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By :- Saurabh Dwivedi

बुंदेलखण्ड की व्यापक पहचान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वजह से मिलती है। झांसी की वीरगाथा समूचे बुंदेलखण्ड की पहचान में प्रभावशाली है। हालांकि महोबा के आसपास से आल्हा – ऊदल की वीरता का प्रभाव भी शुरू हो जाता है। यही बुंदेलखण्ड के ऐतिहासिक नायिका एवं नायक हैं। भाजपा ने संगठन चुनाव में जिलाध्यक्ष पद हेतु महिलाओं से भी आवेदन मांगे , जिसमें अब तक कानपुर में एक महिला जिलाध्यक्ष का नाम सामने आया है। परंतु बुंदेलखण्ड के बांदा , झांसी और ललितपुर में अभी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

इस बात के कयास लग रहे हैं कि बुंदेलखण्ड में किसी महिला को नेतृत्व करने का अवसर मिलेगा या नहीं ! जबकि प्रत्येक जनपद से किसी ना किसी महिला ने आवेदन अवश्य किया है तो चर्चा का विषय है कि बांदा , झांसी और ललितपुर मे से किसी भी एक जनपद में महिला को जिम्मेदारी मिल सकती है।

हालांकि सच है कि पुरूषों ने यह कहना शुरू कर रखा है कि जनपद का नेतृत्व एक महिला कैसे कर पाएगी ? किन्तु यही पुरूष भूल जाते हैं कि झांसी का नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया था , महिलाओं ने स्वाभिमान एवं आजादी की जंग में बलिदान दिया था।

ये भूल जाते हैं कि भारतीय राजनीति में विदुषी महिलाओं ने चमत्कार कर दिखाया है। स्व. सुषमा स्वराज की राजनीति के सभी कायल हैं तो वर्तमान समय मे संसदीय इतिहास में मिनाक्षी लेखी से लेकर स्मृति ईरानी तक का नाम दर्ज है। जिन्होंने पुरूषों से कहीं ज्यादा अच्छी राजनीति की है।

वास्तविकता सिर्फ इतनी सी है कि बुंदेलखण्ड में महिलाओं को अभी भी घर की शोभा माना जाता है। घर की इज्जत माना जाता है। दहलीज के अंदर तक उन्हें स्थान मिलता है।

बहुत से बहुत हो सका तो जनप्रतिनिधि के रूप में पुरूष महिला का प्रयोग कर लेता है। जैसे कि अनगिनत महिला प्रधान बनीं परंतु हकीकत यह है कि प्रतिनिधि के रूप में प्रधानी पतिदेव नामक मर्द ने की है। महिला को नेतृत्व का गुण सिखाया नहीं जाता और ना ही उसे इतनी स्वतंत्रता प्रदान की जाती है कि प्रतिनिधि के रूप में वह अपने कर्तव्यों का पालन कर सके।

सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उदाहरण ऐसा भी है कि जिला पंचायत में महिला जिला पंचायत अध्यक्ष बनती है। लेकिन लाल बत्ती बस में बैठने के लिए बनी हैं और काम उसी पति नामक मालिक स्वरूप मर्द ने किया।

कितना हास्यास्पद है कि गुलाम के बाद आजादी आई और फलस्वरूप लोकतंत्र का निर्माण हुआ। किन्तु पुरूषों ने महिलाओं को मानसिक गुलाम बना रखा। उनके मानसिक विकास और नेतृत्व के अवसर नहीं दिए। ऐसे ही पुरूष उस वक्त सक्रिय हो जाते हैं जब संगठन में किसी विदुषी महिला को जिम्मेदारी मिलने का वक्त आता है तो ये राहु-केतु बनकर मतिभ्रम को जन्म देने लगते हैं।

जबकि सरोजनी नायडू , इंदिरा गांधी और वैश्विक स्तर पर हिलेरी क्लिंटन जैसी राजनीतिक का नाम चल रहा हो और हमारे ही देश में विदेशी महिला प्रधानमंत्री भी आती है। चूंकि हमारी सभ्यता को कुछ लोगों ने पीछे धकेलने का काम किया अन्यथा भारत का गौरवशाली इतिहास है।

इसलिये भाजपा से लोगों को उम्मीद है कि बुंदेलखण्ड के गौरवशाली इतिहास को जीवंत करने के लिए किसी महिला को जिलाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौपेगी। यह सच है कि बुंदेलखण्ड में महिला प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कोई ना कोई ऐसी महिला है जो अपनी आवाज से भीड़ को मंत्रमुग्ध कर सकती है एवं संगठन विस्तार में अहम भूमिका निभा सकती है। जब महिला मोर्चा में महिला जिलाध्यक्ष बनती ही है तो वहाँ किसी भी महिला को जिम्मेदारी देने के उदाहरण मिल जाते हैं। ऐसे में भाजपा की मुख्य जनपदीय शाखा की महिला जिलाध्यक्ष भी हो सकती है।

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