SHARE

[email protected]

एक बात बेहद जरूरी लगी और कभी कभी मुझे बहुत सताती है। वह भी अपनों के बीच से , बड़े बड़ों के बीच से कि चाटुकारिता करना बहुत जरूरी है।

स्वयं का नुकसान महसूस होता है कि स्पष्ट कहने व छप्पर के नीचे वाला छप्पन छोरा नहीं बन सका , इसलिये मेरे अपने बड़े या तो सकुचाते हैं या फिर भयभीत होते हैं कि समूह के मध्य भी बोल देगा।

मतलब उन्हें पता है कि बोलने से परहेज नहीं करता और सांचे के अनुसार पानी भरकर शब्दों से बर्फ जमा देगा। स्पष्ट है कि सच और झूठ की बात नहीं है बल्कि बोलने की बात है और जिसे दबाया ना जा सके उससे अपने ही कुछ संयमित दूरियां बनाते हैं ताकि मठाधीशी बरकरार रहे।

जब सफलता से तनिक सा दूर महसूस करता हूँ तो यकीनन चाटुकारिता याद आती है कि फला इंसान से फला जगह चाटुकारिता की होती तो वरदहस्त होता।

हाँ इस दुनिया में वरदहस्त सफल लोग बहुत सारे मिलेंगे। किन्तु देखा गया है कि वरदहस्त लोगों की सफलता टिकाऊ नहीं रही है चाटुकारिता ना करने वाले लोग एक समय पर असफल दिख सकते अथवा महसूस कर सकते हैं। परंतु सत्य है कि ऐसे ही लोग नेतृत्वकर्ता हुआ करते हैं।

एक दिन दुनिया के वे लोग भी उसके अनुसरणकर्ता होते हैं , जो उसकी वाकपटुता व स्पष्ट संबोधन की वजह से मठाधीशी के चलते व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ने से भी कतराते हैं। व्हाट्सएप यहाँ ताजातरीन उदाहरण है , इसलिए जो लोग चाटुकारिता नहीं करते , उनके लिए संदेश है कि आप ही भविष्य के नेतृत्वकर्ता हो और नेतृत्व के लिए तैयार रहो। चाटुकार हमेशा भीड़ का हिस्सा रहे व क्षणिक सफलता से खुशफहमी में जिए हैं।

image_printPrint
0.00 avg. rating (0% score) - 0 votes