By – Saurabh Dwived
या खुदा ,क्या दिन आ गए
सत्ता ही दासी बनी नजर आ रही है
ना गुण्डाराज , ना भ्रष्टाचार और किसान हितों की ईमानदारी के विशेषण के साथ बात करने वाले सदर विधायक चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय को अंततः अपनी सत्ता की छाया में धरना देना पड़ा। दिसंबर की ठंड में आग जलाकर खुले आसमान के नीचे बैठना एक अच्छे जनप्रतिनिधि की पहचान कही जाएगी पर विधायक स्वयं सोचें कि यह दिन कैसे आए ?
सत्ता का अर्थ ही होता है कि अधिकारी नामक घोड़े की लगाम टाइट रखें। सत्ता और जनप्रतिनिधि घुड़सवार की तरह होते हैं। किन्तु जनपद चित्रकूट में शायद अभी बीजेपी की पूरी सत्ता ही नहीं है अथवा अधिकारियों को भय नहीं रह गया।
कल्पनीय है कि आम जनता की अधिकारी कब और कैसे सुनते होगें ? नहीं बल्कि सत्य यह है कि विभाग दर विभाग घूसखोरी का आलम है। कृषि विभाग में दलाली की सुर्खियां खूब तेज रहीं। एक कथित राष्ट्रवादी नेता कम दलाल ने कृषि विभाग में अपना धंधा खोल रखा है।
जिन किसानों के लिए सपा शासनकाल के दौरान सदर विधायक चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय ने धरना दिया , मुर्दाबाद के नारे लगाए और थाली बजाए। आज वही किसान सत्ता की नाक के नीचे छले जा रहे हैं।
यह पूरा वाकया देख समाजवादी पार्टी के नेताओं ने सोशल मीडिया पर जमकर चुटकी ली। हाँ सत्ता का स्वरूप जब ऐसा हो जाता है तो विपक्ष सिर्फ विरोध नहीं बल्कि मजाक भी उड़ाने लगता है। जिन अधिकारियों को सम्मान दिया गया , असल में वे गरम दूध पी लेने वाली बिल्लियां हैं। जो आम आदमी का दूध पी जाती हैं। उन्हीं को अधिक छूट प्रदान कर दी गई तो उन्होंने सत्ता को ही अपना चमत्कार दिखा दिया।
अभी भी वक्त है कि यदि सदर विधायक तय कर लें कि सिंह इज किंग टाइप के दलालों से मुक्ति चाहिए तो इनका मुक्तिधाम में सांकेतिक विसर्जन कर दें। वास्तविक समाजसेवी और विकास चाहने वाले लोगों की सलाह ले जनहित के कार्य करें तो अवश्य चित्रकूट जनपद के इतिहास में लोकप्रिय जनप्रतिनिधि के रूप जाने जाएंगे अन्यथा तय मानिए कि असर स्वयं सदर विधायक की छवि पर पड़ना तय है। हाँ वह छवि जो ईमानदारी वाली बनाई गई है।