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Saurabh Dwivedi

हमारे यहाँ एक बैंक मैनेजर था। इलाहाबाद बैंक का मैनेजर और वो सूटबूट वाला दलित था। बेशक आरक्षण का लाभ प्राप्त कर मैनेजर बना। धन धान्य होने के साथ वो राजनीतिक भी हो गया था। राजनीति के क्षेत्र में बामसेफ जैसे संगठन और बसपा के तमाम दलित नेताओं से उसके संबंध बन गए।

उसका नाम ले पाना आज की परिस्थिति पर उचित नहीं है। किन्तु वर्तमान में अभिव्यक्ति की आजादी के दमन हेतु एक उदाहरण है। आखिर उसके खिलाफ लिखना कैसे बहुत बड़ी चुनौती थी।

उससे पहले यह जानना भी आवश्यक है कि उसने सरेआम दलालों के माध्यम से एक दलित किसान का क्रेडिट कार्ड बनाने में 20,000 ₹ घूस ली थी। उस कबूलनामे का वीडियो पहले वायरल किया गया था।

साँसद के समक्ष मुद्रा बैंक लोन के शिविर में जिनको संस्तुति पत्र प्रदान किया था। उनसे धन ना मिलने की वजह से लोन प्रक्रिया ठप्प कर दी थी। ऐसे अनेक मामले थे।

उसका एक ही काम था कि मीठी भाषा का प्रयोग करता था और दलालों के माध्यम से बैंक को लूट का अड्डा बनाए था।

जब उसके खिलाफ लिख रहा था , तो सबसे पहले मेरे ही तमाम रिलेशन वालों ने कहा कि अब मत लिखो , बहुत हो गया है। नाम किसी का नहीं लूंगा पर सब उसके भ्रष्टाचार के भागीदार ही कहे जाएंगे और अपनों के दबाव का दमन किया , शेष रिश्ते के मोह की तिलांजलि दी।

अब एससी-एसटी एक्ट की तरफ ध्यान आकर्षित करना होगा। आज एससी-एसटी एक्ट पारित कर दिया गया है। अर्थात कोई भी थाने में जाए और कुछ भी लिखकर दे दे फिर सामने वाले को एनकेन प्रकारेण जेल भेज दे।

ऐसे ही मुझे धमकियां उस वक्त मिल रहीं थीं। किसी ना किसी माध्यम से आवाज आती कि वो लोग कह रहे थे कि साहब कह दें तो हम तुरंत फंसा दें ? पर साहब की हिम्मत नहीं पड़ रही थी।।

एक अपने ब्राह्मण भाई ने मेरा ठेका लिए हुए कहा कि अरे सौरभ तो हमारा आदमी है , हम उसे कह देंगे तो मान जाएगा और जब सौरभ नहीं माना तो उसे बताने लगे कि उसका फलाने रिश्तेदार दारू पीता है , गुण्डा – बदमाश टाइप है और वो कह रहा था कि मैं फंसा दूंगा। तुम इन सब चक्करों में मत पड़ो।

एक शाम को महोबा में था तो एक दलित विष कन्या का फोन आया था। पत्रकारिणी टाइप थी। उसने सोचा कि झांसे में ले लिया जाए और बुला लिया जाए। मैंने उसे कहा कि ईश्वर ने मुझे इतनी ताकत दी है कि मैं अकेले ही लिख कर सबकुछ कर सकता हूँ , अंततः विष कन्या फोन पर ही पागल हो उठी थी।

एक दलित नक्सली दलाल पत्रकार विष कन्या का साथी है। वो साथी मेरे लिए लिख चुका था कि मैं दलाली करता हूँ और अफसरों पर दबाव बनाकर धन उगाहता हूँ। मेरे व्हाट्सएप पर एक नंबर से मैसेज आया तो मैंने उसी नक्सली दलाल को फोन लगाया और बड़े सधे हुए शब्दों में पूरी कहानी बताई तो दलाल नक्सली पत्रकार की हिम्मत नहीं हुई कि उस झूठी खबर को वायरल कर सकता था। विष कन्या भी फोन पर आई तो काल कट कर दी मैंने , विष कन्या से बचना जरूरी था। ये कायरता नहीं सूझबूझ है।

आज यह सब लिखने की जरूरत इसलिये पड़ी कि देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री सहित सभी तक आवाज पहुंच सके , अगर एक दलित अधिकारी और प्रोन्नति पर आरक्षण द्वारा बड़े पद पर बैठा हुआ दलित अधिकारी भ्रष्टाचार कर रहा है और उसके खिलाफ कोई लिखना चाहे तो क्या वह लिख पाएगा अथवा जेल में होगा ?

एससी-एसटी एक्ट अभिव्यक्ति की आजादी का दमन भी खूब करता है पर देश भर के वामपंथी पत्रकार – बुद्धिजीवी हों अथवा असहिष्णुता के ठेकेदार कोई भी इस कानून की व्याख्या इस आधार पर करने को तैयार नहीं कि आखिर मौलिक अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन क्यों ?

मुझे लगता है , समझने के लिए इतना पर्याप्त है और बेहद ही सरल तरीके से लिखा है ताकि समझ सकें। कल के दिन सूटबूट वाले भ्रष्ट, दलाल और दलित अफसरों के खिलाफ लिखना उपरोक्त उदाहरण के आधार पर बामुश्किल ही रह जाएगा। अगर लिखेंगे तो अन्य मामला बनाकर जेल जाने की अधिक संभावना है। अस्तु समझिए कि हम गुलामी काल से भी बुरे वक्त में जीने को तैयार रहें , साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी का हनन हो रहा है।

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