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SAURABH DWIVEDI

बुंदेलखण्ड के छोटे से गांव में किसान परिवार में जन्मे पंकज मिश्र जमीनी राजनीति के छात्र जीवन से ही पुरोधा माने जाते हैं। पंकज की खासियत यही है कि वे संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटे। जिंदगी के हर सफर में संघर्ष को ही नाव बनाकर मझधार से भी किनारे लगते रहे हैं। 

मैं खासतौर से अतर्रा महाविद्यालय की छात्र राजनीति से पंकज मिश्र को करीब से जानने लगा। किस्मत में कुछ पद होते नहीं लेकिन इनका ही संघर्ष रहा कि छोटे भाई मुन्ना मिश्रा को छात्रसंघ अध्यक्ष बनाकर छात्रों ने संघर्ष का उपहार सौंप दिया। 

कुछ समय पश्चात स्वविवेक से कांग्रेस पार्टी को राजनीति का माध्यम चुनकर किसानों व युवाओं के हित में राजनीति करने का मन बनाया तो प्रदेश संगठन से लेकर जिलेे का जिलाध्यक्ष बनने का गौरव हासिल किया। 

गौरतलब है कि युवा रक्त हो और किसी भी दल को रंज ना हो तो आनंद कहाँ ? इन्होंने जिलाध्यक्ष बनने के साथ लोगों को इस तरह साथ लेना शुरू किया कि अन्य दलों के नेताओं में हुक उठने लगती है। आए दिन सूचना मिलती कि चित्रकूट जिला कांग्रेस में कुछ युवा तो वहीं तमाम अनुभवी बुजुर्ग भी शामिल हो रहे हैं। 

यह देखने को मिला कि जहाँ बुजुर्गों द्वारा युवाओं को लौंडा लपाटी कह कर नकार दिया जाता है, वहीं पंकज मिश्र को बुजुर्गों गोद सरीखेे लिया। 

एक सफल जिलाध्यक्ष के रूप में ना सिर्फ जाने जाते हैं। बल्कि स्वयं को प्रस्तुत भी किया है। इनकी सांगठनिक क्षमता को देखते हुए कांग्रेस पार्टी में प्रभाव बढ़़ता जा रहा है। ये गांधी परिवार के समीप भी पहुंचते हुए महसूस होते हैं। 

एक किस्सा याद आया कि जब राहुल गांधी खाट पर चर्चा कर रहे थे। उस वक्त गांव बछरन के समीप ही इन्होंने राहुल गांधी से मिलने हेतुु पूर्ण आयोजन किया और मिलन के वक्त लगभग एक किलोमीटर से दौड़़ लगाई थी। हालांकि स्वयं राहुल गांधी अमीर घराने से हैं परंतु कहना चाहूंगा कि कृष्ण और सुदामा की तरह का सहृदय मिलन था। 

इसके बाद ही पंकज मिश्र का राजनीतिक कैरियर उड़ान की ओर है। वे अब पीसीसी के सदस्य भी हैं और दिल्ली में राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने हेतु पहुंचेे हैं। 

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