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उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। इस बार मामला भाजपा संगठन से जुड़ा है, जहाँ एक कथित चिट्ठी वायरल हुई है। इसमें 50 लाख रुपये के लेन-देन का जिक्र किया गया है, जिसे लेकर न केवल विपक्ष बल्कि पार्टी के भीतर भी चर्चाएं गर्म हैं। हालांकि, इस चिट्ठी की सच्चाई की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यह राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाने के लिए काफी रही।
50 लाख का जिलाध्यक्ष: क्या यह सिर्फ एक आंकड़ा है?
राजनीति में ऊँचे पदों पर आसीन होते ही भौतिक संसाधनों में इजाफा होना कोई नई बात नहीं है। चमचमाती फोर-व्हीलर से लेकर बढ़ते रसूख तक, यह एक अनकहा सत्य है। लेकिन सवाल यह है कि यह 50 लाख की रकम क्या वास्तव में किसी सौदेबाजी का हिस्सा है या फिर यह विपक्ष द्वारा उठाया गया एक और शिगूफा ?
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यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की गोपनीय चिट्ठी सामने आई हो। इससे पहले क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल के फेसबुक अकाउंट से भी एक गोपनीय पत्र वायरल हुआ था, जिसे जल्द ही हटा दिया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा संगठन के भीतर अंदरूनी खींचतान जारी है और सत्ता संघर्ष अपने चरम पर है।
विपक्ष को मिला नया हथियार?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस मामले को जरूर भुनाने की कोशिश करेंगे। उनके लिए भाजपा के आंतरिक मामलों का खुलासा करना और इसे भ्रष्टाचार के मुद्दे से जोड़ना फायदेमंद साबित हो सकता है। लेकिन सवाल यह भी है कि 2022 में योगी आदित्यनाथ की लहर में सपा का किला पहले ही कमजोर हो चुका है, और हाल ही में मिल्कीपुर में मिली हार ने पार्टी के लिए नए संकट खड़े कर दिए हैं। ऐसे में अखिलेश यादव इस चिट्ठी के जरिए कितनी राजनीतिक बढ़त हासिल कर पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी।
बसपा सुप्रीमो मायावती भी इससे अछूती नहीं रहेंगी। उनके खिलाफ एक समय नोटों की माला पहनने को लेकर बड़ा हंगामा हुआ था, जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा। भाजपा के इस कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाकर वे भी अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर सकती हैं।
भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष?
इस चिट्ठी से पहले योगी सरकार जीरो प्वाइंट वन के समय यह भी कहा गया कि “कोई भी कार्यकर्ता थाने या ब्लॉक में नहीं जाएगा।” मतलब साफ था कि सरकारी कार्य मे हस्तक्षेप कार्यकर्ता नही करेगा और दलाली का दाग भाजपा संगठन पर नही लगेगा लेकिन इस कथित चिट्ठी ने संगठन मे दलाली का जो रहस्य उजागर किया है उसके बड़े दूरगामी असर होंगे।
ऐसे निर्देश भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष का कारण बन सकता है। पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को जब यह पता चलता है कि शीर्ष पदों पर बैठे लोग करोड़ों की बात कर रहे हैं और वे खुद 500 रुपये के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो स्वाभाविक रूप से नाराजगी बढ़ती है।
ऑडियो क्लिप और प्रकाश पाल की संलिप्तता
इस पूरे प्रकरण में एक ऑडियो भी वायरल हो चुका है, जिसमें कथित रूप से अजीत गुप्ता और मुखालाल पाल कैश के लेन-देन की बात कर रहे हैं। इसमें यह दावा किया जा रहा है कि मुखलाल पाल को पहले 5 लाख देने की बात हो रही है फिर 40 लाख रुपये देने की चर्चा हुई थी। हालांकि, इस पूरे प्रकरण पर प्रकाश पाल खुद को बेदाग बता रहे हैं।
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं, लेकिन इस चिट्ठी और ऑडियो क्लिप के सामने आने से भाजपा संगठन की पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं। यदि इन आरोपों में सच्चाई है, तो यह भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं, अगर यह विपक्ष की साजिश मात्र है, तो भाजपा को इसे सधे हुए तरीके से नकारते हुए संगठन को मजबूत करना होगा।
अब देखना यह होगा कि यह मामला महज चिट्ठी और ऑडियो तक सीमित रहेगा या कोई ठोस कार्रवाई भी होगी। फिलहाल, यह प्रकरण भाजपा के लिए सिरदर्द बनता नजर आ रहा है, जबकि विपक्ष इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।