By – Saurabh Dwivedi
मैं एक बात रवीश कुमार के बारे में सोचता हूँ। असल में सोच रवीश कुमार के लिए नहीं बल्कि उनके अंदर की निष्पक्षता हेतु है। चूंकि वर्तमान समय में वही एक ऐसे पत्रकार हैं जो सरकार की आलोचना करने के लिए जाने जाते हैं।
अगर वामपंथी विचार से सहमत हों तो पत्रकार वही है जो सरकार के खिलाफ हो। यह एक धारणा वामपंथी विचारकों के द्वारा फैलाई गई है। इसलिये रवीश कुमार को पीडि़त भी कहा गया है। चूंकि इन पर बहुत से युवाओं ने सोशल मीडिया पर शब्दों से तलवार , भाला और चाकू सबकुछ चलाया है। एक समय रवीश इन्हीं चाकू , तलवार और भाले से छलनी – छलनी होना स्वीकार कर रणछोड़ दास हो गए थे। फिर वो एक दिन स्वयं को तैयार कर वापस आए और कह गए कि कह देना ” छेनू ” आया था।
वास्तविकता यह है कि मैं रवीश कुमार की चर्चा ना करके उनकी निष्पक्षता पर सोचता रहा। उस निष्पक्षता पर जो आजादी से लेकर अब तक बेरोजगारी व घटिया सिस्टम के लिए पूर्व की हर सरकार व प्रशासन जिम्मेदार है।
जैसे कि उन्होंने अनेक बार नौकरी ना मिलने , प्री एक्जाम हो जाने और फिर मेन एक्जाम में वर्षों का समय लगना। कहीं – कहीं परीक्षा परिणाम आने में देरी तो कहीं अनियमितता की वजह से कोर्ट द्वारा रोक लगा देने का मामला। यह सभी मुद्दे वास्तव में युवाओं के हित मे हैं और राष्ट्र हित मे हैं। चूंकि बेरोजगारी से बड़ा दंश कुछ भी नहीं होता है।
ऐसे ही तमाम तरह के सरकारी भ्रष्टाचार तथा अनेको ऐसे मुद्दे जिन पर सरकार घिरती नजर आती थी। खासतौर से केन्द्र सरकार पर उनकी निष्पक्षता हमलावर रही। बेशक इस हमले के पीछे का मन्तव्य कुछ भी रहा हो। किन्तु सवाल राष्ट्र हित के थे। अंतर सिर्फ इतना था कि जिस सड़े हुए सिस्टम के लिए पूर्व की सरकार व प्रशासन का मिजाजी मौसम जिम्मेदार रहा , उसके लिए इन पांच वर्षों में रवीश कुमार कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हुए महसूस हुए कि बस अभी सारी इच्छाएं पूरी हो जाएं ?
चूंकि एनडीटीवी इसलिये देखता रहा कि रवीश और अन्य एंकर को सुन लिया , फिर उसी मुद्दे पर अन्य चैनल पर भी सुन लिया जाए तो स्वविवेक लगाकर हद तक सच्चाई स्पष्ट हो जाती है। चूंकि सभी सापेक्ष बात ” निष्पक्षता ” की नींव पर रखते हैं। इसलिए मुझे एनडीटीवी में खबर देखना जायज लगा।
किन्तु इस पूरे समय में पश्चिम बंगाल के नाटकीय घटनाक्रम के शुरू होने से पहले एनडीटीवी पर उसी जोशो – खरोस के साथ सारदा चिट फंड घोटाले जैसे मुद्दे पर रवीश या अन्य किसी एंकर आवाज उठाते नहीं देखा – सुना था। यह मुद्दा भी जनहित का है। यहाँ भी आम जनता का करोड़ो – अरबों सरकारी , गैरसरकारी लूट के जरिए फंसा हुआ था। परंतु कहीं कोई आवाज कभी नहीं सुनी कि आम गरीब जनता का धन वापस मिले ? इतनी देर क्यों लग रही है जांच मे ? आखिर कब ये जांच पूरी होगी। जब तक जांच पूरी होगी तब तक ना जाने कितनी जिंदगियां तबाह हो जाएंगी ? ऐसे बहुत सारे सवाल जो रवीश कुमार की छेना सरीखी जुबान से निकलती है , शायद इसीलिए उन्होंने स्वयं को छेनू कहा था।
मेरी यह जिज्ञासा रवीश कुमार के लिए नहीं है। बल्कि उनकी निष्पक्षता को लेकर है। पत्रकार वही है जो सरकार के खिलाफ हो , इसके लिए है। जबकि सरकार अच्छा काम करे तो उस पर भी मीन मेख निकाल दो , तो क्या मीन मेख निकालना पत्रकारिता है ? खैर यह देखा गया है कि केन्द्र सरकार के अलावा और इन पांच वर्षों में ही सबकुछ ठीक होने के सवालों के अलावा रवीश कुमार की निष्पक्षता सारदा चिट फंड घोटाले से लेकर जेएनयू के मुद्दे तक साफ नहीं दिखी। अगर रवीश कुमार अपनी निष्पक्षता के इस सिद्धांत को समझा सकें तो समझा दें !