By : Sushma gupta
रेपिस्ट एक दिन में खड़े नहीं होते। कहीं ना कहीं परवरिश में भी चूक हो जाती है। हालाँकि हर बार यही वजह नहीं होती पर यह एक बहुत बड़ी वजह है।
इस कठिन समय में सिर्फ हम बड़े ही अवसाद में नहीं हैं ,बच्चों की भी लाइफ पर ,लाइफस्टाइल पर भी गहरा असर हो रहा है।हम बड़े अपनी मुश्किलों में इतनी खोए रहते हैं कि हम अपने बच्चों के छोटे-छोटे बदलाव नोटिस ही नहीं करते।
कुछ दिन से बिटिया बहुत चिड़चिड़ी हो रखी है। छोटी-छोटी बात पर रो देती है और प्रियम से भी उसका झगड़ा हो जाता है। आज खाना खाते-खाते अचानक डाइनिंग टेबल से उठकर भागी। जब 5-7 मिनट तक वापस नहीं आई तो मैं पीछे देखने गई थी क्या हुआ उसको।
बिफोर टाइम ,ऑलमोस्ट 10 डेज पहले ही पीरियड स्टार्ट हो गए । मैंने उसको ज़रूरी चीजें दी और वापस डाइनिंग टेबल पर आकर प्रियम को कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है।
अब यह तबीयत ठीक नहीं है’ हमेशा से, हमारे भाइयों को भी कहा जाता रहा, माँ के लिए भी और मेरे लिए भी पर यह तबीयत ठीक क्यों नहीं है यह बात उन्हें कभी नहीं बताई गई। मैं नहीं जानती यह सब उन्होंने कहाँ से जाना होगा ,कहीं दोस्तों से या शादी के बाद अपनी पत्नियों से।
मुझे नहीं पता कि एक आम आदमी की संवेदनशीलता इस दौरान अपनी पत्नी के प्रति कैसी होती है पर मैं चाहती हूँ कि मेरे बेटे की सोच इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हो।
इसलिए मैंने उसे आगे कहा ,बहन को दस दिन पहले ही पीरियड स्टार्ट हो गए हैं। ब्लीडिंग भी ज्यादा हैं। चिड़चिड़ापन रोना , दर्द यह सब और ज़्यादा होगा। उसको प्यार से हैंडल करो, थोड़ा गुस्सा करती है तो सुन लो ।अगर मैं इधर-उधर हूँ , काम में व्यस्त हूँ, तो उसको पूछो कि हॉट वॉटर बॉटल चाहिए क्या और अगर उसके पैर या कमर दबा सको तो और ज़्यादा अच्छा है ।
यह बात मैंने आज प्रियम से पहली बार नहीं कही, जब योग्या को कुछ साल पहले पीरियड स्टार्ट हुए थे तभी मैंने प्रियम को समझाया था कि यह सब कैसे होता है उसको अगर अचानक पीरियड स्टार्ट होते हैं और मैं घर के बाहर होती हूँ तो वह उसको अक्सर हेल्प कर देता है। वह भी वॉशरूम में से बेझिझक उसको आवाज़ लगाकर जो चाहिए होता है मांग लेती है।
अब यह संवेदनशीलता उसके अंदर इसलिए है कि मैंने उसको बहुत सारी चीज़ें स्पष्ट बताई, बताया है कि यह कितना तकलीफ दायक होता है, मानसिक रूप और शारीरिक रूप दोनों तरह से।
मैं जानती हूँ कि कल को जब उसकी शादी होगी तो वह अपनी पत्नी के महीने में आने वाले बदलावों को इज्ज़त की नज़र से देखेगा , मज़ाक की या अवहेलना की नज़र से नहीं।
जिन घरों में हम पले-बढ़े हैं वहाँ भी सैनिटरी पैड कागज़ में लपेट कर चोरी-चोरी बाथरूम तक ले जाना पड़ता था। हमारे घरों में यह सिखाया गया जैसे यह कोई गलत बात है और बाकी सब घर के मेंबर से छुपी रहनी चाहिए। पर मैं इस बात के लिए गर्व महसूस करती हूँ कि मैं मेरा बेटा ऐसा बना पाई हूँ कि अब वह इन दिनों में मुझसे ज़्यादा योग्या का ख्याल रखता है।
जाने-अनजाने बहुत पहले ही अपने बेटों के दिमाग में हम यह बीज बो देते हैं कि वह कहीं ना कहीं वह लड़की से किसी मामले में सुपीरियर है ।
मैंने अपने एक इंटरव्यू में पहले भी कहा है और इस पर एक लघुकथा भी लिखी है कि हम बहुत आसानी से बेटों से पूछ लेते हैं तेरी गर्लफ्रेंड्स कितनी है? ,अपनी बेटी को हम शायद यह पूछ ले कि तेरा बॉयफ्रेंड है ? , बॉयफ्रेंड्स कितने हैं यह तो हम कभी भी नहीं पूछते।
‘एस’ लगाने का मतलब होता है ..
चरित्रहीन।
मैं यह नहीं कह रही कि आप लड़कियों को भी कहिए कि यह ‘एस’ लगाएं, मैं सिर्फ इतना कह रही हूँ कि यह बात हम लड़कों से भी क्यों पूछते हैं !
हम यह जेंडर बाइफरकेशन करते ही क्यों है!
फ्रेंड .. फ्रेंड होता है।
यह गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड क्या है यह सब ?
कहने को यह बहुत छोटी बात लगती है जिसको हम नोटिस भी नहीं करते पर अनजाने में हम इस पूरे एपिसोड में अपने बेटों को एक अपर हैंड देते हैं और लड़के भी ज़्यादा से ज़्यादा गर्लफ्रेंड बनाना स्टेटस की बात समझते हैं।
कुछ तो इंटरनेट का एक्सपोज़र इतना ज़्यादा हो चुका है ,इतनी ज़्यादा इंफॉर्मेशन छोटे बच्चों के पास आ चुकी है कि उनका दिमाग इस सबको ठीक से समझने ग्रैस्प करने और इंटरप्रिटेड करने के लिए अभी परिपक्व भी नहीं हो पाता और उससे पहले ही यह सारी गंदगी उनके दिमाग में घुल जाती है।
ऐसे समय में अगर आप अपने बच्चों से खुलकर बात नहीं करते तो फिर ऐसी ही घटनाएं जन्म लेती है जैसी अभी बॉयज़ लॉकर रूम वाली चल रही है। अभी मैंने नवीन जी की भी एक पोस्ट देखी जिस पर उन्होंने अपनी 12 साल की बेटे से इस पर खुलकर बात की। मुझे बहुत खुशी हुई कि हमारे समाज में यह बदलाव आ रहा है।
मेरे बस में मेरे बेटे को संभालना है।आपके बस में आपके बेटों को संभालना है।
उनसे बात कीजिए जब हम एक-एक करके अपने घर के बेटों को संभालते जाएंगे, कहीं ना कहीं धीरे-धीरे समाज में संवेदनशीलता लड़कियों के, स्त्रियों के प्रति बढ़ेगी और कहीं कुछ तो बदलाव होगा ।
दुनिया में रहना है तो इसको सही तो करना होगा ना ।
बिगड़ गई है विकृत हो गई है पर सिर्फ कोसते रहने से क्या होगा ?
बहुत ज़रूरी है कि हम अपने अपने परिवार से यह कोशिश करें और लगातार करते रहे । जहाँ तक हो सके हर छोटी बड़ी बात अपने बेटों और बेटियों के बीच में पारदर्शी रखें। किसी भी चीज़ के लिए यह न करें कि यह काम सिर्फ लड़की का है और यह काम लड़के का है। एक दूसरे की समस्याएं दोनों को पता होनी चाहिए चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक बदलावों से जुड़ी हो।
इन छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े बड़े बदलाव आएंगे ऐसा मेरा मानना है।