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नोनार गाँव का मामला शिकायत सचिव की गले मे लटका दी प्रधान के

शिकायत का सरलीकरण होना चाहिए तो वह जटिल कर दी गई.

ब्लाक पहाड़ी :  एक समय था जब किसी अधिकारी शिकायत हो जाए तो वह भयभीत हो जाता था कि अरे मेरी शिकायत हो गई है , किसी जनप्रतिनिध की शिकायत हो जाए तो उसके मन मे भी तनिक तनाव उत्पन्न होता लेकिन तब मे और अब मे व्यवहारिक अंतर आ गया है।

ब्लाक मुख्यालय पहाड़ी मे नोनार ग्राम पंचायत से संबंधित शिकायत जब दर्ज की गई। उसमे ग्राम सचिव द्वारा आवास आवंटन मे ग्रामीणों से धन मांगने का तथ्य लिखा गया।

अब आख्या लगाने वाले अधिकारी का खेल देखिए कि वह आवास आवंटन मे प्रधान द्वारा धन मांगने की बात लिखकर जवाब देते हैं अर्थात साफ है कि शिकायत जिस बाबत की गई उसका निस्तारण ही नही हुआ।

दूसरा एक तथ्य लिखा गया जो जनता को जान लेना आवश्यक है। जन की शिकायत आखिर इतनी मंहगी क्यों कर दी गई ? आख्या मे लिखा हुआ है कि प्रधान की शिकायत दर्ज करने के लिए शपथ पत्र देना होगा। शपथ पत्र देने का मतलब है कि पहले 10 ₹ का स्टांप खरीदें और फिर नोटरी कराएं अर्थात एक शिकायत के पीछे कम से कम 100 – 200 ₹ खर्च होना तय है।

कृष्ण कृपा से

चूंकि गांव का आदमी तहसील या जनपद पहुंचेगा तभी वह स्टांप खरीद सकता है और नोटरी करा शपथ पत्र बनवा सकता है। साथ ही आने जाने का किराया या पेट्रोल आदि खर्च करेगा। इसलिए शिकायत दर्ज कराना पेट्रोल डीजल से अधिक मंहगा हो गया है।

लोकतंत्र लोक के लिए बना था लेकिन धीरे धीरे इस नियम बनाने वाले अफसरों ने अपने हित के लिए कानून बना लिए। जिससे शिकायतें टरकाई जाएं या शिकायतें आने ही ना लगें। एक व्यक्ति सादे कागज मे लिखकर देगा तो वह अगर प्रमाणिक नही है तो फिर क्या है ?

आख्या

एक तरफ प्रधानमंत्री ने नियम बनाया कि सेल्फ अटेस्टेड डाक्यूमेंट चल जाएंगे तो दूसरी और शिकायत की प्रक्रिया इतनी जटिल क्यों की गई ? जो बहाना है इनका कि शिकायत पर ही ऊर्जा व्यय हो जाएगी वह सिर्फ बहाना है।

कुलमिलाकर उत्तर प्रदेश की सरकार को निर्णय लेना चाहिए कि जिस प्रकार नाम जनसुनवाई रखा है उस प्रकार से जनसुनवाई सरलता से होनी चाहिए और आख्याखोर अफसरों पर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित होनी चाहिए। आख्याखोर मतलब यह है कि जो बिंदुओं को खाकर गलत आख्या लगाते हैं जैसे स्वच्छता के बिंदु को खा गए उस पर कोई जवाब ही नही दिया गया। ऐसी रत्ती भर की गलती पाई जाए तो बुलडोज़र बाबा को इन आख्याखोर अफसरों पर बुलडोज़र चलाना चाहिए तभी बुलडोज़र के असल मायने समझ आएंगे.

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