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By – Saurabh Dwivedi

एक सवाल मन में आता है कि यादें एकतरफा नहीं हो सकतीं ? प्रेम एक बार एकतरफा हो सकता है। मान लेते हैं कि प्रेम एकतरफा रहा हो। वैसे इस बात को प्रेम करने वाला ही समझ सकता है कि एकतरफा है या दोनों तरफ से है।

प्रेम की दिशा और दशा अलग – अलग होती है। यह परस्पर दो लोगों के मध्य अंकुरित बीज की तरह है। जो यूं ही जमी से फल – फलू नहीं सकता। जमीं की परत दर परत की भांति देह होती हैं। दो देह के अंदर व्याप्त आत्मा से प्रेम का अंकुरण होता है।

जिसने भी आत्मा से प्रेम महसूस किया होगा। वही प्रेम कि दिशा और दशा को महसूस कर सकता। दो देह के मध्य प्रेम का जन्म होना असाधारण घटना है। बेशक उस प्रेम में मिलन हो या ना हो। प्रेम मिलन का मोहताज भी नहीं होता। प्रेम हो जाना ही सुखद घटना है।

वैसे विरह का दर्द ताउम्र बेहिसाब हो सकता है और होता है। प्रेम में दर्द को जीना भी एक जिंदगी बन जाती है। चूंकि प्रेम को स्वतंत्रता – सहजता और विश्वास की दहलीज कभी मुहैया नहीं हो सकी। यह भी एक वजह रही कि प्रेम जैसे पवित्र अहसास को लेकर बड़ा भ्रम है। सबसे बड़ा भ्रम यही कि प्रेम है भी या नहीं ?

सजातीय आत्मा से प्रेम महसूस होता है। जब प्रेम वास्तव में आत्मा से होता है तब वह आत्मा की तरह चिरकालीन होता है। जैसे आत्मा अदृश्य है वैसे ही प्रेम व्यक्ति के साथ अदृश्य रूप में यात्रा करता है। गहरा अहसास जीवन भर बना रहता है।

इसलिये महसूस किया जा सकता है कि प्रेम एकतरफा है या नहीं , प्रेम है भी या नहीं। बेहद व्यक्तिगत अहसास है। महसूस करने की बात है। किन्तु यह सत्य महसूस होता है कि किसी की किसी में बेहिसाब याद बनी रहना , दर्द का महसूस होना , यूं ही नहीं हो सकता। जरूर कुछ बात हो सकती है जो एकतरफा नहीं दो तरफा है। सच यादें एकतरफा नहीं हो सकतीं।

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