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By :- Saurabh Dwivedi

आरके पटेल की चुनाव दर चुनावी जीत से बांदा लोकसभा की जनता परिचत है। इनकी विजय गाथा का सबसे बड़ा कारण समय के साथ स्वयं में बदलाव ले आना कहा जाएगा। बसपा , सपा और फिर भाजपा जैसे दल में एक विशिष्ट स्थान बना लें साधारण व्यक्तित्व की बात नहीं कही जाएगी। इस शख्स में कुछ ना कुछ करिश्माई व्यक्तित्व है , जो जनता की नब्ज को भी टटोल लेता है। साथ ही दलीय टिकट प्राप्त करने में अवसर का लाभ उठा लेता है।

पिछली बार बसपा से सांसद का चुनाव लड़े तो भैरोंप्रसाद मिश्र के सामने करारी हार नसीब हुई थी। केन्द्र में बीजेपी की सरकार बनी तो नरेन्द्र मोदी ने संसद भवन की सीढ़ियों को मातृभूमि के भाव से मत्था टेककर प्रणाम किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कृतित्व जन जन के मन में समा गया था।

इस बार भाजपा से आरके पटेल को ना सिर्फ टिकट मिला बल्कि महागठबंधन के अभेद्य कहे जाने वाले किले को ध्वस्त कर दिया। यह सत्य है कि नरेन्द्र मोदी के बांदा आगमन से भी खासा असर पड़ा था। किन्तु बांदा लोकसभा का स्थानीय चुनाव जातीय अस्मिता के गर्मागर्म माहौल में चढ़ी कढ़ाई में तपते तेल में पूड़ी पकाने की तरह मतदान तक खतरे के निशान पर लगता रहा।

मतदान के बाद भी हार – जीत की सुर्खियां तेज रहीं। चूंकि जाति के ठेकेदार व व्यापारी समाज के ठेकेदार कहलाने वाले कथित लोगों ने ठेका ले रखा था। इस संबंध में सोशल मीडिया पर भी खूब गहमागहमी रही। जो परिणाम आने के बाद भी ज्वालामुखी फटने की तरह धमाका करते रहे। अंततः तय हुआ कि कुछ लोगों की जातिगत ठेकेदारी के सालवेंसी निरस्त हो गई तो व्यापारी समाज की जंगेआजादी जैसी लड़ाई लड़ने वालों के स्वर बंध गए और बाजू सिकुड़ कर कुपोषण का शिकार हो गईं , साथ ही कुर्तों की कड़कड़ाहट लजलजाहट में तब्दील हो गई। बांदा लोकसभा की यह संक्षिप्त चुनावी गाथा है।

इधर आरके पटेल ने मन ही मन कुछ और सोच रखा था। जिसकी कल्पना करना भी आम जन की कल्पनाशीलता की बात नहीं थी। संसद भवन में प्रथम प्रवेश के समय बांदा सांसद ने नरेन्द्र मोदी की प्रकृति को आत्मसात कर लिया। उन्होंने सीढ़ियों पर माथा टेककर बांदा की जनता को जरूर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। यहाँ की जनता भी आशाएं लगाए है कि उनका सांसद विकास रथ को आगे बढ़ाए और युवाओं को समृद्ध बनाएं , साथ ही ध्यान देने योग्य है कि भौतिक विकास के साथ सामाजिक – आध्यात्मिक विकास ना सिर्फ बांदा – चित्रकूट की पहचान है , बल्कि भारतीय संस्कृति सभ्यता का परिचायक है। अतः वर्तमान सांसद को कंधे मजबूत कर कुछ ऐसा इतिहास रचना चाहिए कि ईवीएम से निकलकर लोगों के दिलों में जगह स्थापित हो जाए ताकि इतिहास में नाम पढ़ा जाए।

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