By – Saurabh Dwivedi
आनंद शुक्ला की कार्यशैली ही कर्मयोगी की पहचान है।
युवा जोश से भरपूर प्रदेश कार्य समिति भाजपा के सदस्य आनंद शुक्ला लगातार जनता के बीच पैठ बनाते नजर आ रहे हैं। आनंद नए युग की नई कहानी लिखने को प्रतिबद्ध नजर आते हैं। इनके अंदर आमतौर पर राजनीति से हार मान लेने वाले लोगों की तरह कमजोरी वाला गुण बिल्कुल नहीं झलकता है।
ये कहानी विधानसभा चुनाव के समय से शुरू होती है। जब आनंद शुक्ला चित्रकूट जिले में मऊ मानिकपुर विधानसभा से विधायकी लड़ने के लिए बाहर पहलवान की तर्ज पर ताल ठोक रहे थे।
ये कुछ ऐसा ही है कि दंगल का आयोजन हो रहा है और ताकतवर से ताकतवर पहलवान दंगल के मैदान में उखाड़ – पछाड़ करने को आए हुए हैं। ठीक ऐसे ही राजनीतिक दंगल में आनंद शुक्ला ने ताल ठोकी , हालाँकि अंतिम क्षणों में इसी विधानसभा से आरके पटेल प्रत्याशी के तौर पर उतार दिए गए।
यहीं से इनकी परीक्षा की घड़ी और व्यक्तित्व की परख होनी शुरू होती है। यहीं से आनंद नाम की पहचान बननी शुरू होती है। आमतौर पर अनुभव मिलता है कि कोई बाहर से आया हुआ नेता वापस अपने कार्यक्षेत्र पर सीमित हो जाता है। चित्रकूट जिले में यह अनुभव आम है। यहाँ साँसद से लेकर विधायकी लड़ने बहुत से नेता आए और कुछ जीतने के बाद भी यहाँ की मातृभूमि से छल कर गए।
पर आनंद शुक्ला के बोल नहीं बदले ; वे कहते रहे कि चित्रकूट के ही हैं और यहीं के होकर रह गए। लगातार जनता से रिश्ता कायम किए हुए हैं। हफ्ते भर कहीं भी रहें पर दिन शनिवार आते ही भाजपा कार्यालय में जनसुनवाई करते हुए दिखेंगे। यही वजह है कि जनता और दलीय कार्यकर्ता से जुड़ते जा रहे हैं।
अन्य नेताओं और आनंद शुक्ला की कहानी में यही मामूली सा अंतर उन्हें कर्मयोगी बना देता है। वक्त के साँचे में ढलकर आनंद शुक्ला प्रोफेशनल पालिटिक्स करना भी जानते हैं। जनता के बीच आम आदमी की तरह का लोक व्यवहार और काम करने का तरीका एकदम व्यवस्थित है। जैसे एक उद्देश्य बना लिया है और मंजिल पर ही ठहरना है। यही है एक कर्मयोगी की पहचान।