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By :- Bhartend dubey

एकादशी का व्रत मनुष्य को पुण्य फल प्रदान करता है। एकादशी का व्रत करने वाले ब्राह्मण भक्त की कहानी चित्रकूट से बिहारी दास सुना रहे हैं। गोसाईं जी की भक्ति से जीवन में चमत्कारी परिणाम प्राप्त होते हैं।

एक ब्राह्मण देवता पंढरपुर मे रहते थे। वे ठाकुर जी के अन्नय भक्त थे। प्रतिदिन मंदिर की चौखट पर आते और सजल नेत्रों से दर्शन कर माथा टेककर वापस चले जाते। मंदिर के पुजारी भक्त को प्रतिदिन देखते और भक्ति को महसूस कर धन्य महसूस करते।

ब्राह्मण देवता मन ही मन विचार करते कि मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिलता है। उनकी इच्छा हो रही है कि इसी जन्म मे ठाकुर जी की सेवा करूं ? गरीब ब्राह्मण देवता सोचते कि ठाकुर जी की सेवा क्या कुछ अर्पित कर सकते हैं ? तन मन और धन से वे ठाकुर जी सेवा को आतुर रहते।

एक दिन मन मे आया कि ठाकुर जी के गले पर हार नहीं है। उन्होंने मन बनाया कि कुल पांच बीघा जमीन है और इसे बेचकर हार बनवा लूं। उन्होंने पांच बीघा जमीन बेचकर हार बनवा कर ठाकुर जी को समर्पित कर दिया।

ठाकुर जी को गोसाईं जी भी कहा जाता है। गोसाईं जी सब जानते थे कि ब्राह्मण देवता ने अपनी सम्पूर्ण संपत्ति बेचकर हार पधार दिया है। एक दिन ठाकुर जी ने पुजारी से कहा कि बताओ हमे कोई कमी पड़ रही थी ? जो ब्राह्मण ने अपना सबकुछ बेचकर हार पधार दिया ?

पुजारी ने कहा कि बात सही भी है कि भला भगवान आपको क्या कमी ? जो उसने सबकुछ बेचकर हार बनवाया। कल की चिंता नहीं करी कि जीवनयापन कैसे चलेगा ?

वैसे सच है कि ठाकुर जी की कृपा हो जाए तो व्यक्ति तीनो लोक का स्वामी हो सकता है। सुदामा के लाए चावल खाकर ठाकुर जी अति प्रसन्न होकर अपार संपत्ति प्रदान कर समृद्ध कर दिया। इस तरह से ठाकुर जी की प्रेम भक्ति का प्रतिफल रहा कि सुदामा की दरिद्रता दूर हो गई।

ठाकुर जी को भाव चाहिए। जो सम्पूर्ण भाव से समर्पित हो जाता है। उस पर गोसाईं जी की कृपा हो जाती है और समस्त दुख – दर्द दूर हो जाते हैं। व्यक्ति की समृद्धि का रास्ता खुल जाता है। भगवान ने पुजारी से कहा कि भला मुझे क्या जरूरत है ? कुछ कमी हो तब कुछ अर्पण करें तो पुजारी ने कहा कि भगवान आपके गले पर हार नहीं था। अतः ब्राह्मण ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर हार बनवाकर पधार दिया।

ऐसे ही ब्राह्मण भक्त के समर्पण भाव से ठाकुर जी खुश होकर पुजारी से बोले कि यदि उसने चिंता नहीं की तो ब्राह्मण से कहना आज से जो मेरा है वो सबकुछ उसका है। इस प्रकार जब ब्राह्मण देवता ठाकुर जी के दर्शन को आए प्रभु का संदेश पाकर सजल नेत्रों से दर्शन कर धन्य हो गए। फिर जीवन में कहीं कोई कमी महसूस नहीं हुई। प्रभु की समर्पित भक्ति भाव में जीवन – आनंद का रहस्य है।

( चित्रकूट से बिहारी जी के चरणों का सेवक बिहारी दास )

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