By – Saurabh Dwivedi
इंसानी दृष्टि और दृष्टिकोण की बात होती है। दुनिया की सारी समस्या व संघर्ष की गाथा मानसिकता में छिपी हुई है। संकुचित मानसिकता से ऊंच – नीच की सोच जन्म लेती है , वहीं एक अच्छी – व्यापक दृष्टिकोण वाली मानसिकता से संघर्ष और समस्या का अंत हो जाता है।
मनुष्य हेलीकॉप्टर चलाने वाले व्यक्ति को पायलट कहता है और कार चलाने वाले व्यक्ति को ड्राइवर कहता है। पायलट की खूब इज्जत की जाती है , यहाँ तक की लड़का पायलट है तो कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी करने को तैयार रहता है। वहीं कोई ड्राइवर है तो उसकी इज्जत कोई करना नहीं जानता और लड़की से शादी करने जैसी सोच जन्म ले ही नहीं सकती , भले वो ड्राइवर सच्चा प्यार करता हो।
इसके पीछे का रहस्य मानसिकता का है। पायलट का वेतन अधिक होता है , वो आसमान उड़ रहा होता है। पायलट बनने के लिए उच्च शिक्षित और तकनीकी ज्ञान जरूरी है , जिसे वह हासिल करता है। एक पायलट की इसी योग्यता की वजह से सभी इज्जत करते हैं और कोई भी पिता उसकी इनकम आदि की वजह से अपनी बेटी का हाथ देने को तैयार हो जाता है।
एक ड्राइवर कम पढ़ा – लिखा हो सकता है , उच्च शिक्षित भी है पर है तो ड्राइवर। उसकी कोई इज्जत करने का इरादा नहीं रखता है। ड्राइवर की इनकम भी कम होती है। इसलिये ड्राइवर से कैसा रिश्ता ?
पायलट की सीरत बिल्कुल अच्छी ना हो फिर भी सवाल नहीं किया जाएगा पर ड्राइवर की सीरत अच्छी हो तो भी उसे सम्मान नहीं मिलेगा। यहाँ मानवता हार जाती है तथा आकर्षण जीत जाता है।
समाज में ऊंच – नीच के संघर्ष के पीछे यही मानसिकता है। खत्म होती इंसानियत के पीछे यही खतरनाक रहस्य है। प्रेम में कमी और नफरत को बढ़ावा इस वजह से मिल रहा है। स्वयं की जिंदगी से लोग इसलिये उदासीन हो रहे हैं। जबकि सच है कि कार का ड्राइवर भी लोगों को मंजिल तक पहुंचाता है। अर्जुन के रथ के सारथी कृष्ण की तरह का सारथी है और हेलीकॉप्टर का पायलट भी , या तो हेलीकॉप्टर चलाने वाले को भी ड्राइवर बोलिए और उसी नजर से देखिए जिस नजर से कार ड्राइवर को देखते हैं अथवा अपनी मानसिकता पर मंथन करें !
सच पूंछिए तो जाति – धर्म और प्रेम व नफरत के मध्य ऐसी ही मानसिकता का अंतर है। ड्राइवर और पायलट जैसा अंतर है। अगर मानसिकता का विकास हो जाए , मनुष्य अपनी चारों दृष्टियों को कम से कम महसूस करने लगे तो वास्तव में बदलाव स्वयं होने लगेगा।