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@Saurabh Dwivedi

गांव पर चर्चा मे भ्रमण के दौरान एक ऐसे ब्राह्मण परिवार से मुलाकात हुई , जिनसे संवाद कर पता चला कि दीवारें अमीरी की हैं परंतु पौने चार बीघे का गरीब ब्राह्मण परिवार है। समाज के ऐसे किस्से झकझोर रख देते हैं जब वह परिवार आकाशीय बिजली का शिकार कोरोना वायरस के समय हो जाए.

निसर्ग तूफान का असर उत्तर प्रदेश के जनपद चित्रकूट मे भी साफ दिख रहा है। गुरूवार की सुबह से ही मौसम ने बदला-बदला स्वरूप दिखाया। जून की भीषण गर्मी की जगह नवंबर की दस्तक देने वाली ठंड महसूस होने लगी। किन्तु नोनार गांव में एक परिवार एकाएक आकाशीय बिजली का शिकार हो गया।

इस वक्त गांव के परिवार कोरोना से संघर्ष कर रहे हैं तो वहीं नोनार निवासी सुरेश तिवारी की छत पर आकाशीय बिजली ने आक्रमण कर दिया। एकाएक गिरी बिजली से छत को नुकसान पहुंचा और एक बड़ा घाव हो गया। बिजली के आर – पार होने से छत फट गई।

गहराई से महसूस करने की बात है कि एक ओर परिवार की आय पर असर पड़ा है , वजह लाकडाउन है। जो तिनके भर आय घरों मे पहुंचती है , उस तिनके से रत्ती भर आय अवश्य कम हुई है। ठीक इसी समय आकाश से आई आपदा से भी किसान परिवार की हालत  पस्त हुई है।

सुरेश तिवारी सामान्य जातिवर्ग मे आते हैं। इनके पास कुल पौन 4 बीघा खेती है , जिससे परिवार का भरण-पोषण होता है। गुजरते समय के साथ इस वर्ग के गरीब तपके के हृदय मे बड़ा दर्द गुजर रहा है। इनका सोचना है कि लोकतंत्र मे गरीब सामान्य वर्ग को क्या लाभ है ?

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सोचिए कल के दिन इनके बच्चों के नाम भी जमीन होगी। एक परिवार मे यदि दो बच्चे हैं तो दो बीघे से भी कम की खेती एक बच्चे को मिलेगी अर्थात साफ झलक रहा है कि पीढ़ी दर पीढ़ी एक सामान्य वर्ग का परिवार इस तरह गरीब होता चला जाता है। उसका जीवन स्तर घटकर उच्च से कम स्तर की ओर ढलने लगता है। जैसे पारा ऊपर की ओर चढ़ता है और नीचे की ओर गिरता है , यह नियम है !

किन्तु अब सामान्य वर्ग के लोग सोचने लगे हैं कि गरीबी रेखा के समीप पहुंचते जा रहे सामान्य वर्ग को लोकतंत्र से क्या लाभ हासिल होगा ? यहाँ तक की गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे सामान्य वर्ग के बहुत से परिवार मिल जाएंगे।

सबकुछ सरकार पर निर्भर है कि गरीबी जाति देखकर मानी जाएगी या अमीरी की दीवारों के अंदर रह रहे गरीब की पहचान भी सरकार कर पाएगी। हाल के वर्ष मे लागू हुए दस प्रतिशत आरक्षण का लाभ कब और कैसे मिलेगा ? सामान्य वर्ग के ऐसे गरीब परिवारों की मदद होनी आवश्यक है। वह सरकारी स्तर से होना बहुत जरूरी है। साथ ही इन बिंदुओं पर समाज को भी चिंतन करना चाहिए।

जनपद प्रशासन को अतिशीघ्र ऐसे परिवार को मदद देनी चाहिए। लाकडाउन के साथ स्काई – लाइट के हमले ने इस परिवार को खर्च बढ़ने की चिंता प्रदान की है। मानवीय संवेदना की ऊर्जा व सांसों की रफ्तार से इनके पास सामाजिक प्रशासनिक मदद पहुंचनी चाहिए।

पीड़ित परिवार का कहना है कि यदि सरकार से मदद मिल जाती है तो बहुत अच्छी बात है और सरकार के सुख का अहसास होगा। लाकडाउन के बाद अनलाक का समय आया है और प्रशासन को भी मानवीय संवेदना से हेल्प अनलाक कर देनी चाहिए।

ब्राह्मण समाज के नाम पर तमाम संगठन चलते हैं। इन संगठनों को भी इस समय इस एक ब्राह्मण परिवार की मदद करनी चाहिए। ताकि ऐसे वास्तविक किस्से समाज और सरकार के समक्ष आ सकें तब शायद संविधान में कुछ संशोधन हो सके। कितनी हैरतअंगेज बात है कि एक ओर गरीबी विकराल रूप धारण करती जा रही है तो दूसरी ओर अमीरी बढ़ती जा रही है , इस असंतुलन को संतुलित करना ही होगा। व्यक्ति और परिवार की वास्तविक माली हालत देखकर संविधान से मदद मिलनी चाहिए , बेशक वह किसी भी जातिवर्ग का हो पर वह भारत का नागरिक है।
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karwi Chitrakoot )

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1 COMMENT

  1. समसामयिक आलेख, प्रकृति मानव के दुष्कर्मों का लेखा-जोखा कर रही है। काश दुष्कर्म की सजा दुष्कर्मी को तत्काल मिल जाती तो आज पूरी मानव जाति का अस्तित्व खतरे में न होता।