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मन बड़ा विचलित सा हो जाता है। लगता है भारत कहाँ आकर खड़ा है ? वहीं खड़ा महसूस होता है , आजादी के समय की जगह पर बस हमें दिख नहीं रहा था। अदृश्य रूप से अंदर ही अंदर जो कुछ चल रहा है। उससे ही जिन्ना जैसे जिन्न बाहर आए और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है।

हामिद अंसारी तो आजम खान से ज्यादा खतरनाक मानसिकता के महसूस हो रहे हैं। बिलकुल स्वीट प्वाइजन की तरह। हालांकि आजम खान भी तमाम बयानों को लेकर राष्ट्रीय भावना से परे दिखते रहे हैं और प्रधानमंत्री ना बन पाने का मलाल जिन्ना की तरह ही महसूस हुआ।

कांग्रेस की सरकार में अंदुरूनी रूप से ऐसा सबकुछ फलता फूलता रहता है। उसका अदृश्य और मूक समर्थन मिलता रहता है। एनडीए की सरकार में ऐसा समर्थन नहीं मिलने से ही देश का एक वर्ग संघ और भाजपा से खुलकर नफरत का इजहार करता है।

प्रश्न यह उठता है कि संघ ने मुसलमानों का क्या बुरा किया है ? संघ ने देश को कहाँ नुकसान पहुंचाया ? संघ ने मुस्लिम लीग की तरह अलग राष्ट्र की माँग कब प्रामाणिक रूप से की ? सर्वविदित है कि बंटवारे की नींव इस्लाम के ईंटागारा से ही रखी गई।

फिर यह कहना मात्र कि देशभक्ति व प्रेम की वजह से भारत में ही रहे तो आज जिन्ना की फोटो के लिए दंगा फसाद क्यों कर रहे हैं ? जिन्ना की फोटो के लिए सावरकर की बात क्यों कर रहे हैं ?

सुअर का मांस खाने वाला मुसलमान नहीं है ? , आतंकवादी मुसलमान नहीं है ? , ब्याज लेने वाला भी मुसलमान नहीं है ? इसलिये जिन्ना के लिए संघर्ष करने वाला मुसलमान कैसे हुआ ? संघर्ष तो याकूब मेमन और अफजल गुरु के लिए भी हुआ।

समय-समय पर स्वयं सिद्ध करते हैं कि आप से भयभीत क्यों ना हुआ जाए ? असल में बकौल हामिद अंसारी देश का मुसलमान डरा हुआ है सत्य नहीं है बल्कि अब हम आप से डरने लगे हैं और देश के लिए भयभीत होकर चिंतित हैं। हमारा सृजन क्षमता का अंत हो रहा है ना चाहते हुए भी ऐसे मुद्दों पर सोचना लिखना पड़ रहा है।

देश की मूल समस्याओं पर राजनीति तब होगी जब अलगाववादी और देश के अंदर छुपे गद्दारों से निजात मिल जाए। लेकिन इससे पहले जनसंख्या नियंत्रण लागू होना नितांत आवश्यक है , पता भी है कि इस पर भी सबका साथ नहीं मिलेगा परंतु भारत के भले के लिए सबसे पहले जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है फिर रोजगार और समृद्धि संपन्न होने लगेंगे , बेवजह के तमाम संघर्ष का अंत भी होने लगेगा।

अभी स्थिति बहुत भयावह है और परिवर्तन होने पर ही भयावह स्थिति सामने आती है , खैर खरपतवार काटिए बाहर फेकिए वरना खेत की फसल चौपट तो हो रही है।

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