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बड़े नेताओं को सुनना जरूरी है या सुनाना ? मैं चुपचाप बैठा एक एक बात सुन रहा था जैसे अर्जुन श्रीकृष्ण को सुन रहा हो जैसे एक शिष्य गुरू को सुन रहा हो , ठीक चला चली की बेला मे एक कार्यकर्ता आया उसने पूर्व सांसद रमापतिराम त्रिपाठी जी से कहा कि मुझे अकेले मे आपको सुनाना है !

मेरे सामने यक्ष प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अभी तक जो मैने सुना उससे एक एक सवाल हल हो गया कि संगठन मे क्या चल रहा है ? चुनाव मे क्या हुआ ?

कौन सी सीट 2019 मे कितने अंतर से जीते थे और वही सीट कितने कम अंतर से 2024 मे जीते और कितनी सीट हार गए ? प्रधानमंत्री के जीत का अंतर 2019 के मुकाबले 2024 मे कम हुआ यह बात भी वह बोलते सुनाई दिए

यह भी सुना कि सपाइयों ने खुद को अधिकतम 20 सीट तक आंक रखा था किन्तु यह जो जीत का आंकड़ा बढ़ गया उसकी एक एक वजह और तमाम राष्ट्रवादी विचारधारा के नेताओं का चिन्हीकरण कर बता रहे थे कि फला फला ने ये किया।

प्रशासनिक स्तर मे क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए था यह भी आप क्लियर लफ्ज़ मे बोल रहे थे तो आप शासन और प्रशासन मे सुधार की बात तो कर रहे थे साथ ही कुछ बागी सुर वाले नेताओं पर कड़ी कार्रवाई की बात भी कह रहे थे।

सुन्दरकाण्ड भेट करने से पहले मैं उनकी एक एक बात सुनकर सीख रहा था तब तक समझ चुका था कि बड़े नेताओं को सुनाने की जरूरत नही है वह सुने सुनाए हैं वह पैनी नजर रखते हैं और जो लोग उनको सुनाने जाते हैं उनका खुद का नुकसान हो जाता है क्योंकि आप सकारात्मक पहल ना करके शिकायत की गठरी बांधकर जाते हैं और ये शिकवा शिकायत की गठरी आपके कंधे पर कोई चतुर नेता बांध देता है आपको लगता है कि आपने बहादुरी का काम किया तो ऐसा नही है बल्कि महज आपकी ऊर्जा का प्रयोग हो गया है।

राजनीति करने से ज्यादा सीखने की चीज है जैसे अर्जुन को चक्रव्यूह तोड़ना आता था किन्तु अभिमन्यु को अधूरा ज्ञान था इसलिए कौरव अभिमन्यु वध करने मे सफल रहे इसलिए राजनीतिक चक्रव्यूह का पहले पूरा ज्ञान लीजिए अर्जुन बनिए फिर इस कुरूक्षेत्र मे धर्म का युद्ध करिए।

मुझे सांसद और एक मझे हुए जमीनी नेता रमापति रामत्रिपाठी जी से ज्ञान प्राप्त हुआ और समझ गया कि यह सबका सबकुछ जानते हैं इसलिए बताने से ज्यादा सुनकर ज्ञान लेना चाहिए।

उन्होंने सुन्दरकाण्ड भेट होते ही कहा कि सुन्दरकाण्ड और गीता प्रेस की दोनो जीवन और राष्ट्र धर्म के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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