by – saurabh Dwivedi
देश मे एक मजबूत विपक्ष होना चाहिए परंतु भारत का विपक्ष वास्तव में मजबूत होना चाहिए क्या ? भारत की जनता को चीन और भारत के सामयिक विवाद व सुलह से विपक्ष की भूमिका से अंदाजा लगाना चाहिए।
आपने एक कहावत “आ बैल सींग मार” ! अवश्य सुनी होगी। डोकलाम मुद्दे पर विपक्ष इसी कहावत को चरितार्थ करता प्रतीत हुआ। उसने चीन को भी आमंत्रित किया और भारत की जनता को भी अब हमें मार डालो।
विपक्ष सरकार के विरोध में, मोदी विरोध की सीनियर सिटीजन टाइप की अंधी ओलम्पिक दौड़ मे राष्ट्र विरोध कब कर बैठा इसका भान सोनिया ताई और राहुल बाबा को कभी नहीं हो पायेगा।
आज चीन का पीछे हट जाना इस बात का प्रमाण है कि भारत की विदेशनीति में नेहरू व कांग्रेस काल से क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। नरेन्द्र मोदी व सरकार की एक बड़ी कूटनीतिक जीत इसलिये भी है कि ब्रिक्स सम्मेलन मे मोदी के ना शामिल होने की बात से भी चीन को घबराहट महसूस हुई और जी मिचलाने लगा।
भारत की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया था कि जब तक डोकलाम विवाद सुलझ नहीं जाता तब तक मोदी चीन की यात्रा नहीं कर सकते हैं। दोनो देश की सेना पीछे हटी हैं लेकिन ड्रैगन पर लगातार नजर बनाकर रखनी होगी।
वैसे भी चीन वह राष्ट्र है जो परजीवी है। वो पाकिस्तान पर परजीवी स्वभाव का प्रयोग कर हमेशा दांव खेलता रहा है। हालांकि पाकिस्तान मे भी चीन की कलई खुल चुकी है कि अपने प्रोडक्ट की तरह इस राष्ट्र का भी विश्वास नहीं किया जा सकता कि कब धोखा दे जाए।
चीन वैश्विक स्तर पर ना तो एक अच्छे दोस्त की छवि बना सका और ना जानी दुश्मन की छवि बना सका। बल्कि पूरी दुनिया में भारत के अच्छे दोस्त होने का संदेश गया तो वहीं चीन और पाकिस्तान को छद्म युद्ध तथा कूटनीतिक मामलों मे परास्त कर एक सशक्त दोस्ती पसंद व शांति पसंद राष्ट्र की छवि बनाई है। निश्चय ही इसमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व पीएम नरेन्द्र मोदी सहित अजीत डोभाल जैसी “त्रिमूर्ति” की मुख्य भूमिका रही है।