By – Saurabh Dwivedi
कहते हैं ना कि जिंदगी में कुछ ऐसा तो होता है , जो कभी पुराना नहीं होता और हमेशा उसमें नयापन महसूस होता रहता है ! कुछ तो ऐसा अपना होता है कि वो अंतिम साँस तक के लिए सबसे प्यारी चीज हो जाती है अर्थात वही जिंदगी बन जाती है।
जैसे हमारा जन्म ही हमारी जिंदगी है और अंतस की आवाज का भी अपना जन्म किसी जन्म से रिश्ता रखता है। इसका भी अपना बचपना और वह पल रहे , जब वो पहली किलकारी सुनते हैं और एक बच्चा इस दुनिया में आ जाता है।
फिर शुरू होती है एक जिंदगी , एक ऐसी जिंदगी जो जीवन में इतिहास बनाते हुए रिश्ते बनाती है। इसी जिंदगी में कुछ पल ऐसे आते , जिन्हें जी कर रचनाएं भी रच जाती हैं। कुछ अद्भुत अकल्पनीय सा हमारे अंदर बसने लगता है और वही रचने लगते हैं।
हाँ अंतस की आवाज एक ऐसी कृति है , जिसके होने की कल्पना कभी की नहीं थी। यह मेरे लिए इतना ही अकल्पनीय था , जितना की जिंदगी में आत्मीय प्रेम का होना अकल्पनीय होता है।
क्या वास्तव में ऐसा प्रेम महसूस किया जा सकता है , जो अशरीरी हो ! जो देह से परे जिया गया हो। यह सत्य है , ओशो की वह बात सच है कि देह से परे तब ही हुआ जा सकता है , जब देह भोग ली गई हो अर्थात आपने गहराई से महसूस कर लिया हो फिर आपके अंदर यही एक मात्र भावना नहीं होती कि देह ही सबकुछ है और देह से परे प्रेम के सत्य का अनुभव करने लगते हैं।
हाँ जो साँसों से जिया जाए , एक गहरी साँस से महसूस कर लिया जाए। जहाँ अपनी प्रेयसी से मिलने और ना मिलने जैसी कोई बात प्रेम में दखल ना देती हो।
दूर रह कर भी बातों का सिलसिला कभी खत्म ना होता हो , मासूमियत इतनी कि स्वयं को बच्चे सा महसूस कर लेते हों और प्रेयसी को मम्मा कहने की पूर्णता का अहसास कर लेते हों। हाँ प्रेम की ऐसी ही गहराई से जन्मती है , कोई अंतस की आवाज जैसी अद्भुत अकल्पनीय कृति जो जिंदगी भर के लिए जगह घेर लेती है।
अंतस की आवाज से अच्छा जीवन में कुछ हो ही नहीं सकता। यही जीवन है और यही प्रेम है। अंतस की आवाज में जितनी भी रचनाएं हैं कुछ इस तरह से ही एकाकार हो पागलपन में मासूमियत और दर्द – विरह में रची गई हैं।
वरना एक भाषणबाज ” कविता ” नहीं लिख सकता। जो परीक्षा पास करने के लिए कविता मुन्ना भाई के अंदाज में पढ़ता रहा कि परीक्षा पास करनी है।
मन कहता है कि कहो हैप्पी बर्थडे अंतस की आवाज। सचमुच इस प्रसव को मैंने महसूस किया है। ताउम्र इस प्रसव के संग ही जीना है।