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By :- preeti sharma

कितना विरोधाभासी है ना यह… किन्तु सत्य है। कुछ पीड़ा ऐसी होती है जो सुख प्रदान करती है।
एक स्त्रीत्व को संपूर्ण करता है मातृत्व। मातृत्व सुख के बिना स्त्री संपूर्ण नहीं होती। जिस समय मैं अपनी रचना ‘बंजर भूमि’ लिख रही थी मन बहुत ही भारी था। लिखते समय आंखों में उमड़े समंदर से इस कविता के शब्द भी बह चले थे…. कितना सालता है बंजर होने का अहसास…… फिर चाहे वह धरती हो या स्त्री। शायद इस कविता को लिखते हुए दर्द में इतनी गहराई थी कि वर्षों से लगाई जाने वाली गुहार ईश्वर को सुनाई दे गई और मेरे स्त्री होने को संपूर्णता मिली।
5 अप्रैल 6बजकर15 मिनट को मेरे मन की खामोशियों को चीरने वाली और मेरी तन्हाईयों को दूर करने वाली एक नन्हीं किलकारी ओटी में गूंज उठी। कितना सम्मोहन था उस आवाज़ में….लग रहा था जन्मों से जो वेग आंखों के बांधों में बांधा है वह बह निकलने को लालायित हैं…. अर्द्धचैतन्यता में डाक्टर से बस यही पूछा “कैसी है”… आश्चर्य मिश्रित डाक्टर ने कहा… बहुत प्यारी है,स्वस्थ है।
ओटी से बाहर आ आंखें उसे तलाश रही थी…छोटी बहन जब उसे मेरे पास लेकर आई तो आंखों के कोर नम हो चले थे, पतिदेव की आंखें भी भरी देखी… आंखों का यह पानी लम्बे इंतजार के बाद अपनी कल्पना के साकार होने का था, अपनी राजकुमारी को छूने का था…यही तो थी सुखद पीड़ा जब अपना सारा दर्द उस नन्हीं जान के आगे बौना लग रहा था। इस बार मेरी मिष्ठी ने इस ‘मदर्स डे’ को मेरे लिए स्पेशल बना दिया…जिस तरह में अपनी मां से जुड़ी हूं उसी तरह वह मुझसे जुड़ी है।
जन्म से पहले ही महसूस कर लिया था मैंने उसे…कभी जब मैं उदास होती थी तो उसकी हलचल उसकी उदासी बता देती थी…..जब कभी भी देर से खाना खाया उसे कभी व्यथित होते नहीं पाया… इतना धैर्य तो बस बेटियों में ही होता है…..
मेरी ‘मिष्ठी’ तुमने हमारे जीवन को एक नई दिशा दी

मिष्ठी के जन्म से कुछ महीनों पूर्व एक कविता मैंने उसके लिए लिखी थी…

तेरा मेरा रिश्ता
अद्भुत है,हर रिश्ते से
यह गर्भनाल
जिसने तुझे जोड़ा है
मेरी भावनाओं से,
मुझे पता है
मेरी हर गतिविधियों में
तू शामिल होगी…..
तू मेरे इंतजार की
साक्षात परिणीती होगी,
तू मेरे आंगन की
चहचहाती सोनचिरैया होगी,
महक उठेगी मेरी बगिया
तेरे गुलाब से खिलने पर,
झालरों वाली गुलाबी फ्राक में तुम
बन जाओगी हमारी प्यारी परी,
मां की सखी सी,पिता की परी सी
महका दोगी हमारा घर आंगन,
तेरी तुतलाती बोली से निकला- ‘मां’ शब्द
संपूर्ण कर देगा मेरा ‘मातृत्व’।

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