ब्लाक मुख्यालय पहाड़ी के सुख वाले अच्छे दिन श्मशान घाट में मरणासन्न हो चुके हैं। यहाँ बिजली पल – पल में आ – जा कर व्यापार और आम आदमी की सहनशीलता को ललकार रही है।
बिजली कहती है कि पसीने से तरबतर कर दूंगी नहाने की जरूरत क्या है ? पानी मिलेगा नहीं तो पसीने से ही नहा लो।
बिजली कहती है टेंशन लेने की जरूरत नहीं , अब मेरी आदत बन चुकी है , कभी भी आती-जाती रहूंगी। जो मुझ पर ठहरे रहने का लगाम लगाते थे , उनकी लगाम से लगामदार साहब लोग छूट चुके हैं।
बिजली फिर कहती है कि ऊर्जा मंत्री कुछ भी कर लें , आखिर जिले में अफसर की ही चलती है और फिर कहती है कि आखिर पावर हाऊस का मालिक तो जे.ई. ही होता है , वह जब तक संवेदनशील नहीं होगा तब तक जनता रोती रहेगी।
बिजली माफी मांगती है कि मुझे दोष मत दो , दोष देखना है तो माननीयों पर देख लो और उदासीन जनता पर जो एक जेई को भी नियंत्रित नहीं कर सकती हैं , इसलिए तपते रहो , मरते रहो। मेरा काम आना – जाना है पर तुम्हे तुम्हारी तपिश मुबारक हो , मैं विधानसभा में अनवरत रहा करती हूँ और साहब लोगों के यहाँ फिर आदमी के यहाँ नहीं तो आम आदमी ही सोचे कि क्यों मर जाना चाहता है ?
यकीनन ब्लाक मुख्यालय पहाड़ी में बिजली की लम्बरदारी इस तपिश में जनता पिस रही है पर मजाल है कि अधिकारी जाग जाएं। व्यापार चौपट है और आम आदमी त्रस्त है। हाँ मैं पहाड़ी की बिजली हूँ , इस गर्मी में मौत की सौदागर हूँ।