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By :- Saurabh Dwivedi

कुछ लिखने की इच्छा हो रही है। सीने के जिस हिस्से पर हृदय का वास होता है। वहीं तुम्हे लिखने की इच्छा गुलक रही है। ये अदम्य इच्छा मुझसे लिखवा जाती है प्रेम तुम्हारा।

किन्तु तुम्हे पता नहीं होगा अक्सर बहुत कुछ लिखने की इच्छा होने के बावजूद कुछ भी नहीं लिख पाता हूँ। लिखने की इच्छा को मारने का अर्थ है स्वयं को मार लेना ! अतः ये इच्छा मरती नहीं , पुनः जन्म लेती है अर्थात वह सुप्त हो जाती है। सुप्त इच्छा पुनः जागृत होती है और फिर अनिच्छा हो नहीं पाती कि तुम्हे ना लिखा जाए प्रेम।

जरा जमाने का भी भय होता चूंकि नफरत और कुंठा का इतना विस्तार हो चुका है कि खुलेआम प्रेम लिखना ; जाने कितने सवालों को जन्म देता है ? लेकिन मुस्कुराते होठो से , अहसास से लबालब होठों से कहता हूँ कि वो प्रेम ही क्या जो भय खा जाए ! प्रेम ताकत है , उत्साह है और ऊर्जा है। जहाँ प्रेम होता है वह अपनी ताकत उत्साह और ऊर्जा से स्वयं प्रदर्शित हो जाता है।

प्रेम मैं यूं ही तुम्हे लिखते रहना चाहता हूँ। तब तब , जब जब मैं अकेला तन्हा रहता हूँ। सूर्या स्लीक कूलर के सामने मई के अंत और जून की शुरूआती सुबह से पहले की तपन में ताप को माती देती ठंड फुहार वाली हवा के स्पर्श के अहसास से तुम्हे स्पर्श करने का अहसास। कल्पनाओं में आसमान की ओर देखते हुए चल रही ठंडी बयार के स्पर्श से तुम्हारा सदृश्य स्पर्श महसूस करते हुए शब्दों से तुम्हे उकेरना प्रेम है।

कुछ इस तरह तुम साकार हो जाती हो मेरे अंदर सीने के उस हिस्से में जहाँ हृदय का वास है और वहीं तुम्हारा वास है। एक शून्य से आकार की जगह जो सिर्फ महसूस की जा सकती है। कुछ इस तरह से तुम्हे जी लेना और लिख लेने की इच्छा प्रेम है।। सुनो इन पलों में अद्भुत महसूस कर रहा हूँ कि तुम एकदम साकार हो ! अपनी धुन में गिटार की तरह गुनगुनाती हुई।

कुछ इस तरह से अपनी तन्हाई खत्म कर लेता हूँ , तुम्हे रचकर हाँ मेरे प्रेम। अब देखो ये प्रेम है जहाँ व्याकरण नहीं होता सिर्फ भाव होता है , अहसास होता है। कह सकते हैं थ्योरी होती है !

तुम्हारा ” सखा “

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