By :- Saurabh Dwivedi
बलात्कार के मामले चुनावी प्रयोगशाला के अम्लीय तत्व ना बनें !
राजनीति से समाधान करने की सोच विलुप्त सी हो रही है या ऐसा भी कह सकते हैं कि राजनीति मे उस सोच का क्षय हुआ , जिससे सामाजिक समस्याओं का समाधान निकलता था।
देश के दो जिम्मेदार नागरिक के बयान ले लेते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब प्रधानमंत्री नहीं हुआ करते थे , तब उन्होंने ” रेप कैपिटल ” कहा था।
देश का प्रधानमंत्री बनने के स्वप्नदर्शी राहुल गांधी ने ” रेप इन इंडिया ” कहा। स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी रेप कैपिटल वाले बयान मे थी। नरेन्द्र मोदी तब प्रधानमंत्री नहीं थे और राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री नहीं है , बल्कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने को सोचते हैं।
देश की राजधानी को बलात्कार की राजधानी कह दिया अर्थात संपूर्ण भारत बलात्कार के जद मे आ गया।
रेप इन इंडिया कह दिया अर्थात संपूर्ण भारत को बलात्कार का देश बता दिया।
वैसे इसमे हैरानी की बात भी क्या है ? जब देश के कोने-कोने से बलात्कार की घटनाएं प्रमुखता से प्रकाशित हों तब देश बलात्कार के देश के रूप में पहचान बना लेता है।
कोई देशवासी कहे ना कहे परंतु विदेशी ऐसी खबरे सुनेंगे तो वह अवश्य भारत को बलात्कार का देश नाम से पुकार सकते हैं।
एक खबर कुछ वर्ष पहले आई थी। जब एक विदेशी महिला के साथ भारतीयों ने छेड़खानी की थी। कुत्सित मानसिकता के लोगों ने बलात्कार की कोशिश की थी। अब वो विदेशी महिला भारत की बाहर पहचान लेकर क्या जाएगी ?
क्या वह भारत को सभ्य राष्ट्र कह पाएगी ? वह एक असभ्य राष्ट्र ही कहेगी। बल्कि महिला सुरक्षा के मामले में भारत की छवि खराब कर देगी ! इसलिये देश की छवि राहुल गांधी के रेप इन इंडिया कह देने मात्र से नहीं खराब होने वाली अपितु वह राष्ट्र के नागरिकों के अवैध आचरण से स्वयमेव खराब होती है।
राहुल गांधी बहुत बुरे इंसान हो सकते हैं तो शेष समस्त भारतीय इतने अच्छे इंसान हों कि राहुल गांधी की बुराई चांद मे दाग की तरह हो जाए। यह मानसिकता की बात है और समझने की बात है।
राजनीति अगर समस्या का समाधान करना चाहती तो वह एक स्वर से कम से कम बलात्कार के मामले मे इतना सख्त कदम उठा लेती कि फिर कभी भविष्य किसी और सरकार को कम से कम इस एक मामले मे शर्मसार ना होना पड़ता।
नरेन्द्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो निर्भया मामला और अन्ना आंदोलन बड़ा कारण था। उन्होंने रेप कैपिटल कहा तो उनके समर्थकों को यह बात अच्छी लगी पर अब राहुल गांधी ने रेप इन इंडिया कह दिया तो उन्होंने भारत और यहाँ की महिलाओं का अपमान कर दिया।
एक राजनेता कितना भी बड़ा ताकतवर हो उसमें इतनी हिम्मत नहीं कि मंशानुरूप बयान देकर महिलाओं का अपमान कर सके। यह अलग बात है कि राजनीति में इतनी सुचिता हो कि बलात्कार के मामले चुनावी प्रयोगशाला के अम्लीय तत्व ना बनें !
विरोध अगर होना चाहिए तो रेप कैपिटल और रेप इन इंडिया दोनों का होना जरूरी है। अन्यथा राजनीति के अभिनेता एवं अभिनेत्री संसद भवन से लेकर चुनावी रैली तक अभिनय करके जनता का ध्रुवीकरण कर सिर्फ चुनाव जीतते रहेंगे।
समझने योग्य है कि निर्भया से दिशा तक की यात्रा हो जाती है और अपराधी जेल में ही रह जाते हैं। उन्हें अब तक अंतिम दंड नहीं मिला। इसके बावजूद भी राजनीति ने कोई ऐसा दर्शन नहीं प्रस्तुत किया कि कम से कम हमारी पहचान बलात्कारी मानसिकता की ना हो !
यह अलग मुद्दा है कि अवसर के अनुसार राजनीतिक दल एक – दूसरे को घेरते रहते हैं और इस घेराव में जनता को राष्ट्र की अस्मिता का संदेश देकर भक्तिभाव जागृत कर मत स्व – पक्ष मे स्थानांतरित करा लेते हैं।
कोई भी राजनीतिक दल यह भी नहीं कह पाता कि समाज बलात्कार की घटना मे अंकुश लगाने के लिए सामाजिक बदलाव लेकर आए। समाज कोशिश करे कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो सके।
राजनीतिक चौकीदार होना और सोशल मीडिया पर मैं भी चौकीदार हूँ लिख देना पाॅलिटिकल फैशन ट्रेंड हो सकता है परंतु हकीकत में राष्ट्र भक्ति से ज्यादा कठिन काम चौकीदारी करना है।
यह भी सच है कि संसद सिर्फ कड़ा से कड़ा कानून बना सकता है और अंकुश लगाने के लिए अभी भी कानून कम नहीं है अपितु इससे भी कड़ा ब्रह्मास्त्र समान कानून हो जाए कि बलात्कारी मानसिकता के लोग थर – थर कांपते रहें।
परंतु देश की जनता आत्मा में हाथ रखकर स्वयं से पूंछ ले कि कानून से बलात्कार होना बंद हो जाएगा ? देश की जनता ईमानदारी से बता दे कि घर के अंदर कितने बलात्कार होते हैं। गांव में कितने बलात्कार होते हैं , जिनकी प्राथमिकी दर्ज नहीं होती !
असल में बलात्कार को राजनीति खत्म नहीं कर सकती। प्रार्थना सिर्फ इतनी सी होनी चाहिए कि राजनीति की वजह से अधिक बलात्कार ना हों ! राजनीति की बलात्कारी मानसिकता खत्म हो जाए। वह इतनी नैतिक हो जाए कि वास्तव में आम आदमी के उच्च जीवन स्तर पर ही विचार करे और योजनाएं धरातल पर इस तरह से लागू हों कि कम से कम आर्थिक समस्या से ना जूझना पड़े , इस एक काम को भी राजनीति ठीक तरह से नहीं कर पायी।
भारत के किसान से जुड़े हुए ऐसे मुद्दे हैं , जिन पर बजट ना होने की बात कहकर किनारा लगा दिया जाता है। किसान सम्मान निधि से बेहतर यही होता कि देश भर के किसानों का कर्ज ही माफ कर दिया जाता। अपितु उन तमाम हजारों करोड़ के कार्यों के जिनकी आवश्यकता हाल – फिलहाल नहीं थी। और अंततः आपको वह कार्य रद्द करने पड़े।
राजनीति और संविधान आम आदमी को अधिकतम आर्थिक रूप से सुदृढ करे , यही पर्याप्त है। जबकि राजनीति संविधान को हथियार बनाकर आम आदमी की निजी जिंदगी पर हमला करती है। कोई राजनीतिक कम सामाजिक संगठन आम आदमी के जीवन पर लाठी चलाता है। इस देश का माहौल गिरते राजनीतिक स्तर की वजह से खराब हुआ है।
राजनीति ने ना पहले बलात्कार खत्म किए हैं और ना वह कभी कर पाएगी। यह अलग बात है कि बलात्कार पीड़ित की लाश पर चढ़कर सत्ता पर बैठ जाएं। यह भी अलग तथ्य है कि बलात्कारी को सजाए मौत देकर भी सत्ता पर चढ़ जाएं। किन्तु यह राजनीति बलात्कार की समस्या का समाधान नहीं कर पाएगी।
अब राजनीति समस्याओं को जन्म दे रही है। खैर इस राष्ट्र की तमाम समस्याओं से इतर बलात्कार की समस्या प्रमुख है जो समाज द्वारा ही समाप्त हो सकती है परंतु समाज अब उस ओर सोच नहीं सकता। सोचकर भी बड़ा लंबा समय लगेगा ; किन्तु समाज उस विचार को नहीं अपना पाएगा जिससे संभवतः सौ दो सौ वर्ष मे कभी बलात्कार की समस्या हद तक कम हो जाए।
समाज को ही चिंतन करना चाहिए कि आपने तो बड़े नियम बना रखे हैं , विवाह से पूर्व प्रेम अपराध है और विवाह के बाद प्रेम पाप है। लड़का – लड़की बढ़ती उम्र के साथ ट्रेन की पटरी की तरह दूर हो जाते हैं। पुरूष और औरत दोस्त नहीं हो सकते अपितु प्रेम करना गुनाह है। हाँ सामाजिक व्यवस्था में शारीरिक मिलन हेतु विवाह को मान्यता दी गई है , चूंकि विवाह के बाद प्रेम पैदा हो जाएगा की मान्यता है। प्रेम नहीं भी हो तब भी विवाह दो देह को दैहिक भूख शांत करने का सामूहिक सांकेतिक प्रमाणपत्र प्रदान करता है , जिसमे प्रेम हो ना हो इसकी कोई सामाजिक शर्त नहीं है।
एक स्थूल व्यक्ति और स्थूल समाज में स्थूलता ही रहती है। जबकि समाज के पारिवारिक – सामाजिक कड़े नियम और कड़ा कानून भी मिलकर बलात्कार रोक नहीं सका। तो अब वर्तमान की राजनीति बलात्कार नहीं होने देगी , यह हताशा से भरी आशा है। समाज सिर्फ वह सोच ले और अपना ले जिससे बलात्कार कम से कम हो सकते हैं , पर यह समाज अपना नहीं सकेगा। चूंकि समाज वह सबकुछ वर्जित मानता है , जिससे कभी बलात्कार पर अंकुश लग सकता है। वैसे भी बलात्कार ना होने वाला समाज बहुत पीछे छूट गया है।