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By :- Saurabh Dwivedi

आजकल मन थमा थमा सा है। लिखने को मन करता है फिर एक मन रोक देता है। वजह सिर्फ इतनी सी है कि पहले के लिखे हुए पर शोध चल रहा है। जो संग्रह किया उसे सुधार रहा हूँ। मंजिल के करीब पहुंचते ही उतना ही समय लग रहा है।

ये एक बड़ी वजह है कि कुछ विशेष नहीं लिख पा रहा हूँ। कार्य संपूर्ण संपन्न होने तक संभवतः कुछ नया उत्तम शायद ही लिख सकूं। आजकल जो भी लिख रहा हूँ वो यूं ही लिख जा रहा है। मन का बांधा फूटा तो लिख दिया अन्यथा सोचकर भी रह गया।

इंतजार करिएगा संभवतः शीघ्र ही कार्य संपन्न हो जाए। तत्पश्चात मैं कुछ नया और नए तरीके से लिख पाऊंगा। इस काम के संपन्न होने के साथ कुछ और काम कर सकूंगा।

मेरी आदत नहीं है कि पहले से उद्देश्य और मंजिल की जानकारी साझा कर दूं। चूंकि कार्य संपन्न होकर मूर्तरूप में संसार के समक्ष प्रस्तुत हो जाए तो वास्तव में सुखद लगता है।

जाने क्या है ? कि मेरे अंदर से महसूस होता है कि जब सबकुछ हो जाए तभी कहो ! जैसे कि मूर्तिकार मूर्ति गढ़ रहा हो तो यकीनन किसी की नजर पड़ जाए तो अनगढ़ी आधी – अधूरी मूर्ति देखेगा। शायद ही अंदाजा लगा सके कि राक्षस की है या देवता की ? आदमी की है या औरत की ?

लेकिन मूर्तिकार मूर्ति गढ़कर दुनिया के समक्ष प्रस्तुत कर दे तो अवश्य लोगों को जो दिखेगा वो सम्पूर्णता मे दिखेगा। शीघ्र आकलन लग जाएगा। आलोचना – समालोचना और प्रशंसा के शब्द लोगों के मन से प्रस्फुटित होगें। मूर्तिकार को भी अपनी मेहनत पर नाज होगा और अच्छा लगेगा।

इसे टोटका समझें या फिर ये समझें कि मुझे लगता है कि पहले कोई उद्घोषणा ना करूं , चूंकि लगा करता है कि सम्पूर्ण हो जाने के उपरांत संसार के समक्ष प्रस्तुत होगा तो अच्छा लगेगा। बेशक समय अधिक भी लग सकता है और कहिए तो मन मे आ जाए तो मंजिल के इतना समीप हूँ कि एक दिन अथवा दस दिन में पूरा हो जाए।

फिर मैं कुछ नया शुरू करूंगा। जैसे कि कुछ अधूरी कहानियां पूरी कर पाएं , लघु प्रेम कथा पर गहराई से उतरकर रच सकूं। समय की यात्रा कर सकूं , करा सकूं। है बहुत कुछ पर क्या है ना कि जीवनयापन आदि को लेकर भी बहुत कुछ करना पड़ता है और एक सही माहौल संवेदनशील मन के लिए आवश्यक होता है।

अब तक जो भी लिखा संघर्ष के दिनों मे लिखा और ऐसे ही सफर जारी रहेगा। चूंकि अनुकूल समय के इंतजार में सक्रियता नहीं बंद होनी चाहिए। बल्कि संघर्षशील , जीवंत वही है जो विपरीत परिस्थिति मे भी सक्रिय रहे। मैं कुछ ऐसे ही सक्रिय रहा।

उन सभी के प्रति आजीवन कृतज्ञ रहूंगा जिन्होंने संकट के समय बिन रूमाल निकाले आंसू पोछने जैसी मदद की और हौसला बढ़ाए रखे। मेरी जिंदगी व्यक्तिगत मेरी नहीं बल्कि सभी मददगार शुभचिंतको सहित संसार और सृजन हेतु है।

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