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By – Saurabh Dwivedi

मंदाकिनी ही वह नदी है , जिससे नगर वासियों की ना सिर्फ प्यास बुझती है वरन् स्वास्थ्य की पूर्ति भी करती है। अगर मंदाकिनी प्रदूषित होगी तो जनता को मिलने वाला दूषित जल से बाल – बच्चे बीमार होगें और बड़े – बुजुर्ग तक अस्पताल के दौरे करते रह जाएंगे। एक समय ऐसा भी आया कि नगर के प्रत्येक घर में गंदा पानी पहुंचने से जनता त्राहि त्राहि करने लगी थी।

यह खुली आंखो से दिखने वाला प्रदूषित जल था। लेकिन जल इस तरह से भी प्रदूषित होता है कि दिखने में कांच की तरह साफ दिखेगा परंतु मिनी माइक्रो आकार के कीटाणु होते हैं तथा जलीय तत्व प्रदूषित हो जाते हैं , जो खुली आंखो से ना दिख कर वैज्ञानिक प्रयोग से पता लगाया जा सकता है।

यही आरोप नगर के सभासद किसी अशोक गुप्ता नाम के शख्स पर लगा रहे हैं कि इनके डेयरी उद्योग की दिशा और दशा से मंदाकिनी का जल प्रदूषित हो रहा है। कहते हैं कि डेयरी मालिक ने मंदाकिनी नदी की सीमा पर अतिक्रमण कर रखा है तथा गो मूत्र व गोबर का विसर्जन भी नदी के जल पर होने से प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है।

गोबर सड़ेगा तब

गाय का आध्यात्मिक महत्व कुछ भी हो परंतु गोबर पानी पर अधिक मात्रा में होने एवं लगातार बने रहने से सड़ता है। आमतौर पर देखा जाता है कि खुली जमीन पर अधिक दिनों के गोबर पर कीटाणु दिखने लगते हैं। चूंकि जिला प्रशासन की जांच में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि नदी के अंदर अधिक मात्रा में गोबर पाया गया। अस्तु यह मानव जीवन के खिलाफ बड़ा अपराध है , जिसे नजरंदाज किया जाना मानव जीवन से खिलवाड़ एवं संक्रमित बीमारी के चपेट पर लाने का बेजा प्रयास है।

मिनी माइक्रो लेवल के कीटाणु जल में समाकर मैग्नीशियम , लेड , कैल्शियम जैसे दर्जनों तत्व को प्रदूषित कर अदृश्य रूप से जल प्रदूषित करते हैं और परिणाम यह है कि अमृत समझकर जिले के पत्रकार , जनप्रतिनिधि , वकील , अफसर सहित प्रत्येक आम आदमी स्लो प्वाइजन पीता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक आधार पर सत्य है कि मनुष्य को होने वाली ज्यादातर बीमारियां प्रदूषित जल की वजह से होती हैं। बच्चों को संक्रमित बीमारी गंदे व बदबूदार जल की वजह से होती है। साठ साल की उम्र को पार कर चुके बुजुर्ग भी प्रदूषित जल की वजह से अतिशीघ्र बीमारी के चपेट में आ जाते हैं। अफसोस जनक है कि जनता बाहर से सफेद दिखते पानी को पीते हुए समझ नहीं सकती कि एक डेयरी के ऐसे अतिक्रमण से कितना भारी नुकसान उठा रही है। अस्पताल के चक्कर लगाकर जाने कितना धन डाक्टर को सौंप देती है। किन्तु वह प्रदूषित नदी के खिलाफ आवाज उठाने में सुप्त बैठी हो तो चिंतनीय व निंदनीय है।

सड़ा हुआ गो मूत्र

यदि आध्यात्म के अनुसार गो मूत्र अमृत है तो बिना फिल्टर किया हुआ बाल शैव के मूत्र के अलावा वयस्क और बुजुर्ग गाय का मूत्र भी पानी में समा जाने से स्लो प्वाइजन का स्वरूप धारण कर लेता है। डेयरी मालिक कुछ और नहीं बल्कि बुजुर्ग गाय का मूत्र एवं गोबर नदी में डलवाकर नगरीय जनता को स्लो प्वाइजन पीने के लिए बाध्य किए है। गौरतलब है कि जनता इन सभी वैज्ञानिक पहलुओं से वाकिफ ना होकर स्वयं के लिए मृत्यु तो डेयरी मालिक को सूटबूट वाला इज्जतदार अभयदान दिए हुए है।

अफसरों की उदासीनता

पिछड़े जिले में सम्मिलित जनपद चित्रकूट को तेज तर्रार हेतु प्रसिद्ध जिलाधिकारी दिया गया एवं जनपदीय अफसरों की बदली कर यहाँ के हालात बदलने की कोशिश की गई। किन्तु जिले के अंदर विराजमान समानांतर सरकार की वजह से शायद सभी अफसर भी उदासीन हो चुके हैं अथवा इस मामले पर शीघ्र ठोस कार्रवाई ना होने के पीछे का रहस्य ही कुछ खास हो। किन्तु इस विषय की जांच कौन करेगा ? हाँ हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका से जरूर कुछ आशा बंधी है और अफसरों की जवाबदेही तय हुई है। नगरपालिका की जनता को भी नगरपालिका एवं इन अफसरों से जवाब मांगना चाहिए कि आखिर डेयरी मालिक पर कार्रवाई करने में अक्षम क्यों रहे ? सीधे जनता को इनसे संवाद करना चाहिए और मानवाधिकार के तहत कटघरे पर खड़ा करना चाहिए।

इस संबंध में नगरपालिका के सभासद सुशील श्रीवास्तव , लव सिंह , जवाहर लाल सोनी , दिनेश धतुरहा सहित तमाम सामाजिक शुभ चिंतको काम सराहनीय रहा तो वहीं जनप्रतिनिधि व अफसरों की उदासीनता से अशोक गुप्ता का हिटलरपना इस कदर बढ़ता महसूस हुआ कि उसने सभासदों पर मानहानि का मुकदमा दायर करने एवं धमकी देने का काम शुरू कर दिया। संभव है कि इनकी करतूत पर लिखने वालों पर भी धमकी एवं फर्जी मुकदमे का सहारा ले सकते हैं। अस्तु कितना संगीन मामला है और सिर्फ एक व्यक्ति फिल्मी कहावत की तरह भारी पड़ रहा है कि एक मच्छर साला आदमी को हिजड़ा बना देता है।
मंदाकिनी पर अशोक गृहण से जनता के जीवन पर शनैः शनैः जो गृहण लग रहा है , इस संवेदनशीलता की ओर सोचने वाला कोई शक्तिमान दिखे तो सिवाय सभासदों के ? यह सवाल चित्रकूट की जल पीने वाली जनता से है।

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