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By :- Saurabh Dwivedi

विनम्र होइए सफलता प्राप्त करिए , इस सिद्धांत को जानिए.

मतदान करना राष्ट्र निर्माण में अश्वमेघ यज्ञ करने की तरह है। इस महत्वपूर्ण यज्ञ को देश की बहुतायत जनता अहसास करने लगी है व मतदान करने में सक्रिय हुई है। एक सही नेतृत्वकर्ता को चुनने के लिए स्वविवेक का प्रयोग करने लगी है।

मैं भी आम जन के कर्तव्य को निभाने के लिए गांव पहुंचा। बूथ तक पहुंचते ही नजर दो लंबी पंक्ति पर पड़ी , उनमें से एक पंक्ति के अंतिम मतदाता के रूप में खड़ा हो गया।

मेरे आगे दो युवा खड़े थे और उनके आगे एक बुजुर्ग खड़े थे , फिर लगभग 3 और लोग खड़े थे। बगल वाली पंक्ति बहुत लंबी थी , ऐसा प्रतीत हो रहा था कि दोनों पंक्तियों से एक – दो मतदाता को अंदर जाने दिया जाएगा।

मेरे मन को संभावना महसूस हुई कि मेरा समय आने तक बहुत लंबा समय व्यतीत करना पड़ सकता है। इसी समय लगने की बात को उन दो युवाओं से साझा करने लगा।

मैंने उनसे कहा कि बहुत समय लग जाएगा। किन्तु राष्ट्र हित में आहूति देने के लिए मतदान करना है। परंतु मुझे अभी वापस पहाड़ी पहुंचना है। साथ ही राष्ट्र हित के लिए जरूरी संवाद भी करना है। चूंकि यह अंतिम समय है और आज ही वो दिन है , जब हम देश की दिशा और दशा को एक सही अवस्था में पहुंचाने के लिए काम कर सकते हैं ?

उन दोनों युवाओं के मन – मस्तिष्क में मेरी बात समझ आ चुकी थी। उन्हें मेरी बात महत्वपूर्ण महसूस हुई। अतः उन्होंने स्वयं ही पीछे हटना उचित समझा और मुझे अपने से आगे कर दिया।

जैसे ही दोनों युवाओं से आगे पहुंचा तो बुजुर्ग मतदाता ( सक्षम स्वस्थ ) की मुझ पर नजर पड़ी। वे कहने लगे कि अभी सबसे पीछे लगे थे ( सबसे पाछे थाड़ रहे हैं ) और आगे आ गए !

मैं मुस्कुराया ! उनसे कहने लगा कि हाँ मेरे दो युवा साथियों ने सहज भाव से स्वीकार कर अपने से अग्रिम पंक्ति में भेज दिया। आप बुजुर्ग हैं और बच्चों के संरक्षक हैं। यदि आप मुझे अपने से आगे की पंक्ति में भेज दें तो महसूस हो कि मैं बुजुर्ग की छायातले जिंदगी जी रहा हूँ और कुछ काम राष्ट्र हित के लिए कर पाऊंगा।

उन बुजुर्ग पुरूष को भी आनंद आया और मुस्कुराते हुए मेरे अंकल से कहते हैं कि भाई इनको आगे कर दो। अतः मेरे सामने के समस्त अवरोध स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। पांच मिनट के अंदर ही मतदान केन्द्र में प्रवेश हो जाता है और राष्ट्र के केन्द्र में मजबूत सरकार बनाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ में हवन कर देता हूँ।

इस तरह पहाड़ी से नोनार गांव तक की मेरी यात्रा में मतदान केन्द्र में सबसे अग्रिम पंक्ति पर खड़े होने में विनम्रता की शक्ति काम आई। अक्सर देखने को मिलता है कि लोग अपने आपको प्रतिष्ठित करने हेतु हथियार , अपशब्द और भय का प्रयोग करते हैं। बेशक ऐसे बाहुबली , कुंठित तथा गुंडा प्रवृत्ति के लोग कुछ समय के लिए प्रतिष्ठित नजर भी आते हैं। किन्तु हकीकत सिर्फ इतनी सी है कि उनकी यह प्रतिष्ठा क्षणिक होती है।

मैंने बचपन से तड़ातड़ – धड़ाधड़ रायफल – बंदूक से निकलती हुई फायर की आवाज सुनी। भारी भरकम आवाज से अश्लील गालियां सुनीं सुनीं। बेहद नजदीक से दस्युओं से आमने-सामने की जंग देखी – सुनी। एक समय बड़ा बलवान था कि उनका नाम चलता था। किन्तु घड़ी की मिनट और घंटे वाली सूई की रफ्तार से समय बदला फिर सबकुछ सामान्य हो गया , सिवाय अच्छाई की प्रतिष्ठा के।

अतः मनुष्य को महसूस करना चाहिए कि विनम्रता के गुण में इतनी शक्ति है कि आप गुस्सैल व्यक्ति के सामने मुस्कुरा कर मिलो तो वह भी सहज हो जाता है। ऐसे ही विनम्रता के गुण से आप दुनिया पर प्रेमिल विजय प्राप्त कर सकते हैं। सभी मान – सम्मान भी देंगे और आप बदलते समय के साथ विजेता होगें। विनम्रता का गुण मनुष्य की वह शक्ति है जिससे सहज ही बहुत से अवरोधों को पार कर नेतृत्वकर्ता बन सकते हैं और समाज को सही नेतृत्व की कला सिखा सकते हैं। विनम्रता से बड़ी कोई शक्ति नहीं , प्रेम से बड़ी कोई ऊर्जा नहीं जो आपको सफलता दिला देती है।

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