By – Saurabh Dwivedi
बचपन में एक बार सावधानी हटते ही मेरे अंगूठे में एक चींटा ने काट लिया था। सजीव पर निर्बल सा दिखता , चींटे के काटने का दर्द मैं आज तक नहीं भूला ! वो शाम का वक्त और जगह पर मम्मी – मम्मी करके मेरा कराहना कसम से हृदय को आज भी एकाएक आई प्राकृतिक आपदा की तरह दहला देता है।
आजकल एक बार फिर मेरे घर में चीटों का झुंड दिख जाता है। बरामदे में देखो तो चींटा , किचन में देखो तो चींटा और शक्कर के बाक्स को खोलो तो चींटा। अरे बाप रे बाप चींटा ही चीटा , ऐसा लगता मानो कर्नाटक में विपक्षी एकता को मजबूत दिखाने हेतु , जिस प्रकार सब विपक्षी नेताओं ने हाथ मिलाते हुए तस्वीर दिखाई और लगातार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एकता और अखंडता का प्रदर्शन करते रहते हैं।
वैसे ही लगता है कि इन चीटों ने मुझे मोदी और घर के सदस्यों को विश्व के सबसे बड़े दल भाजपा का सदस्य समझ लिया और घर में आने जाने वाले मेहमान व मित्रों को संघी समझ लिया है।
मालूम नहीं कहाँ – कहाँ से आते हैं ? ये रहते तो एकदम शांत से हैं , पर लैंड कहाँ से आकर , क्या क्या बोलकर करते हैं कि मानों इनकी चुप्पी के बावजूद मेरे बचपन का भय खत्म नहीं होता। अपने ही घर में कदम फूंक फूंक कर रख रहा हूँ।
एकलव्य अपने हाथ का अंगूठा नहीं बचा सका परंतु मैं अपने पैर का अंगूठा बचाने के लिए एकदम सजग हूँ , कि काट ना ले और एक बार फिर असहनीय दर्द सहना पड़ जाए। चिंता इस बात की भी है कि उस चींटे की तरह मैं हिंसक नहीं हो सकता और मार दूं !
किन्तु इन चींटो से सजग रहना बहुत जरूरी है। हत्या करते हैं तो जीव हत्या का पाप लगेगा और नहीं करते हैं तो शनैः शनैः घर की शक्कर ही चुगे जा रहे हैं। इनके साथ कुछ भी करते हैं तो एक साथ विक्टिम – विक्टिम चींख कर मुझे हिटलर और असभ्य अथवा हिंसक घोषित कर देंगे।
ये कहेंगे कि शक्कर खाना हमारा अधिकार है , हमारा स्वभाव है। क्योंकि हम चींटा हैं ? जैसे आतंकियों का मानवाधिकार होता है और रातों-रात कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है कि साहब उसकी फांसी माफ कर दीजिए ? सच है कि जैसे आतंकियों का धर्म नहीं होता वैसे चींटो का कोई धर्म नहीं होता है।
अभी इस हफ्ते ही एक बार फिर इमर्जेंसी में न्यायालय के द्वार खुले और कुछ लोगों को घर द्वार के अंदर ही गिरफ्तारी के आदेश दे दिए। आम निर्दोष आदमी तो संवैधानिक दर्जा प्राप्त गालियां सुनता और रातों रात सलाखों के पीछे पहुंच जाता , पर अगर कायदे का समूह है तो सबूत होने के बावजूद भी गिरफ्तारी आसान नहीं है। ये सब भी चंद सोशल एक्टिविस्ट / इतिहासकार एवं वकीलों के चींटापन का कमाल है। चींटापन ऐसा ही है कि ऐसे जीव बने रहो और शक्कर चुगते रहो।
एक काले चीटें और चीटों के समूह से घर के अंदर ही कितना भय है ? मानों हम अपना घर त्याग दें या इनको बेदखल कर दें ! इनके हाथों में घर की सत्ता आ जाए तो ? चींटो का समूह क्या करेगा ? अब इन चींटो को सभ्य और स्वभावतः हक की बात करने वाला कोई पत्रकार समूह भी होगा , जो छद्म मानवता की बात करेगा। इनके हक की बात कहेगा। वो कहेगा की क्या इनका हक नहीं है ?
अब वक्त ही तय करेगा कि न्यायपालिका पर दौड़ने वाले चीटें और एक खास विचारधारा के चीटों तथा विपक्षी दलों के चीटों से नरेन्द्र मोदी कैसे पार पाएंगे ? यह सब एक चीटा समूह है , जो एक झुंड में देश के अंदर विराजमान है और इनकों यह बताने की कोशिश भर की , कि देश को नुकसान पहुंचा रहे हो और हटाने की कोशिश की तो समझिए यह समूह किस तरह चट मंगनी पट ब्याह की तरह फैसले अपने पक्ष में करवाने में माहिर है। वजह यही कि सत्ता हस्तांतरण होता है परंतु एक खास विचारधारा की जड़े प्रत्येक कार्यालय और न्यायालय तक फैली हुई हैं।