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पुस्तक परिचय द्वारा सौरभ द्विवेदी

गरिमा संजय की प्रस्तुति है ; खट्टे-मीठे रिश्ते ! रिश्ते एक ऐसा शब्द जो सभी के जीवन में सकारात्मक – नकारात्मक प्रभाव की छाप छोड़ जाते हैं और भारत जैसे देश में व्यवस्था के अंतर्गत बने हुए रिश्तों की गहराई में बहुत कुछ रहस्यमय रह जाता है जो सामाजिक पटल पर प्रस्तुत हो नहीं पाता वरना तमाम जिंदगियों के सच बाहर आ जाएं तो सचमुच नक्शे पर खट्टा – मीठा अंकित हो जाए।

मैंने लेखिका की स्मृतियां और आतंक के साए में नामक किताबें पढ़ीं ! दोनों किताबों से लेखिका के मनस् उद्गारों से परिचय प्राप्त हुआ। अनेकानेक किताबें पढ़ने के बावजूद गरिमा संजय को पढ़ने के बाद मन में एक सवाल आया कि और लेखक वर्ग की तरह बहुत प्रसिद्ध क्यों नहीं ? इनके अंदर अहम क्यों नहीं ? ये जितनी सहज सरल और गंभीर व्यक्तित्व की आध्यात्मिक स्वभाव वाली लेखिका हैं उतना ही किताबों में सबकुछ साफ झलकता है।

लेखक और लेखिका बहुत हैं। इस दुनिया में कुछ लोग तैराक होते हैं तो कुछ लोग गोताखोर होते हैं। कुछ लोग तैराकी सीखना चाहते हैं तो वहीं कुछ लोग गोताखोर होने के लिए ट्रेनिंग लेना चाहते हैं। सिर्फ इतना फर्क होता है लेखक / लेखिका और पाठको में !

खट्टे-मीठे रिश्ते की लेखिका स्वभाव से गोताखोर हैं और गोताखोर स्वभाव के पाठकों को किताब अवश्य पसंद आएगी , तैरने वाले स्वभाव के लोग पढ़कर गोताखोर होने की ट्रेनिंग ले सकते हैं। स्पष्ट है कि खट्टे-मीठे रिश्ते को बिन पढ़े ही पूर्व की किताबों के अनुभव के आधार पर लेखिका पर विश्वास जताते हुए कह सकता हूँ कि पढ़िए एक बार और पढ़ना जिंदगी व रिश्तों के लिए हमेशा लाभदायक रहा है।

( लेखिका द्वारा स्मृतियां एवं आतंक के साए में नामक दो कृतियां मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पारिवारिक रिश्तों पर भावनात्मक प्रस्तुति हैं और अच्छा संदेश प्रदान किया गया है )

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