तुम्हे बुलाने के लिए यह कोशों लम्बी परिक्रमा करते है तो उनका बदन कितना छिलता है और कितना दुखता है ? तुमने ही तों उस महाभारत के मैदान में अपना विराट स्वरुप दिखाया था और कहीं दूर आती हुई तुम्हारी आवाज ने कहा था की ‘ दुनिया में जो भी है  वह तुम हो या वह सब तुममे  ही समाहित है | सब तुम ही कर रहे हो | सब तुम ही हो तों जब इन सबके शरीर घायल होते है तों तुम भी तों घायल होते होगे’ | वह सारा दर्द तुम भी तो महसूस करते होगे फिर भी’ ? और कृष्ण जब सब तुम्ही हो और तुम्ही करते हो तो यह बिलकुल अबोध बच्चों  का अपहरण , हत्या ?द्रौपदियों का केवल चीरहरण ही नही बल्कि बलात्कार ? ये सारी मिलावट , जमाखोरी अन्याय ,जुल्म ,शोषण ,गैर बराबरी क्या यह सब तुम्ही करते हो ? नही तों तुम्हे अब इन सब कृत्यों पर तनिक भी क्रोध नही आता ? क्या तुम्हारा न्याय का संकल्प कुछ कमजोर हुआ है , या तुमने उस युग में इतनी मेहनत कर दी की इस कलयुग में लम्बे विश्राम का फैसला कर रखा है.

बांके बिहारी मंदिर चित्रकूट

जरा एक बार देखो तो अपने ही विराट स्वरुप के इन हिस्सों को भी | अगर कही ऊपर रहते हो तो एक बार झांक कर देखो अगर नीचे रहते हो तो उठ कर देखो और अगर हर जगह रहते हो तो जाग कर देखो आँखें खोल कर देखो तुम्हारा भारत बिना तुम्हारे चाहे और रचे ही महाभारत में तब्दील हो चुका है | देखो हर घर  में महाभारत , हर गाँव में महाभारत , हर जाति और धर्म में महाभारत | पहले एक महाभारत हुई थी तो सब ख़त्म हो गया था और युधिष्ठिर रोए थे की ऐसा राज्य लेकर क्या करूंगा , तुम भी जरूर अन्दर अन्दर बहुत रोए होगे , क्योंकि चारो तरफ कटे फटे , टुकड़े टुकड़े मरे और घायल तुम्ही तों पड़े थे | पर अब तुम्हारे भारत में चारो तरफ महाभारत हो रही है ,की चाहे कितने भी मर जाये पर राज हमारा हो ,चाहे कितने भी मर जाये नकली दवाई से लेकर तमाम तरह की चीजें खा पी कर पर सारी दौलत हमारी हो |

कितना बदल गया ना तुम्हारा भारत कृष्ण ?क्या तुम आओगे या आज के कंसो ,आज के दुर्योधनों से तुम भी डरने लगे हो ? कुछ तो बोलो कृष्ण ! तुमने कहा था की मनुष्य केवल चोला बदलता रहता है और बदल कर फिर पृथ्वी पर जन्म लेता है | देखो जरा गौर से देखो कहीं तुम्हारी सबसे ज्यादा प्रिय राधा भी तो कहीं किसी रूप जन्म लेकर किसी मुसीबत में तो नही है , कहीं उसके साथ कुछ बुरा तों नही हो रहा है | तुम्हारी जोगन मीरा ,तुम्हारा दोस्त जिसे उस युग में तुमने सब दे दिया था ,इस युग में किस हालत में है |

देखो वह द्रोणाचार्य ,कृपाचार्य अपनी भूमिकाएं बदल तो नही चुके | अर्जुन रक्षा के स्थान पर कुछ और तों नही कर रहे ?भीम की ताकत कहीं लोगों की मुसीबत तो नही बन गयी है ?उस युग में जुएं में सब हर जाने वाले राजपाठ और पत्नी तक वो युधिष्ठिर कहीं तुम्हारे भारत की पीठ में छुरा तों नही घोंप रहे है ? तुम्हे तो सब याद होगा कृष्ण क्योंकि जब सब तुम्हीं से आते है और सब तुममें ही विलीन हो जाते है तो तुम तो हर समय सबको देखते ही रहते होगे कृष्ण ?

कुछ तो बोलो कृष्ण ,एक बार फिर वही विराट स्वरुप दिखाओ और बताओ की अब क्या होने वाला है ? ये सब जो हो रहा है ,इसका क्या मतलब है ? व्याख्या तो करो कृष्ण ! तुम्हारा गीता का उपदेश बहुत पुराना पड़ चुका है, उसका गूढार्थ लोगो की समझ से परे या फ़िर विस्मृत हो गया है |

वह अब भारत को नई दिशा नही दिखा पा रहा है कृष्ण | देखो सभी तुम्हारे तुमसे रूठ जाएंगे और तुम भी कैसे हो गए हो ? उस समय तो छोटी-छोटी बातों पर प्रकट हो जाते थे कहीं भी , किसी की भी मदद करने को किसी को भी उबारने  को | तो अब क्या हो गया है? कोई नाराजगी है तो वह बताओ ना ! देखो सब अधीर है तुम्हारे लिए कि तुम कब आओगे , कब उबारोगे भारत को इन ना ख़त्म होने वाली महाभारतों से | तब तो एक दो मौको पर ही झूठ और छल का सहारा लिया गया था ,अब तो केवल झूठ और छल का ही बोलबाला है | ऐसा लगता है कि तुम्हारे बारे में नई दृष्टि से देखने तथा नए ढंग से सोचने की जरूरत  है . क्योकि  कृष्ण तुम्हारा मतलब तो था की वो जो सदैव दूसरो का था ,दूसरो के लिए था . जिसकी जन्म देने वाली माँ पीछे छूट गयी और पालने वाली बाजी मार ले गई  ,जिसके दोस्त की चर्चा कहीं ज्यादा हुई और भाई पीछे छूट गया था , जिसकी पत्नी या पत्नियों को उनकी सखी राधा से बड़ी जलन हुई थी और हो सकता है , आज भी हो रही हो ,जो एक साथ सोलह हजार को अपना लेने की क्षमता रखता था। जो सत्ता को चुनौती देने की क्षमता रखता था और जिसने उस युग में एक युद्ध छेड़ दिया था कि जो खा नही सकता उस भगवान को क्यों खिलाते हो ,शायद सूंघ भी नहीं सकता , इसलिए लाओ मै खा सकता  हूँ मुझे खिलाओ और उन सब को खिलाओ जिन्हें भूख लगती है .केवल चुनौती ही नही दिया था वरन जब मुसीबत आई थी तो सभी की रक्षा में आगे आकर खड़ा हो गया था यह तुम्ही तो थे कृष्ण | मैं सोचता हूँ कि इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए तुमने कैसे अपनी छोटी सी उंगली पर इतना बड़ा गोवर्धन पहाड़ उठाया होगा , तुम्हारी उंगली दुखी तो जरूर होगी और शायद आज भी दुख रही है कहीं इसलिए तो नही तुम नही आ रहे हो की उंगली पर पट्टी बांध कर बैठे हो . लेकिन ऐसा लगता है की उस पहाड़ के उठाने से ज्यादा तुम्हारे नाम पर किये जा रहे पापों के बोझ से तुम्हारा सिर और पूरा शरीर दुख रहा है . कितना पैदल चले थे तुम  कृष्ण ,नाप दिया पूरब से पच्छिम तक भारत को ओर दो छोरों को जोड़ दिया ,परिचय करा दिया इतने बड़े हिस्से का एक दूसरे से. कभी सोचता हूँ की यदि जुआं नहीं होता रहा होता तो क्या होता ,यदि द्रौपदी की साड़ी भरी सभा में नही खींची गई होती तो क्या होता , इतिहास कौन सी करवट लेता.

भारत ,महाभारत होता या फिर भी भारत में तब भी महाभारत होता , सवाल बड़ा है जवाब आसान नही है .लेकिन कृष्ण तुम  आज मंदिरों में फूल मालओं ,भारी भारी कपड़ो और बड़े-बड़े मुकुटों के नीचे दब कर कराह रहे हो ऐसा लगता है कभी कभी|कृष्ण तुम्हारा मतलब ही था,अपनी ओर खींचने वाला ,  उदार हृदय  वाला ,दूसरो को अपनाने वाला ,हर अन्याय से संघर्ष करने वाला आज अपने अस्तित्व के लिए कहीं तुम्ही जूझ रहे हो कृष्ण|तुम्हे इस  संघर्ष से निकलना ही होगा और आकर फिर से कहना ही  होगा ; रे दुर्योधनों  मैं जाता हूँ ,तुझको संकल्प सुनाता हूँ ,याचना नही अब रण होगा .जीवन जय या फ़िर  मरण होगा ;तुम्हीं बताओ की कैसे तुम्हारी दुखती उंगली का दर्द घटे ,कैसे तुम्हारे सिर और शरीर का बोझ हटे और सम्पूर्ण कलाओं का मालिक कृष्ण ,संघर्ष और न्याय का प्रतीक कृष्ण स्वतंत्र होकर फिर हमारे सामने हो |विराट स्वरुप दिखाता हुआ ,आज के सन्दर्भ में गीता का ज्ञान देता हुआ , और इस सभी  तरह की महाभारतों से निकाल कर फिर से भारत को भारत बनता हुआ | अब तो आ रहे हो ना कृष्ण ,कृष्ण तुम आओ ना ,देखो सुनो मीरा कहीं अब भी गा रही है और मीरा क्या उसके स्वर में स्वर मिला कर सब गा रहे है :मेरे तों गिरधर गोपाल दूजो ना कोय : या कवि अब कलियुग में लेकर अवतार ओ गोविंद ।

( आप एक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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Saurabh Chandra Dwivedi
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Karwi Chitrakoot }

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