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Saurabh Dwivedi

कल रात को सोच रहा था, कुछ लिख लूं पर नहीं लिख सका। मन ही नहीं हुआ तो आखिर लिखता क्या ? सुबह सोचने लगा कुछ लिख लूं और विषय अनगिनत हैं। एक ऐसा विषय भी जो बेहद करूण है। सोचना पड़ेगा कि आज भी समाज और परिवार में क्या कुछ घटित हो रहा है। अभिभावक ही बच्चों को अवसाद की तरफ ढकेल कर जिंदगी में सफलता के सबसे बड़े ब्रेकर बन जाएं। जो प्रेरक हों वही ब्रेकर बन जाएं। ये विषय फिर कभी, ऐसा इसलिये कि पोस्ट पर लाइक कमेंट बेशक कम आएं पर गिद्ध नजरें बगुले की तरह ध्यान से यहाँ लगी रहती हैं। वे लोग कुछ बोलते नहीं और पढ़ते बड़े चाव से हैं। लिखने पर समझ भी जाते कि कहाँ से क्या लिख दिया और किसी की जिंदगी में बवाल ए जाम अभी और नहीं चाहता पर लिखूंगा एक दिन अवश्य। 
इससे पहले सामाजिक रवैये वाले डीएनए की चर्चा कर ली जाए। समाज में कुछ ऐसे लोग हैं, जो चिंता करते कि तुम करते क्या हो ? सचमुच आपका चिंता करना अच्छा लगता है। क्या करता हूँ ? 

कभी ये पूंछा कि क्यों करते हो ? , कैसे करते हो ? जब – जब जो कुछ भी किया वहाँ आप संग संग दिखे क्या ? मेरा करना भी ऐसा है कि Abhimanyu bhai बच्चों के लिए काम करते और चित्रकूट में कोई भी घटना घटित होती तो बिना किसी परवाह के इनके संग हो लेता और करने लगता। उस वक्त इनका अनुसरण कर लेता। 

पत्रकारिता, लेखन को एक तरफ रख कर समाज के काम हेतु चलता फिरता स्तंभ हो जाता। एक फीकर की तरह जिंदगी में यही कर सुख प्राप्त कर लेता। 

रही राजनीति की बात तो ये तय है कि राजनीति मेरे ब्लड में है और इसका आभास मुझे बचपन से है। उस वक्त से जब बच्चे होने की वजह से हमें भगाया जाता कि कुछ सुनकर बातें इधर से उधर ना हो जाएं पर मैं था कि दरवाजे के पीछे खड़े होकर राजनीतिक ज्ञान ले लेता था। अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह तोड़ने की कला सीखी थी और विश्वास करिए कि आत्मविश्वास और आत्मबल के जरिए वह अंतिम द्वार भी तोड़ देता अगर सदन में कांग्रेसियों की तरह अटल जी का एक वोट से वध की तरह क्रूर कौरवों ने वीर अभिमन्यु का वध ना कर दिया होता। शायद इसलिये समय का नरेन्द्र मोदी जूगल जोड़ी वाले अमित शाह कुछ नीतियों का अपभ्रंश कर राजनीतिक लड़ाई जीतना चाहते हैं। अब नरेश को लेना पड़े या फिर एक दिन मायवाती से गठबंधन भी हो जाए। 

मेरी राजनीतिक दिलचस्पी नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रवाद के पथ से राष्ट्र के विकास की ओर है, जिसमें जनहित सदैव सर्वोपरि है। इसलिये मैं राजनीति में सक्रिय था और रहूंगा। 

पत्रकारिता, लेखन ये सब डायरी के पन्नों का कमाल है। जब दुनिया हेतु मेरा लेखन गर्भ में था। सिर्फ मैं ही समझ सकता था कि कुछ लिखता हूँ फिर 2008 में आज अखबार के अभिमति व संपादकीय पृष्ठ के पाठकनामा में छपे लेख से दुनिया के सामने लेखन की शुरुआत हुई और मेरा बतौर लेखन जन्म हुआ और किलकारियां आज भी मारता रहता हूँ। 

जिंदगी में जितनी इमानदारी से किया। उतनी ही सरलता इमानदारी से पता चला कि डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा जी ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का सदस्य नामित किया है। ये जनहित के कार्यों हेतु वह ताकत है कि जो मेरी जुबान और लेखन में को इतना ताकतवर बना देता है कि कोई अधिकारी बात को सुनकर जनता का काम कर सकता है। 

येे मेरी पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक जिंदगी में लेखन वाले पथ पर चलते हुए कि एक यात्रा है। जहाँ पर पड़ाव तमाम आए। 

असल में कहना सिर्फ इतना था कि मैं क्या हूँ से ज्यादा अच्छा तब लगे जब चित्रकूट में शिवदेवी के संघर्ष में आप साथ दिखते, परिक्रमा मार्ग के आंदोलन में आप साथ दिखते, कैंसर से पीड़ित बच्ची को नई जिंदगी प्रदान करने में आप साथ दिखते। लेकिन आप ऐसे किसी सामाजिक आंदोलन में नहीं दिखते और मैं वहाँ नहीं दिखता जहाँ आप मुर्दे को सुपुर्दे खाक करने के विवाद में पाकिस्तान जिंदबाद – मुर्दाबाद के साथ नफरत की राजनीति करते हैं, वहाँ नहीं दिखता जहाँ हनुमानजी की मूर्ति के विवाद हिन्दू और मुसलमान साजिशन राजनीतिक रूप से आमने सामने हो जाते हैं। 

मैं जहाँ वहाँ आप नहीं और जहाँ आप वहाँ मैं नहीं फिर कैसे समझेगें ? बस इत्ती सी बात कहूँ, गुजारिश करता हूँ कि अगली बार कुछ करूं तो वहाँ आकर साथ दीजिएगा। देखिएगा किरदार निभाने में वैसे ही बड़ा आनंद आएगा, जैसे तीन घंटे की मूवी में एक एक्टर चपरासी की भी एक्टिंग कर लेता और सफाई कर्मी की भी। हाँ मैं सफाईकर्मी हूँ।

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