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By : Saurabh Dwivedi

नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से वामपंथ ने मोदी समर्थकों को भक्त कहकर चिढ़ाना शुरू किया था। जबकि भक्त शब्द सनातन का पवित्र शब्द है। भक्त ईश्वर का होता है और भक्ति में सेवा भाव छिपा हुआ है। जैसे भक्त और सेवक हनुमान ! किन्तु आजकल सनातन के कथित रक्षक बने हुए छुटभैये कथित नेता भी व्यक्तिगत विरोध के चलते भक्त शब्द का प्रयोग करने लगे हैं।

इनकी अज्ञानता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होने लगा है और जैसे कौरवों ने अभिमन्यु की हत्या कर दी थी , वैसे ही हाल कथित सानतनियों के नजर आने लगे हैं। इस पर वैचारिक प्रकाश कुछ इस तरह है।

इस वक्त के वर्तमान हालात पर अगर नजर डाली जाए तो सबकुछ व्यक्तिगत कुत्सित मानसिकता वाले स्वार्थ पर निहित हो गया है। वैसे ये लोग हिन्दू और हिन्दुत्व की रक्षा की बात करेंगे पर अपने ही धर्म और संस्कृति का गहरा ज्ञान नहीं है।

हकीकत यह है कि ये लोग अपने ही खिलाफ प्रयोग किए जाने वाले शब्द के जाल मे फंस जाते हैं। अब वामपंथ के जाल में कथित राजनीतिज्ञ फंस चुके हैं। वामपंथ धर्म और ईश्वर के अस्तित्व को मानता नहीं है , अगर कुछ मानता है तो वह एक धर्म विशेष की प्रत्येक कमी के साथ खड़े होना अपना वामपंथी धर्म मानता हैं। वहीं उसने भगवा और सनातन परंपरा पर लगातार विरोधाभासी सवाल खड़े किए हैं।

ऐसा ही एक जाल वामपंथ ने भक्त शब्द को लेकर बिछाया और उसी जाल में फंसकर कथित सनातनी अपने निजी हित में दूसरों को दूसरे का भक्त घोषित कर रहे हैं। जबकि इस शब्द का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए। चूंकि हम ईश्वर के भक्त हो सकते हैं परंतु किसी मनुष्य की भक्ति नहीं की जा सकती है।

जिस भक्त शब्द को बदनाम करने के लिए वामपंथ ने चक्रव्यूह बनाया उसी चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह सनातनी फंस चुके हैं। महाभारत में सातवां द्वार ना तोड़ना आने की अज्ञानता के कारण अभिमन्यु का वध हो गया था , ठीक ऐसा ही वध शायद सनातनी संस्कृति और धर्म के आधार पर करवाना चाहते हैं तभी तो समान विचारधारा के लोगों पर भक्त शब्द से प्रहार करने लगे हैं।

इनको अर्जुन बनने की आवश्यकता है। जिसे चक्रव्यूह का प्रत्येक द्वार तोड़ना आता था। लेकिन एक तरफ ये वामपंथ का विरोध करते हैं और दूसरी तरफ वामपंथ के चक्रव्यूह में पहुंच कर धर्म और संस्कृति के शब्द पर स्वयं का वध करवा रहे हैं। यह इनकी अज्ञानता है परंतु स्वयं को बड़ा मानकर किसी और की सुनकर ज्ञान अर्जित करना भी नहीं चाहते।

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अतः इनके हित मे यही होगा कि राष्ट्रवाद के लिए अध्ययन करें। सनातन के लिए ज्ञान अर्जित करें नाकि विपरीत विचारधारा के बिछाए जाल पर फंसकर अपनों की ही ऊर्जा को आपसी टकराव में बर्बाद करें। वामपंथ ने अध्ययन कर बड़े तर्क गढ़े हैं पर राष्ट्रवाद और सनातन की समस्या रही है कि वह सभी स्वाध्याय करना नहीं चाहते।

ऐसे मे हाल अभिमन्यु की तरह ही होने हैं कि राजनीति के सारे स्वप्न एक तरफ रखे रह जाएंगे। राजनीति का अर्थ समाज का हित है और एक अच्छी राजनीति से जनसेवा का लक्ष्य पूरा होता है। यह ब्यूरोक्रेसी एंड पालिटिक्स पर पूरी तरह से लागू होने के साथ वैचारिक जर्नलिज्म के सांचे पर भी फिट बैठती है।

निष्कर्ष यही है कि जो पूर्ण अनवरत अध्ययन नहीं करेगा वह अभिमन्यु की तरह राजनीति के चक्रव्यूह मे मारा जाएगा। 
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