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By – Sunanda mishra

कल मार्केट जा रही थी तो देखा एक पुलिसवाला बहुत सारे ऑटो वालों से पैसे ले रहा था। ऑटोवालों के पास खड़ा होता वो लोग अपने जेब में हाथ डालते और उसे कुछ पैसे पकड़ाते। मैं ऑटो में बैठ चुकी थी। थोड़ी देर बाद वह पुलिसवाला आकर उसी ऑटो में बैठ गया। वैसे तो मेरा इन पुलिसवालों से छत्तीस का आंकड़ा हैं लेकिन आज मेरी बात करने की इच्छा हो रही थी। मैंने ऑटोवाले से बोला कितना पैसा कमाते हो एक दिन में जिसमें से कुछ पैसे इनके हाथ में भी थमाते हो फ्री में। घर परिवार कैसे चलता हैं इस महंगाई में।

ऑटो वाला कुछ बोलता तबतक वह पुलिस वाला बोल पड़ा। बोला मैडम आप पत्रकार हो क्या ?? मैंने कहा अरे नहीं नहीं मेरा पुलिस और पत्रकार से दूर दूर तक कोई नाता नहीं। मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही हूँ क्योंकि मैंने अक्सर पुलिसवालों को रास्ते में ट्रक वालों से, रिक्शेवालों से पैसे लेते देखा है। ये दोनों बेचारे गरीब वर्ग में आते हैं। इनको लूटकर कैसे खुद का घर चला सकते हो आप लोग।

पहले वह थोड़ा सख्त दिखा लेकिन कुछ ही देर में नरम हो गया। उसने एक गमछा निकाला अपने नमेप्लेट पर रखा और फिर बोला। मैडम हम एक साधारण से सिपाही हैं। हमारे ऊपर बहुत लोग हैं। सबका पैसा बंधा है हर पुलिस स्टेशन से। उतना हमें उनको पहुँचाना ही है। नहीं देंगे तो सस्पेंड हो जायेंगे। फिर गरीब ही गरीब को लूटता है। किसी पढ़े लिखे को पकड़ेंगे तो हम भी फंसेंगे।

तब तक उसे एक फोन आया और वह ऑटो रोक कर उतर गया। जाते जाते बोला अब सब्जी वालों की बारी है। मैं उसे देख रही थी। उसने कुछ बोला और सब ठेलेवाले अपना ठेला हटाने लगे। इतनी तेजी से ये सब काम हुआ कि दस मिनट में सबके ठेले अंदर होकर उस पर कपड़ा पड़ चुका था।
ये सब्जीवाले ठेले मैं काफी सालों से देख रही हूँ वहीं पर लगाते हैं। हालांकि ये सड़क का काफी हिस्सा हथियाते हैं लेकिन ये बेचारे जाएं भी तो कहाँ। दिनभर धूप रहती है। शाम को इनकी कुछ सब्जी बिकती है। उसमें भी कई कई बार इनको पुलिकवालों के डंडे खाने पड़ते हैं।

हमारा सिस्टम इतना बिगड़ चुका है कि आवाज़ उठाने वाले की आवाज़ बीच में दब सी जाती हैं। जब ये गरीब वर्ग परेशान होता है तो इनकी हाय सुनने वाला कोई नहीं होता।

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