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By :- Saurabh Dwivedi

यादें ! मानसिक और डिजिटल मेमोरी का दौर चल रहा है। मेरी यादों में तुम हमेशा रही हो , एक अखंड दीप की तरह प्रेम लौ प्रज्वलित है। जो मेरी तड़प के बावजूद बुझने का नाम नहीं लेती , यदाकदा सोचता हूँ कि मिटा दूं इन यादों को ! जैसे इस दुनिया को त्याग देने का भय सा हो कि यादें मिटाने का यथार्थ है स्वयं का वजूद खत्म कर लेना।

तमाम उलझनों के बीच लिखने बैठ गया। अब तुम ही बताओ अपना वजूद कौन खत्म करना चाहेगा ? अब फेसबुक पर ही देख लो आए दिन तुम्हारी यादें मेरी यादें बनकर आ जाती हैं। तकनीकी भी हमे याद दिलाने लगी है। ये यादें दर्पण हैं हमारे जीवन सफर का , दर्पण इसलिये कि अतीत को समक्ष प्रस्तुत निहारकर पारदर्शी जल की तरह सबकुछ साफ – साफ नजर आता है।

हाँ Antas_ki_aawaz हो तुम। पिछले वर्ष किताब के रूप में जब तुम्हारा जन्म हुआ तो मैंने तुम्हे संसार के समक्ष शब्दों से ठीक वैसे ही प्रस्तुत किया जैसे कभी सोचा ही नहीं था कि तुम किताब होगी ?

अब कविता को समझने , महसूस करने के लिए सूक्ष्म मन चाहिए। वैसे भी सोचा ही कहाँ था कि कोई कविता को समझेगा ही , ये तो बस तुम रही कि कविता बनकर प्रेम रचना के रूप में प्रस्तुत हो गई। कभी कुछ ऐसा भी सुनने मे आया कि जिसने महसूस किया उसे बड़ी गहराई महसूस हुई।

आजकल फेसबुक मेमोरी के संग हृदय की यादों का मिलन हो रहा है , यही है हमारा मिलन और क्या ? इसे ही कभी कहा था कि यादें एकतरफा नहीं हो सकतीं। देखो आज प्रमाण मिल गया कि सचमुच यादें एकतरफा नहीं होतीं। यह अलग बात है कि तुम कभी स्वीकार करो ना करो पर कभी तो तुम्हारे भी रोएं जागृत हो जाते होगें चूंकि यादें होती ही ऐसी हैं कि झकझोर देती हैं हमें…….

तुम्हारा ” सखा “

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